बिहार में विधानसभा चुनाव की तैयारियां जोरों पर है। सभी राजनीतिक दलों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। इस बीच केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह आज 27 सितंबर को फारबिसगंज आ रहे हैं। फारबिसगंज हवाई अड्डा के मैदान में गृह मंत्री 10 जिले के 49 विधानसभा क्षेत्र के कार्यकर्ताओं के साथ संवाद स्थापित करने के साथ जीत का मूल मंत्र देंगे। शाह के इस चुनावी अभियान से पहले बीजेपी को बड़ा झटका लगा है।

इस्तीफा देते हुए बिहार सरकार पर बोला हमला
अमित शाह के दौरे से पहले नरपतगंज विधानसभा क्षेत्र का चार बार प्रतिनिधित्व करने वाले भाजपा के नेता जनार्दन यादव ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया। भाजपा से इस्तीफा देते हुए कहा कि बिहार में भ्रष्टाचार चरम पर है। थाना हो, प्रखंड कार्यालय या अन्य सरकारी विभाग, बिना रिश्वत कोई काम नहीं हो रहा। वर्तमान भाजपा विधायक जनता की सेवा में सक्षम नहीं हैं और कार्यालयों में कामकाज ठीक से नहीं हो रहा।
लगातार उपेक्षा पर भी जताई नाराजगी
भाजपा के नेता जनार्दन यादव ने पार्टी द्वारा लगातार उपेक्षा पर भी नाराजगी जताई और कहा कि जिले के पुराने भाजपा कार्यकर्ताओं और नेताओं की कोई पूछ नहीं है। पूर्व विधायक होने के नाते क्षेत्र की जनता आज भी कई कार्यों से उनके पास पहुंचते हैं, लेकिन सरकारी कार्यालयों में बिना चढ़ावे के कोई कार्य नहीं होता।
बीजेपी में बाहरी तत्वों के घुसपैठ का आरोप
इसके अलावा उन्होंने भाजपा संगठन में बाहरी तत्वों के घुसपैठ हो जाने से पार्टी के मूल स्वरूप में बदलाव आने की बात कही। इससे दो दिन पहले प्रदेश कार्य समिति सदस्य और अररिया विधानसभा के पूर्व लोजपा प्रत्याशी अजय कुमार झा ने भी पार्टी की नीति पर नाराजगी जताते हुए कहा था कि अगर इस बार उन्हें विधानसभा टिकट नहीं मिला तो वो पार्टी कार्यालय के सामने आत्मदाह करेंगे। बहरहाल, गृह मंत्री के आगमन से पहले पूर्व विधायक का भाजपा से इस्तीफा देने को लेकर सवाल खड़ा होने लगा है।
जनार्दन यादव का सियासी सफर
छात्र आंदोलन की उपज रहे जनार्दन यादव आरएसएस से भी जुड़े रहे और जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में लड़े गए छात्र आंदोलन के दौरान मीसा कानून के तहत दो बार जेल भी गए थे। भागलपुर सेंट्रल जेल में बंद थे। 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर पहली बार नरपतगंज से विधायक बने थे। 1977 के चुनाव में कम उम्र के होने के बावजूद चुनाव जीतने के कारण हाईकोर्ट के आदेश पर उन्हें अयोग्य घोषित कर फिर से चुनाव कराने का निर्देश निर्वाचन आयोग को दिया था। फलस्वरूप 1980 में हुए उपचुनाव में उनकी उम्र पूरी हो जाने पर पार्टी ने उन पर फिर से विश्वास जताते हुए उन्हें अपना उम्मीदवार बनाया और वे जीत भी गए। 1980 के बाद 2000 और 2005 के विधानसभा चुनाव में भाजपा से विधायक बने। वर्ष 2015 में उन्हें फिर से भाजपा ने टिकट दिया था, लेकिन वे जीतने में कामयाब नहीं रहे। उसके बाद से पार्टी में उन्हें उपेक्षा महसूस हो रही थी।