राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने जनसंख्या, धर्मांतरण और साम्प्रदायिक सौहार्द जैसे संवेदनशील मुद्दों पर बड़ा बयान दिया है। नई दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि परिवारों को आदर्श रूप से तीन बच्चों की नीति अपनानी चाहिए।
तीन बच्चों की नीति पर जोर
भागवत ने कहा कि घर और समाज, दोनों स्तरों पर संतुलन बनाए रखने के लिए परिवारों में तीन बच्चे होना जरूरी है। उन्होंने कहा, “तीन बच्चों वाले परिवारों में बच्चों को आपसी तालमेल और जिम्मेदारी निभाना आता है।”
उन्होंने भारत की आधिकारिक जनसंख्या नीति का हवाला देते हुए कहा कि औसतन 2.1 बच्चे तय किए गए हैं, लेकिन व्यावहारिक रूप से इसका मतलब तीन बच्चे ही है। हालांकि उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि तीन से अधिक बच्चे नहीं होने चाहिए।
जनसंख्या असंतुलन से चेतावनी
संघ प्रमुख ने आगाह किया कि अगर जनसंख्या असंतुलन बढ़ता है तो देश में अस्थिरता और बंटवारे जैसे हालात पैदा हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि हर देश के लिए यह एक बड़ी चुनौती है। इसके साथ ही उन्होंने रोजगार और घुसपैठ का जिक्र करते हुए कहा कि नौकरियां बाहर से आने वालों को नहीं, बल्कि देश के मुस्लिम नागरिकों को मिलनी चाहिए।
धर्मांतरण पर बयान
मोहन भागवत ने धर्मांतरण को भी जनसंख्या संतुलन के लिए एक बड़ी समस्या बताया। उन्होंने कहा, “धर्म व्यक्तिगत आस्था का विषय है, लेकिन अनावश्यक रूप से धर्मांतरण को बढ़ावा देना उचित नहीं। कैथोलिक और उलेमा कहते हैं कि वे धर्मांतरण नहीं कराते, लेकिन हकीकत अलग है।”
हिंदू-मुस्लिम संबंधों पर संदेश
भागवत ने कहा कि हिंदू और मुस्लिम समुदायों की असली पहचान एक है। उन्होंने कहा, “हमारी सांस्कृतिक पहचान साझा है, लेकिन डर और असुरक्षा ने इस एकता को कमजोर किया है। हिंदुओं में यह आत्मविश्वास आना चाहिए कि साथ रहने से उनकी आस्था पर कोई खतरा नहीं होगा। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि “इस्लाम आया है, मौजूद है और हमेशा रहेगा।”