मिरर मीडिया : झारखंड में ED की कार्रवाई से सत्ता दल की हेमंत सरकार की छवि कहीं ना कहीं धूमिल जरूर देखने को मिल रही है। ऐसा इसलिए कि हेमंत सरकार के गठबंधन का साथ देने वालों में कमी होती जा रही है कल तक झारखंड सरकार के पक्षधर आज उनके ख़िलाफ बोल रहें हैं। लिहाजा इसे झारखंड की राजनीति में राजनीतिक उथल-पुथल की शुरुआत होना कहा जाना अतिश्योक्ति नहीं होगी।
बता दें कि कभी हेमंत सरकार को समर्थन देने वाले और उनकी प्रशंसा करने वाले सरयू राय की दूरदृष्टि अब बदल चुकी है। उनकी माने तो हेमंत सरकार संकट में है और सरकार मुश्किल से यह साल पूरा कर पाएगी।
मसलन सरकार का जल्द ही पतन हो जाएगा। भ्रष्टाचार की आड़ में उन्होंने सरकार पर निशाना साधा है। यहां तक कह डाला है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को उन्होंने ऐसी कई शिकायतों से संबंधी साक्ष्य उपलब्ध कराए, लेकिन कार्रवाई करने की बजाय वे अनदेखी कर रहे हैं।
जिस मुख्यमंत्री के पास भ्रष्टाचार के विरुद्ध कार्रवाई करने का समय नहीं है, उसे पद पर नहीं रहना चाहिए। यही नहीं, हेमंत सोरेन के खिलाफ ED की कार्रवाई को लेकर उठाए जाने वाले राजनीतिक सवालों को भी उन्होंने सिरे से खारिज कर दिया है। ज्ञात रहें कि ये वही सरयू राय है जो पिछले विधानसभा चुनाव में तत्कालीन सीएम रघुवर दास को हराया था और हेमंत सोरेन को विधानसभा चुनाव में समर्थन दिया था तो वे भी उनके पक्ष में प्रचार करने दुमका पहुंच गए थे।
वहीं इसके इतर हुसैनाबाद के NCP विधायक कमलेश कुमार सिंह भी अब हेमंत सोरेन के साथ नहीं हैं। उन्होंने लगभग चार वर्ष तक उनका साथ दिया, लेकिन हुसैनाबाद को जिला नहीं बनाने की मांग नहीं माने जाने के कारण पिछले दिनों पत्र देकर बकायदा सरकार से समर्थन वापस ले लिया है। बदली राजनीतिक परिस्थिति में वे भाजपा के साथ मिलकर अपने राजनीतिक सफर को आगे बढ़ाना चाहते हैं।
हालांकि समर्थन वापस लेने से फिलहाल हेमंत सरकार पर इसका असर नहीं पड़ने वाला। 81 सदस्यों वाली झारखंड विधानसभा में हेमंत सोरेन को लगभग 50 विधायकों का समर्थन प्राप्त है। लेकिन ईडी की कार्रवाई और भ्रष्टाचार के विभिन्न आरोपों के कारण उनकी मुश्किलें बढ़ सकती है।