भारतीय संविधान की प्रस्तावना से “समाजवादी” और “धर्मनिरपेक्ष” शब्दों को हटाने को लेकर जारी अटकलों पर केंद्र सरकार ने अपना आधिकारिक रुख स्पष्ट किया है। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने संसद में कहा कि सरकार की ओर से इन शब्दों को हटाने के लिए कोई औपचारिक या संवैधानिक प्रक्रिया शुरू नहीं की गई है और न ही भविष्य में ऐसा कोई इरादा है।
यह बयान राज्यसभा में समाजवादी पार्टी के सांसद रामजी लाल सुमन के उस प्रश्न के जवाब में आया, जिसमें उन्होंने “कुछ सामाजिक संगठनों के पदाधिकारियों” द्वारा इन दोनों शब्दों को प्रस्तावना से हटाने के लिए माहौल बनाने की बात कही थी।
➤ कानून मंत्री ने क्या कहा?
अर्जुन राम मेघवाल ने लिखित उत्तर में कहा –
“सरकार का आधिकारिक रुख यह है कि संविधान की प्रस्तावना से ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों को हटाने की कोई योजना या इरादा नहीं है। ऐसी किसी भी संभावित संशोधन के लिए व्यापक सहमति और गहन विचार-विमर्श की आवश्यकता होगी, लेकिन अभी तक ऐसा कोई कदम नहीं उठाया गया है।”
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि कुछ संगठनों द्वारा इस मुद्दे पर माहौल बनाया जा सकता है या सार्वजनिक चर्चा हो सकती है, लेकिन इससे यह नहीं माना जाना चाहिए कि यह सरकार का दृष्टिकोण है।
➤ सुप्रीम कोर्ट का भी स्पष्ट रुख
अपने उत्तर में मेघवाल ने नवंबर 2024 में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के एक अहम फैसले का भी हवाला दिया।
यह फैसला डॉ. बलराम सिंह बनाम भारत संघ मामले में आया था, जिसमें संविधान के 42वें संशोधन को चुनौती दी गई थी।
कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि —
“समाजवादी” और “धर्मनिरपेक्ष” जैसे शब्द संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा हैं और इन्हें प्रस्तावना से हटाया नहीं जा सकता।
कोर्ट ने यह भी कहा कि
“इन शब्दों को जोड़े जाने के 44 वर्षों बाद इन पर आपत्ति उठाना न्यायिक दृष्टिकोण से तर्कसंगत नहीं है। ये शब्द अब संविधान का अभिन्न और स्वीकृत हिस्सा बन चुके हैं।”
➤ क्या है 42वां संशोधन?
42वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 के माध्यम से प्रस्तावना में “समाजवादी” और “धर्मनिरपेक्ष” शब्द जोड़े गए थे।
यह संशोधन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल में आपातकाल के दौरान पारित किया गया था।
इसके खिलाफ यह तर्क दिया जाता रहा है कि यह जनता की राय लिए बिना किया गया था, इसलिए इसकी वैधता पर प्रश्न उठे। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को खारिज कर दिया।
➤ क्या है “समाजवाद” और “धर्मनिरपेक्षता” का महत्व?
समाजवाद (Socialism) का अर्थ है कि राज्य एक कल्याणकारी राज्य होगा, जो आर्थिक और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करेगा। यह निजी व्यवसाय के अधिकारों को प्रतिबंधित नहीं करता, बल्कि सभी को समान अवसर देने की दिशा में कार्य करता है।
धर्मनिरपेक्षता (Secularism) का अर्थ है कि राज्य सभी धर्मों से समान दूरी बनाए रखेगा और नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता की पूरी गारंटी देगा।
सुप्रीम कोर्ट ने केशवानंद भारती (1973) और एस.आर. बोम्मई (1994) मामलों में भी इन मूल्यों को संविधान के “मूल ढांचे (Basic Structure)” का हिस्सा करार दिया है।
➤ 44वें संशोधन में क्या हुआ?
1977 में जनता पार्टी की सरकार के समय संविधान के 44वें संशोधन के माध्यम से 42वें संशोधन को वापस लेने का प्रयास किया गया, लेकिन “समाजवादी” और “धर्मनिरपेक्ष” शब्दों को यथावत रहने दिया गया।