झारखंड हाईकोर्ट के नए भवन का राष्ट्रपति ने किया उद्घाटन : CJI डीवाई चंद्रचूड़, केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और राज्यपाल राधाकृष्णन भी रहें मौजूद

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मिरर मीडिया : तीन दिवसीय झारखंड दौरे पर देवघर बाबा बैधनाथ के दर्शन के बाद रांची पहुंची राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने बुधवार को झारखंड हाईकोर्ट के नए भवन का रिमोट का बटन दबाकर उद्धघाटन किया। झारखंड के नए और भव्य हाईकोर्ट परिसर के उद्घाटन समारोह में राष्ट्रपति के अलावा चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़, केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और राज्यपाल राधाकृष्णन भी मौजूद रहे।

हाईकोर्ट परिसर का उद्घाटन करते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने न्यायिक प्रक्रिया की जटिलताओं की बात की और आगे कहा कि झारखंड से उनका पुराना नाता रहा है। आपके स्वागत से अभिभूत हूँ। नया भवन बेहतरीन बनाया गया है।

आगे उन्होंने कहा कि न्यायिक प्रक्रिया की जटिलताओं पर बात करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि हमें भरोसा है कि न्यायिक प्रक्रिया की इन जटिलताओं में बदलाव आएगा। उन्होंने कहा कि सीजेआई, कानून मंत्री सहित अन्य कानून के जानकार लोग यहां मौजूद हैं, उन्हें इस समस्या का समाधान निकालना होगा।

बता दें कि झारखंड हाईकोर्ट का नया भवन 165 एकड़ जमीन में फैला परिसर, सुप्रीम कोर्ट के कैंपस से भी है कई गुना बड़ा है। यह 550 करोड़ रुपये की लागत से बना है और 500 सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं। यहाँ दो हॉल में 1200 अधिवक्ता बैठने की जगह है। जबकि 540 चैंबर व महाधिवक्ता भवन अलग से है।

इसके इतर 30 हजार वर्गफीट में बनी लाइब्रेरी व 2000 वाहनों के पार्किंग की भी व्यवस्था है। 25 भव्य वातानुकूलित कोर्ट रूम है। साथ ही सौर ऊर्जा के भी बेहतर इंतजाम है।

इस मौके पर केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि न्यायिक प्रक्रिया में स्थानीय भाषा का अधिक से अधिक उपयोग होना चाहिए, इससे लोगों का न्यायिक प्रक्रिया में भरोसा बढ़ेगा। उच्च न्यायिक सेवा आदिवासी समुदाय के प्रतिनिधित्व पर चिंता जाहिर करते हुए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने राज्यों की न्यायिक सेवा में आरक्षण लागू करने की वकालत की।

वहीं न्यायिक व्यवस्था में देश की नागरिकों की आस्था पर बात करते हुए चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि देश के नागरिकों को भारत की न्यायिक व्यवस्था में आस्था और इस आस्था को कायम रखने की जरूरत है। सीजेआई ने कहा कि अगर किसी को शीघ्र न्याय नहीं मिलेगा तो वह न्याय व्यवस्था में विश्वास क्यों रखेगा। उन्होंने कहा की निचली अदालत को अधीनस्थ नहीं मानते हुए बराबरी का दर्जा देना होगा, जिससे जज की गरिमा और गौरव बरकरार रहे।

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