अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर 50% टैरिफ लगाने का फैसला खुद अमेरिका में विवादों में फंस गया है। एक अमेरिकी थिंक टैंक के सर्वे के मुताबिक 53% नागरिक इस टैरिफ का विरोध कर रहे हैं। अमेरिकी व्यापार संगठनों ने चेतावनी दी है कि इससे भारतीय निर्यात महंगे होंगे और अमेरिकी उपभोक्ताओं को भी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। इतना ही नहीं, अमेरिकी अदालत ने भी इस टैरिफ को अवैध ठहराया है।
रो खन्ना का कड़ा विरोध
अमेरिकी सांसद रो खन्ना ने इस फैसले पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि ट्रंप की नीति भारत-अमेरिका साझेदारी को कमजोर कर सकती है। उनके मुताबिक, यह टैक्स चीन से ज्यादा और ब्राज़ील के बाद दूसरा सबसे ऊंचा है, जिससे भारत के चमड़ा और कपड़ा उद्योग जैसे प्रमुख सेक्टर प्रभावित होंगे और अमेरिकी कंपनियों को भी नुकसान होगा।
मोदी से नाराजगी का आरोप
खन्ना ने आरोप लगाया कि ट्रंप ने यह कदम किसी रणनीतिक कारण से नहीं, बल्कि निजी नाराजगी की वजह से उठाया है। उनका कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित नहीं किया, जबकि पाकिस्तान ने ऐसा किया। इसी कारण ट्रंप भारत से खफा हैं।
भारत-अमेरिका रिश्तों पर खतरा
खन्ना ने भारतीय-अमेरिकी समुदाय से सवाल किया कि अब वे कहां हैं, जब ट्रंप भारत-अमेरिका रिश्तों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। उनके सुर में पूर्व अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन भी शामिल हो गए। सुलिवन ने आरोप लगाया कि ट्रंप ने पाकिस्तान से निजी संबंधों के चलते भारत से बने रिश्तों को किनारे कर दिया है।
रणनीतिक साझेदारी पर असर
सुलिवन ने चेताया कि अमेरिका ने भारत के साथ तकनीक, अर्थव्यवस्था और चीन से जुड़ी रणनीतिक चुनौतियों पर साझेदारी बनाई है, लेकिन ट्रंप के ऐसे फैसलों से जर्मनी और जापान जैसे देश भी असहज हो सकते हैं।
समाधान की उम्मीद
इस बीच, अमेरिकी वित्त सचिव स्कॉट बेसेंट ने आशा जताई कि भारत और अमेरिका अपने मतभेद सुलझा लेंगे। उन्होंने कहा कि भारत के मूल्य अमेरिका से कहीं ज्यादा मेल खाते हैं, न कि रूस या चीन से। हालांकि, उन्होंने स्वीकार किया कि भारत का रूस से तेल व्यापार अमेरिका के लिए चिंता का विषय है।