देश की न्यायपालिका में हलचल मचाने वाले न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ अब संसद में महाभियोग प्रस्ताव की प्रक्रिया शुरू हो गई है। सूत्रों के मुताबिक लोकसभा और राज्यसभा के करीब 150 सांसदों ने इस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। जल्द ही यह प्रस्ताव लोकसभा अध्यक्ष के पास औपचारिक रूप से सौंपा जाएगा।
यशवंत वर्मा पर आरोप है कि उनके सरकारी आवास से मार्च 2025 में आग लगने की घटना के दौरान जली हुई भारतीय मुद्रा—₹500 के नोटों का एक बड़ा जखीरा मिला था। जांच में पाया गया कि ये पैसे संदिग्ध परिस्थितियों में उनके घर में जमा किए गए थे। इसके बाद एक तीन जजों की समिति ने इस मामले की गहन जांच की और अपनी रिपोर्ट में इसे गंभीर आचरण की श्रेणी में रखते हुए अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश की।
इस पूरे मामले के बाद वर्मा ने खुद को निर्दोष बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की। उन्होंने इस आरोप को अपने खिलाफ षड्यंत्र करार दिया और कहा कि जजों की समिति द्वारा की गई जांच प्रक्रिया असंवैधानिक है। उनका कहना है कि उनके खिलाफ सबूत गढ़े गए हैं ताकि उन्हें बदनाम किया जा सके।
इसी बीच संसद में उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की प्रक्रिया ने रफ्तार पकड़ ली है। संसद के मानसून सत्र के पहले ही दिन संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने मीडिया से बातचीत में पुष्टि की कि लोकसभा में 100 से अधिक सांसदों ने इस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। वहीं, राज्यसभा में भी 50 से अधिक सांसदों के हस्ताक्षर की जरूरत होती है, और वहां भी प्रक्रिया तेजी से चल रही है।
सूत्रों का कहना है कि इस महाभियोग प्रस्ताव को सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों के सांसदों का समर्थन मिल रहा है। कांग्रेस के कई सांसदों ने भी प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए हैं। विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के नेताओं ने भी इस प्रस्ताव को लेकर सहमति बनाई है।
हालांकि सरकार की ओर से विधि मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि यह प्रस्ताव पूरी तरह से संसद का विषय है, इसमें सरकार की प्रत्यक्ष भूमिका नहीं है। उन्होंने स्पष्ट किया कि संसद के सदस्य स्वतंत्र रूप से अपने अधिकार का इस्तेमाल कर रहे हैं।
इस प्रस्ताव पर अब संसद के बिजनेस एडवाइजरी कमेटी में चर्चा होगी। इसके बाद यह तय किया जाएगा कि इसे कब सदन में पेश किया जाए। यदि प्रस्ताव लोकसभा में दो-तिहाई बहुमत से पारित हो जाता है, तो यह राज्यसभा में जाएगा। वहां भी दो-तिहाई सांसदों की सहमति जरूरी होगी।
अगर दोनों सदनों में प्रस्ताव पास हो जाता है तो अंत में यह राष्ट्रपति के पास जाएगा, जो न्यायाधीश को पद से हटाने के आदेश पर हस्ताक्षर करेंगे।
उधर, न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की याचिका पर भी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है। वर्मा ने अदालत से गुहार लगाई है कि उनके खिलाफ की जा रही कार्रवाई को रोका जाए और जांच रिपोर्ट को रद्द किया जाए।
यह मामला देश में न्यायपालिका की जवाबदेही और पारदर्शिता के बड़े सवाल को खड़ा कर रहा है। क्या न्यायाधीश भी कानून के दायरे में उतने ही जवाबदेह होंगे जितने कि अन्य पदाधिकारी? यह सवाल अब देश की संसद और न्यायपालिका दोनों के सामने है।