डिजिटल डेस्क। कोलकाता: कलकत्ता हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि शादीशुदा जिंदगी में होने वाले मामूली झगड़ों और मारपीट को क्रूरता या घरेलू हिंसा नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने घरेलू हिंसा से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की।
जस्टिस अजय कुमार मुखर्जी ने कहा कि लगातार और गंभीर शारीरिक या मानसिक उत्पीड़न को ही कानून के तहत क्रूरता माना जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि अदालत को इस बात से सावधान रहना चाहिए कि कहीं पत्नी बदले की भावना से अपने पति को परेशान करने के लिए कानून का गलत इस्तेमाल तो नहीं कर रही।
क्या था मामला?
यह मामला एक महिला से जुड़ा है, जिसने अपने पति और ससुराल वालों पर प्रताड़ना और पैसे हड़पने का आरोप लगाया था। हालांकि, हाई कोर्ट ने पाया कि इस मामले में लगातार मानसिक या शारीरिक उत्पीड़न का कोई सबूत नहीं है। इसके अलावा, दहेज की मांग या किसी अन्य अवैध मांग का भी कोई प्रमाण नहीं मिला।
कोर्ट ने कहा कि पुलिस द्वारा दर्ज की गई एफआईआर और चार्जशीट में भी किसी अपराध का कोई ठोस सबूत नहीं है। इन तथ्यों को देखते हुए जस्टिस मुखर्जी ने महिला द्वारा दर्ज की गई एफआईआर को रद्द करने का आदेश दिया।
इस फैसले से यह स्पष्ट होता है कि कोर्ट घरेलू हिंसा के मामलों में सबूतों की गंभीरता से जांच करेगा, ताकि कानून का दुरुपयोग न हो सके।