फीस नहीं देने पर धनबाद पब्लिक स्कूल ने छात्रा को किया परीक्षा से वंचित : कहा आपकी परीक्षा अलग से ली जाएगी
मिरर मीडिया धनबाद : ज़ब शिक्षा बांटने वाला शिक्षा का मंदिर खुद व्यापार करने लगे तो उस शिक्षा के मंदिर से शिक्षा किस प्रकार निकलेगी यह बताने की जरुरत नहीं है। एक विद्यालय संचालित करने के लिए कुछ नियम, कानून कायदे होते हैं जिसके तहत विद्यालय संचालित किया जाता है। पर क्या होगा जब विद्यालय नियमों कों ताक पर रखकर अपनी मनमानी पर उतर जाए। फिर यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी की अंधेर नगरी चौपट राजा, टके शेर खाजा और टके शेर भाजा।
जी हाँ ऐसा ही एक मामला धनबाद स्थित धनबाद पब्लिक स्कूल से जुड़ा हुआ है जहां धनबाद पब्लिक स्कूल, मेन ब्रांच ने सरकार कों ठेंगा दिखाते हुए छात्रा को फीस नहीं देने पर परीक्षा से वंचित कर दिया है। बता दें कि धनबाद पब्लिक स्कूल ,मुख्य शाखा में शनिवार से वार्षिक परीक्षा शुरू हुई है। इस दौरान जब एक छात्रा एडमिट कार्ड लेने गई तो फीस ना जमा होने के कारण उसे अलग कर दिया गया।
एडमिट कार्ड न होने के कारण गेट से ही रिसेप्शन की ओर भेज दिया गया ,जहां बाकी छात्रों को (जो एडमिट कार्ड नहीं ले पाए थे उन्हें ) एडमिट कार्ड दिया जा रहा था, लेकिन इस पीड़ित छात्रा को उसके गार्जियन के साथ यह कह कर बाहर भेज दिया गया कि ऐसे बच्चों को आज परीक्षा नहीं देने दी जाएगी। यानी इन बच्चों का एग्जाम किसी और तारीख में ली जाएगी, जिसकी सूचना व्हाट्सएप के माध्यम से दे दी जाएगी। लिहाज़ा मायूस छात्रा और लाचार अभिभावक सोच में पड़ गए।
पूरे मामले में छात्रा के पिता जितेंद्र आर्यन ने बताया कि, “उनकी पुत्री दीक्षा आर्यन धनबाद पब्लिक स्कूल में कक्षा सांतवी की छात्रा है। वे शिक्षा विभाग द्वारा जारी पत्र के मुताबिक ट्यूशन फी विद्यालय को देना चाहते हैं। लेकिन, स्कूल वार्षिक शुल्क सहित अन्य शुल्क के लिए दवाब बना रहा था।
जितेंद्र आर्यन ने बताया कि सरकारी आदेश के मुताबिक ट्यूशन फी देने संबंधी विषय को लेकर प्रिंसिपल से भी मुलाकात की. लेकिन, कोई नतीज नहीं निकला. दीक्षा को परीक्षा का एडमिट कार्ड नहीं दिया गया और उसे परीक्षा देने से भी वंचित कर दिया गया। जितेंद्र आर्यन ने कहा है कि, “दीक्षा को परीक्षा से वंचित करना न केवल सरकारी आदेश का उल्लंघन है, बल्कि संविधान द्वारा प्रदत्त समानता के अधिकार व मानवाधिकार का भी हनन है

वहीं जानकारी दे दें कि झारखंड सरकार के आदेश पत्रांक संख्या 1006 / 25 जून 2020 के अनुसार किसी भी छात्र को किसी भी परिस्थिति में शिक्षा एवं परीक्षा से वंचित नहीं किया जा सकता है। परन्तु फीस के कारण परीक्षा से वंचित कर देना इस बड़े स्कूल के लिए बड़े शर्म की बात है। शिक्षा का समान अधिकार हर एक बच्चे के लिए है और उसे मिलना ही चाहिए। कमी यहाँ की व्यवस्था और नियमों कों कठोर रूप से अनुपालन नहीं करवाने में है जिसके फायदा आए दिन ऐसे विद्यालय उठाते रहते हैं।
हालांकि झारखंड अभिभावक महासंघ झारखंड प्रदेश द्वारा इस मामले में प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो व धनबाद के उपायुक्त संदीप कुमार को ट्वीट कर जानकारी दे दी गई है।
इस संदर्भ में झारखंड अभिभावक महासंघ झारखंड प्रदेश ने भी विरोध जताते हुए घोर निंदा की है झारखंड अभिभावक महासंघ झारखंड प्रदेश के मनोज मिश्रा, मधुरेन्द्र कुमार सिंह, पप्पू सिंह समेत कई पदाधिकारियों ने इस घटना को “राईट टू एजुकेशन” व “झारखंड शिक्षा न्यायाधिकरण” के नियमावली के विरुद्ध बताया है। इतना ही नहीं इसके ख़िलाफ़ बाल अधिकार संरक्षण कानून के तहत विधि सम्मत कार्रवाई की मांग कर रहें है।
देखा जाए तो इन सब के बीच विद्यालयों की फीस शिक्षा पर भारी पड़ गया है और शिक्षा का मतलब ही गौण हो गया है। जहां महत्व शिक्षा का ना हो वहाँ शिक्षा व्यापार बनते देर नहीं लगती।