झाझा : झाझा स्थित झाझा पब्लिक स्कूल में एक बड़ा मामला सामने आया है। परिजनों ने आरोप लगाया है कि विद्यालय के डायरेक्टर ने कक्षा 4 के एक छात्र को डंडे से बेरहमी से पीटा, जिससे उसके शरीर पर चोट के निशान तक दिखाई दे रहे हैं। परिजनों ने बच्चे की तस्वीर भी साझा की है, जिसमें पिटाई के निशान साफ देखे जा सकते हैं।
परिजनों का आरोप
बच्चे की मां ने बताया कि विद्यालय की छुट्टी के बाद उनका बेटा किसी अन्य बच्चे से कहासुनी के बाद झगड़ पड़ा। इसी दौरान स्कूल डायरेक्टर ने बच्चे को पकड़कर बुरी तरह पीटा। आरोप है कि इसके बाद फोन कर कहा गया कि “आपका बच्चा बदमाश है, पढ़ने लायक नहीं है, इसे 5 दिनों के लिए निलंबित (suspend) किया जाता है।”

परिजनों ने यह भी कहा कि यह पहली बार नहीं है जब उनके बेटे को विद्यालय में पीटा गया। इससे पहले भी कई बार बच्चे को शारीरिक दंड दिया गया और धमकाया गया कि “घर में मत बताना, वरना और पिटाई होगी।”
बच्चे की मां का कहना है कि पिछली बार भी बेटे को पीटा गया था, जिससे उसकी कमर और पैर में गंभीर चोट आई थी। लेकिन डर के कारण उसने घर पर कुछ नहीं बताया। उस समय इलाज करवाना पड़ा और बच्चा 2–3 दिन तक स्कूल भी नहीं जा सका।
गुरुवार की हुई ताज़ा घटना के बाद बच्चे ने खुद स्वीकार किया कि “मुझे पहले भी पीटा गया था।”

डायरेक्टर का पक्ष
वहीं, झाझा पब्लिक स्कूल के डायरेक्टर से जब फ़ोन से उनका पक्ष जानना चाहा तो उन्होंने बच्चों को डंडे से मारने की बात स्वीकार की। उनका कहना था कि छात्र सड़क पर झगड़ रहा था, शिक्षक उसे पकड़कर लाए तो उन्होंने “अनुशासन सिखाने के लिए” डंडे से दो चार बार मारा।
डायरेक्टर ने कहा – “शिक्षक भी पिता के समान होते हैं। बच्चे अगर अनुशासन नहीं सीखेंगे तो प्राइवेट स्कूल में पढ़ने का क्या फायदा? पैरेंट्स को भी स्कूल का सहयोग करना चाहिए। यदि उन्हें आपत्ति है तो TC (Transfer Certificate) ले सकते हैं।”
सवालों के घेरे में स्कूल प्रबंधन
यह मामला अब स्कूल प्रबंधन की कार्यशैली और बच्चों के साथ व्यवहार को लेकर गंभीर सवाल खड़े करता है। शिक्षक और प्रिंसिपल की मौजूदगी में डायरेक्टर द्वारा इस तरह से डंडे से पिटाई करना कहाँ तक उचित है।
बच्चों की सुरक्षा और कानून
Right to Education Act, 2009 की धारा 17 में स्पष्ट लिखा है –
“No child shall be subjected to physical punishment or mental harassment.”
यानी बच्चों को शारीरिक या मानसिक दंड देना पूरी तरह प्रतिबंधित है। उल्लंघन करने वालों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई हो सकती है।
Delhi High Court का आदेश (Parents Forum for Meaningful Education vs. Union of India) में भी स्पष्ट किया गया है कि शारीरिक दंड संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के खिलाफ है।
NCPCR (राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग) और RTE Act की Advisory के तहत सभी राज्यों को स्पष्ट निर्देश हैं कि स्कूलों में शारीरिक दंड और मानसिक उत्पीड़न को पूरी तरह समाप्त किया जाए।
गौरतलब है कि विद्यालय बच्चों के लिए सुरक्षित और सकारात्मक माहौल देने के लिए बने हैं। पिटाई और कठोर दंड बच्चों की शिक्षा, मानसिक और शारीरिक विकास को नुकसान पहुंचाते हैं। अब यह देखना होगा कि शिक्षा विभाग और बाल संरक्षण आयोग इस पूरे मामले में क्या कार्रवाई करते हैं।

