देश की ज़मीनें ‘तोहफे’ में बांटी गईं, अब भुगत रहा है भारत: निशिकांत दुबे का कांग्रेस पर सीधा प्रहार

KK Sagar
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भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और गोड्डा से लोकसभा सांसद डॉ. निशिकांत दुबे ने एक बार फिर कांग्रेस और खासकर नेहरू-गांधी परिवार पर बड़ा हमला बोला है। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व ट्विटर) पर एक विस्तृत पोस्ट करते हुए आरोप लगाया कि पंडित नेहरू और इंदिरा गांधी ने अपने कार्यकाल में भारत की संप्रभुता और भू-भागों का सौदा सिर्फ राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा और अंतरराष्ट्रीय मान्यता के लालच में किया। उन्होंने कहा कि ये वो ऐतिहासिक भूलें हैं जिनके दुष्परिणाम आज भी देश भुगत रहा है।


कबाव घाटी का ‘दान’: मणिपुर की अशांति की जड़?

सांसद दुबे ने दावा किया कि वर्ष 1953 में भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने म्यांमार (तत्कालीन बर्मा) के प्रधानमंत्री यू नू के साथ एक मुलाकात में मणिपुर की अत्यंत उपजाऊ और सामरिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण कबाव घाटी (Kabaw Valley) बर्मा को बिना किसी संवैधानिक सहमति के सौंप दी।

इस घाटी का क्षेत्रफल लगभग 22,210 वर्ग किलोमीटर है, और आज भी यह विवाद का विषय बना हुआ है। यह वही क्षेत्र है, जिसे लेकर मणिपुर में अशांति और आंतरिक विद्रोह की स्थिति बनी रहती है।

सांसद के अनुसार, यह निर्णय यांडाबू संधि 1826 और कबाव समझौते 1834 का उल्लंघन था, जिनमें यह क्षेत्र भारत के अधिकार में माना गया था। उन्होंने बताया कि 1953 तक भारत को इस इलाके से 500 रुपये प्रतिमाह किराया भी मिलता था।


कोको द्वीप: अंडमान से चीन की दहलीज़ तक

निशिकांत दुबे ने एक और चौंकाने वाला खुलासा करते हुए कहा कि नेहरू ने उसी दौर में अंडमान द्वीपसमूह से महज 26 किलोमीटर दूर स्थित कोको द्वीप भी बर्मा को सौंप दिया था।

यह द्वीप तब भारतीय नौसेना के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण था और अंडमान की जेलों के कैदियों के लिए अनाज और पानी यहीं से आता था।

आज यह द्वीप म्यांमार की सरकार द्वारा चीन को बेच दिया गया है, जहां पर अब चीन का नौसैनिक अड्डा और परमाणु निगरानी केंद्र बन चुका है। इसका सीधा खतरा अब भारत की सामरिक सुरक्षा को है।


कच्चाथीवू विवाद: इंदिरा गांधी ने छोड़ा तमिल मछुआरों का हक

सांसद ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल पर भी सवाल उठाते हुए लिखा कि उन्होंने वर्ष 1974 में कच्चाथीवू द्वीप को श्रीलंका को सौंप दिया, जिससे आज तमिलनाडु के हजारों मछुआरे हर दिन संकट में फंसते हैं।

यह द्वीप भारतीय सीमा के बेहद करीब है, और वहां मछली पकड़ने जाने पर तमिलनाडु के मछुआरों को श्रीलंकाई नौसेना गिरफ्तार कर लेती है। आज भी दर्जनों भारतीय मछुआरे श्रीलंकाई जेलों में बंद हैं।

सांसद ने यह भी बताया कि भारत के महान्यायवादी एम.सी. शीतलवाड ने इस फैसले का लिखित विरोध किया था। वहीं तमिलनाडु के मुख्य सचिव और कई राजनीतिक दलों ने भी इसका विरोध किया, परंतु इंदिरा गांधी ने सबको दरकिनार कर यह फैसला थोप दिया।

यहां तक कि तत्कालीन मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि ने इस फैसले को समर्थन दिया, लेकिन बाद में जब उन्होंने कुछ मामलों में केंद्र सरकार से टकराव लिया तो इंदिरा गांधी ने उन्हें भ्रष्टाचार के आरोप में बर्खास्त कर दिया।


“दान और नोबेल की लालसा में देश बेचा गया”

निशिकांत दुबे ने अपने पोस्ट में तीखा तंज कसते हुए लिखा कि:

“नेहरू-गांधी परिवार और देश को नाश करने के लिए दान और नोबेल पुरस्कार की आश रही है। जो ज़मीन कभी देश की थी, वो आज या तो विदेश के कब्जे में है, या फिर भारत की सुरक्षा के लिए खतरा बन चुकी है।”

उन्होंने इसे कांग्रेस का काला इतिहास बताते हुए कहा कि यह जानबूझकर की गई ऐसी नीतिगत भूलें थीं, जिनका लक्ष्य देश के गौरव को गिराकर नेहरू-गांधी परिवार की व्यक्तिगत छवि चमकाना था।

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