
देश : इसरो की एक के बाद एक सफलता के बाद इसरो प्रमुख एस सोमनाथ ने बच्चों और युवाओं को जागरूक करने के लिए आत्मकथा लिखी है। उनका यह प्रयास उन प्रतिभावानों को प्रेरित करना है, जिनमें अभी विश्वास की कमी है। इसमें उन्होंने कालेज के दिनों में सामने आने वाली मुश्किलों का जिक्र किया है।
बता दें कि इस आत्मकथा में इसरो प्रमुख ने अपनी कई मुश्किलों को लिखा है । जैसे बस यात्रा खर्च वहन न कर पाने के कारण पुरानी साइकिल से कालेज जाना। इंजीनियरिंग कालेज के हास्टल की फीस के पैसे न होने पर छोटे लाज में रहने को मजबूर होने का जिक्र है। आत्मकथा निलावु कुदिचा सिम्हांगल मलयालम में लिखी गई है, जो बाजार में नवंबर में उपलब्ध होगी। मलयालम में पुस्तक लिखने का कारण पूछे जाने पर उन्होंने कहा, इसमें उन्हें सहजता महसूस होती है।
वहीं, सोमनाथ ने कहा कि शुरुआती दौर में मुझे कोई भी दिशा दिखाने वाला नहीं था। मुझे यह भी पता नहीं था कि बीएससी करूं या इंजीनियरिंग। आत्मकथा लिखने का उद्देश्य लोगों को प्रतिकूलताओं से जूझते हुए सपनों को पूरा करने के लिए प्रेरित करना है। चंद्र मिशन ने समाज में बड़ा प्रभाव डाला है। कितने लोग, विशेषकर बच्चे इसकी सफलता से प्रेरित हैं। वे समझ गए हैं कि भारत व भारतीय ऐसे महान कार्य कर सकते हैं।
साथ ही भाग्य या मेहनत के बारे में पूछे सवाल पर उन्होंने कहा कि शुरुआत में कुछ भाग्य का साथ मिलना चाहिए, पर अपने रास्ते में आने वाले अवसरों को स्वीकार करने और उपयोग करने के लिए तैयार रहना चाहिए। कई लोग एक उद्देश्य के साथ हमारे जीवन में आएंगे। उनकी भूमिका का एहसास करने में हमें सक्षम होना चाहिए।