बिहार में जारी आधार सैचुरेशन के ताज़ा आंकड़ों ने राजनीतिक गलियारों और सुरक्षा एजेंसियों में खलबली मचा दी है। जहाँ राज्य का औसत सैचुरेशन लगभग 94% है, वहीं मुस्लिम बहुल सीमांचल जिलों में यह आंकड़ा 126% तक पहुँच गया है। यह स्थिति न केवल विसंगति की ओर इशारा करती है, बल्कि संभावित डुप्लिकेट या फर्जी पहचान पत्रों की आशंका भी खड़ी करती है।
चौकाने वाले आंकड़े:
किशनगंज (मुस्लिम आबादी: 68%) – आधार सैचुरेशन: 126%
कटिहार (मुस्लिम आबादी: 44%) – 123%
अररिया (मुस्लिम आबादी: 43%) – 123%
पूर्णिया (मुस्लिम आबादी: 38%) – 121%
इन आंकड़ों के अनुसार, हर 100 व्यक्तियों पर 120 से अधिक आधार कार्ड दर्ज हैं। यह स्थिति आधार की मूलभूत नीति – एक व्यक्ति, एक पहचान – पर सवाल खड़े करती है।
किसके नाम पर बने हैं अतिरिक्त आधार कार्ड?
सरकार और एजेंसियां इस विसंगति के पीछे संभावित कारणों की जांच कर रही हैं:
- डुप्लिकेट पंजीकरण: तकनीकी त्रुटि या दस्तावेज़ों की पुनरावृत्ति से।
- गैर-नागरिकों को पहचान देना: अवैध बांग्लादेशी या नेपाली घुसपैठियों को आधार जारी होने की आशंका।
- राजनीतिक संरक्षण: कुछ सोशल मीडिया रिपोर्ट्स का दावा है कि स्थानीय राजनीतिक दल और धार्मिक कट्टरपंथी ऐसे फर्जी कार्ड्स में भूमिका निभा रहे हैं।
हालांकि अभी तक इन आरोपों के लिए कोई ठोस सरकारी प्रमाण नहीं आया है, लेकिन संदेह की सुई सीमांचल की भौगोलिक स्थिति की ओर भी इशारा करती है — यह क्षेत्र नेपाल और पश्चिम बंगाल की सीमा से सटा हुआ है, और बांग्लादेश भी ज्यादा दूर नहीं।
सियासत गरमाई: विपक्ष और सरकार आमने-सामने
इस मुद्दे को लेकर बिहार और पश्चिम बंगाल दोनों ही राज्यों में सियासी तूफान उठ खड़ा हुआ है।
बिहार में:
राजद और कांग्रेस ने आधार कार्ड को मतदाता सूची से जोड़ने की प्रक्रिया का विरोध किया है।
तेजस्वी यादव ने चुनाव आयोग की विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) प्रक्रिया के खिलाफ बिहार बंद बुलाया।
विपक्ष का तर्क है कि आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है, इसलिए इसके आधार पर किसी को मतदाता सूची से बाहर करना संवैधानिक उल्लंघन है।
वहीं बीजेपी का आरोप:
विपक्ष अवैध घुसपैठियों को वोटर बनाने की योजना पर काम कर रहा है।
सीमांचल में बढ़ा हुआ आधार सैचुरेशन चुनावी हेरफेर का संकेत है।
बंगाल की भी गर्मी बढ़ी
बिहार के आंकड़ों का असर पश्चिम बंगाल तक पहुंचा है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पहले से ही आधार डिएक्टिवेशन पर केंद्र सरकार से भिड़ी हुई हैं।
उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिख कर SC/ST/OBC समुदायों के आधार डिएक्टिवेशन को साजिश करार दिया।
ममता सरकार ने वैकल्पिक आधार कार्ड की घोषणा की थी, जिसे केंद्र ने अवैध बताया।
बंगाल के उत्तर दिनाजपुर, मालदा जैसे मुस्लिम बहुल जिलों में भी अवैध आप्रवासियों का मुद्दा गरमाया हुआ है। केंद्र सरकार का मानना है कि इन क्षेत्रों में फर्जी आधार के ज़रिए उन्हें मतदाता सूची में शामिल किया जा रहा है।
चुनाव आयोग की सतर्कता और आम जनता की मुश्किल
चुनाव आयोग ने साफ किया है कि आधार कार्ड को नागरिकता का सबूत नहीं माना जाएगा। बिहार में चल रहे SIR अभियान के तहत आधार, जन्म प्रमाणपत्र या डोमिसाइल सर्टिफिकेट मांगे जा रहे हैं।
समस्या यह है कि सीमांचल के गरीब और अल्पसंख्यक तबके के पास अक्सर सिर्फ आधार ही एकमात्र पहचान होता है। नतीजतन,
हज़ारों लोगों के नाम वोटर लिस्ट से कटने की आशंका है
कानूनी नागरिक भी प्रभावित हो सकते हैं, जिससे मानवाधिकार और प्रतिनिधित्व का संकट उत्पन्न हो सकता है।
निष्कर्ष: ज़रूरत सख्ती की या संवेदनशीलता की?
यह मुद्दा केवल डेटा का नहीं, राष्ट्रीय सुरक्षा, चुनाव की पारदर्शिता और नागरिक अधिकारों से जुड़ा है।
एक ओर, सरकार को फर्जी पहचान को रोकना जरूरी है।
दूसरी ओर, असली नागरिकों को अधिकार से वंचित न किया जाए, इसकी भी गारंटी जरूरी है।
फिलहाल, यह साफ है कि सीमांचल में आधार सैचुरेशन को लेकर उठे सवाल आने वाले समय में राजनीति और प्रशासन दोनों के लिए बड़ी चुनौती बन सकते हैं।