जॉर्ज आज भी मुजफ्फरपुर की जनता के दिल में रचे बसे हैं, सड़क से संसद तक का रहा सफर, कभी अर्श तो कभी फर्श

Manju
By Manju
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जमशेदपुर : देश के पूर्व प्रतिरक्षा मंत्री, जाने-माने अंतरराष्ट्रीय समाजवादी व अंतर्राष्ट्रीय मजदूर जॉर्ज फर्नांडिस का मुजफ्फरपुर की जनता से एक पोस्टर था। जिसमें उनके हाथों में बेड़ियां थी और उन्हें पुलिस के तीन जवान ने कैद कर रखा था। नीचे सिर्फ एक वाक्य था-‘यह जंजीर मेरे हाथ को नहीं भारत के लोकतंत्र को जकड़े हुए हैं।’ – जॉर्ज फर्नांडिस। उसके नीचे लिखा था। मुजफ्फरपुर की जनता इसे तोड़ेगी। इसी पोस्टर और जॉर्ज फर्नांडिस के जेल सलाखों के पीछे हथकड़ी लगी कट आउट को देखकर मुजफ्फरपुर की जनता ने 1977 में विश्व के जनतंत्र की सबसे बड़ी पंचायत लोकसभा में अपार बहुमत के साथ पहुंचा दिया। तब जॉर्ज बड़ोदरा डायनामाइट कांड में मुख्य अभियुक्त के रूप में जेल में कैद थे और उनके ऊपर मृत्युदंड तक का तलवार लटक रहा था। वह लोकनायक जयप्रकाश नारायण की एक अपील पर 3 लाख से भी ज्यादा वोटों से जीते। उनकी जीत का डंका पूरे देश और दुनिया में बजा और मुजफ्फरपुर एक बार फिर से सुर्खियों में आया। समाजवादी नेता डॉ. हरेंद्र कुमार बताते हैं कि हम लोग इस पोस्टर के लिए पागल थे। खुद साइकिल से घूम-घूम कर प्रचार करते थे। गोंद लगाकर पोस्टर को दीवाल से चिपकाते थे।

बिहार विश्वविद्यालय के छात्र नेता रहे अनिल कुमार सिन्हा कहते हैं कि लोग जॉर्ज को बिना देखे ही पागल थे। शहर से दूर देहात तक सभाओं में उनके लिए भारी भीड़ उमड़ती थी। उनके लिए होने वाले कंपनीबाग मैदान में नेताओं की सभा में भाषण सुनने के लिए कभी-कभी शाम से सुबह हो जाती थी। पूर्व विधान पार्षद गणेश भारती भी बताते हैं कि वहीं स्कूली छात्र थे लेकिन सारी कहानी को दोहराते हुए कहते हैं कि गजब का जुनून था लोगों में। चारों तरफ एक ही नारा लगता था- जेल का फाटक टूटेगा, जॉर्ज हमारा जीतेगा। जॉर्ज 77 में जब मुजफ्फरपुर से दूसरी बार संसद पहुंचे। तब केंद्र में पहली बार गैर कांग्रेसी जनता पार्टी की सरकार बनी और जॉर्ज केंद्रीय मंत्री बने। पहले संचार फिर उद्योग विभाग को संभाला।
जॉर्ज 1977 से पहले भी भारतीय राजनीति में अपनी पीढ़ी के हीरो बन चुके थे। 1967 में पहली बार मुंबई दक्षिणी से एसके पाटिल को हराकर सबको चौंका दिया था। एसके पाटिल तब कांग्रेस के दिग्गज नेता थे। जब उन्होंने एसके पाटिल को हराया था, मुंबई महानगर पालिका के पार्षद थे। जॉर्ज जिनकी राजनीति सड़क से शुरू हुई और संसद तक पहुंची। वह केंद्रीय प्रतिरक्षा मंत्री से लेकर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के संयोजक तक रहे। एक मजदूर नेता से राजनेता बने। उनके नेतृत्व में मुंबई की टैक्सी हड़ताल से पूरा महानगर ठहर गया। 1974 में देशव्यापी रेल व अन्य केंद्रीय कर्मचारियों के हड़ताल से पूरे देश का चक्का जाम हुआ। उनके नेतृत्व में पोखरण का परमाणु परीक्षण हुआ। एक वैज्ञानिक अब्दुल कलाम आजाद देश के राष्ट्रपति बने। उनके जीवन में शुरू से अंत तक काफी उतार-चढ़ाव रहा। कभी अर्श तो कभी फर्श चलता रहा।

पहली बार जब मोरारजी देसाई के जनता सरकार में केंद्रीय मंत्री बने, तो यह सरकार मात्र 3 साल ही चल सकी। फिर भी इस छोटी सी अवधि में उन्होंने मुजफ्फरपुर को दूरदर्शन, आईडीपीएल, भारत वैगन, बेला औद्योगिक प्रांगण की सौगात दी। 1980 में देश में कांग्रेस सरकार की वापसी हो गई। वह मुजफ्फरपुर से ही फिर चुनाव जीते लेकिन विपक्ष में होने के कारण अपने सपनों को आकार नहीं दे सके। 1990 में जब विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व में जनता दल की सरकार बनी और वह केंद्रीय रेल मंत्री बने। तब कांटी थर्मल पावर और मुजफ्फरपुर मॉडल रेलवे स्टेशन का उपहार दिया। लेकिन यह सरकार भी दुर्भाग्य से एक साल ही चल सकी। जॉर्ज साहब के साथ सरकार में मंत्री बनी उषा सिंह कहती है कि जॉर्ज साहब ने जितना मुजफ्फरपुर के लिए किया। उस इतिहास को शायद ही कोई दोहरा पाएगा। आज तो मुजफ्फरपुर की आवाज संसद तक पहुंच नहीं पाती।
जॉर्ज मुजफ्फरपुर से पांच बार सांसद रहे। 2004 में अंतिम बार लोकसभा के लिए चुने गए। 2009 में बीमार होने के बावजूद निर्दलीय चुनाव लड़े और अस्वस्थ होने के कारण चुनाव खत्म होने से पहले ही लौट गए। इस चुनाव में उनकी हार हुई। लेकिन कुछ दिनों के बाद उन्हें राज्यसभा में निर्विरोध भेजने का फैसला किया गया। जॉर्ज ने अपने अंतिम चुनाव में भी कहा था कि वह मुजफ्फरपुर के लोगों के आजीवन ऋणी हैं। अगर इस बार जीते तो इसी शहर में एक कुटिया बनाकर रहेंगे। लेकिन 2009 के बाद लगातार अस्वस्थ हो जाने और अल्जाइमर का मरीज हो जाने के कारण उनकी जिंदगी का अंत काफी दर्दनाक रहा। कोई एक दशक से भी ज्यादा गुमनामी जिंदगी रही। पत्रकार प्रमोद कुमार कहते हैं कि जॉर्ज दिवंगत हो सकते हैं लेकिन मुजफ्फरपुर के लोगों के जेहन से विस्मृत नहीं।

प्रस्‍तुति-प्रभात कुमार

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