आज शारदीय नवरात्रि का सातवां दिन है, जिसे माँ दुर्गा के सातवें स्वरूप, माँ कालरात्रि की उपासना के लिए समर्पित किया जाता है। माँ कालरात्रि को हिंदू धर्म में देवी काली, महाकाली, भद्रकाली और अन्य शक्तिशाली रूपों के साथ जोड़ा जाता है। इनके स्वरूप का वर्णन विकराल और भयानक रूप में किया गया है, लेकिन इनका नाम ‘शुभंकारी’ है, जो यह बताता है कि यह हमेशा भक्तों को शुभफल ही प्रदान करती हैं। इस दिन माँ कालरात्रि की पूजा का विशेष महत्व है क्योंकि यह सभी प्रकार के भय और कष्टों से मुक्ति दिलाती है।
माँ कालरात्रि का स्वरूप
माँ कालरात्रि का स्वरूप अत्यंत भयानक और विकराल बताया गया है। इनका रंग काला है, उनके तीन नेत्र हैं, जो अत्यधिक तेजस्वी हैं, और उनके बाल खुले हुए हैं। उनके गले में मुंडों की माला है, और वे गर्दभ (गधे) की सवारी करती हैं। उनके हाथ में खड्ग और अन्य अस्त्र-शस्त्र होते हैं, जो उनके दुष्टों का विनाश करने वाले रूप को दर्शाते हैं। मान्यता है कि उनका दर्शन करने से ही बुरी शक्तियाँ दूर भाग जाती हैं और भक्तों के सभी कष्टों का अंत होता है।
पूजा विधि और शुभ मुहूर्त
वैदिक पंचांग के अनुसार, माँ कालरात्रि की पूजा करने का शुभ मुहूर्त सुबह 11:45 से 12:30 के बीच है। इस समय पूजा करने से भक्तों को विशेष लाभ मिलता है। नवरात्रि के सातवें दिन माँ कालरात्रि की पूजा करने के लिए भक्त सुबह उठकर स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करते हैं। सबसे पहले कलश की पूजा की जाती है, फिर माँ कालरात्रि के सामने दीपक जलाकर उन्हें अक्षत, रोली, पुष्प, और फल अर्पित किए जाते हैं। माँ कालरात्रि को विशेष रूप से लाल रंग के फूल, जैसे गुड़हल या गुलाब, प्रिय होते हैं, इसलिए इन्हें पूजा में अर्पित करना शुभ माना जाता है।
भोग और मंत्र
माँ कालरात्रि को गुड़ का भोग लगाना बेहद शुभ माना जाता है। मान्यता है कि इससे भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके अलावा, भक्त गुड़ से बनी मिठाइयों और हलवे का भी भोग लगा सकते हैं। पूजा के अंत में माँ कालरात्रि की आरती की जाती है और विशेष मंत्रों का जाप किया जाता है।
प्रार्थना मंत्र:
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्त शरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोह लताकण्टकभूषणा।
वर्धन मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥
स्तुति मंत्र:
या देवी सर्वभूतेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
माँ कालरात्रि की महिमा और पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, जब शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज जैसे राक्षसों ने धरती पर अत्याचार मचाया, तब देवी पार्वती ने माँ दुर्गा का रूप धारण कर उनका अंत किया। रक्तबीज को यह वरदान था कि उसकी खून की हर बूंद से एक नया राक्षस उत्पन्न होगा। इस चुनौती का सामना करने के लिए माँ दुर्गा ने अपने तेज से माँ कालरात्रि को उत्पन्न किया। माँ कालरात्रि ने रक्तबीज के खून को जमीन पर गिरने से पहले ही अपने मुंह में भर लिया, जिससे उसकी मृत्यु संभव हो सकी। इस प्रकार, माँ कालरात्रि ने उस दानव का अंत कर देवताओं को भयमुक्त किया।
माँ कालरात्रि की उपासना से लाभ
माँ कालरात्रि की पूजा करने से भक्तों को भय, शत्रु, और असुरी शक्तियों से मुक्ति मिलती है। यह भी कहा जाता है कि इनकी कृपा से ग्रह-बाधाएं दूर होती हैं और व्यक्ति की सभी विघ्न-बाधाएं समाप्त हो जाती हैं। माँ कालरात्रि की उपासना से साधक भयमुक्त होकर समस्त संसार में सुख-समृद्धि प्राप्त करता है।
इस प्रकार, नवरात्रि का सातवां दिन माँ कालरात्रि की भक्ति और आराधना के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, और जो भक्त सच्चे मन से उनकी पूजा करते हैं, वे जीवन में भयमुक्त होकर समस्त सफलताओं को प्राप्त करते हैं।