नई दिल्ली: नरेंद्र मोदी सरकार ने मंगलवार को विदेशी यात्राओं से जुड़े कानूनों में सुधार के लिए इमिग्रेशन और फॉरेनर्स बिल संसद में पेश किया। इस विधेयक के तहत पासपोर्ट अधिनियम, 1920; विदेशी पंजीकरण अधिनियम, 1939; विदेशी अधिनियम, 1946; और इमिग्रेशन अधिनियम, 2000 को बदलने का प्रस्ताव रखा गया है।
गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने बिल पेश करते हुए कहा कि प्रस्तावित कानून राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है और इसके तहत भारत आने वाले विदेशी नागरिकों पर निगरानी मजबूत होगी। उन्होंने कहा, “भारत आर्थिक रूप से तेजी से बढ़ रहा है, ऐसे में सरकार अधिक पर्यटकों को सुविधाएं देने के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन देश की सुरक्षा हमारी प्राथमिकता है।”
नए बिल के प्रमुख प्रावधान:
- संस्थानों की जिम्मेदारी: अस्पतालों और शैक्षणिक संस्थानों को विदेशी नागरिकों के बारे में अधिकारियों को जानकारी देनी होगी।
- एयरलाइंस की जवाबदेही: जहाजों और विमानों को उन यात्रियों को वापस ले जाना होगा जिन्हें भारत में प्रवेश से मना किया गया है।
- डाटा रिपोर्टिंग: एयरलाइंस और शिपिंग कंपनियों को यात्रियों और चालक दल की जानकारी पहले से सरकार को देनी होगी।
- सख्त सजा:
- जाली पासपोर्ट या फर्जी यात्रा दस्तावेजों के इस्तेमाल पर 2 से 7 साल तक की सजा।
- वीजा अवधि से अधिक रुकने पर 3 साल तक की जेल और 3 लाख रुपये का जुर्माना।
विपक्ष ने जताई आपत्ति
जैसे ही यह विधेयक संसद में पेश किया गया, विपक्ष ने इस पर सवाल उठाए। कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी और तृणमूल कांग्रेस (TMC) सांसद सौगत रॉय ने विधेयक की आलोचना की। तिवारी ने कहा कि इसमें इमिग्रेशन अधिकारियों के फैसलों के खिलाफ अपील की कोई व्यवस्था नहीं है, जो न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है। उन्होंने मांग की कि इसे संसदीय चयन समिति के पास भेजा जाए।
टीएमसी सांसद सौगत रॉय ने कहा कि विधेयक के प्रावधान नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन कर सकते हैं। हालांकि, सरकार का कहना है कि यह कानून भारत की सुरक्षा को मजबूत करेगा और वैश्विक यात्राओं को सुव्यवस्थित करने में मदद करेगा।
अब देखना होगा कि यह विधेयक संसद में कितनी चर्चा के बाद पारित होता है या इसे किसी संसदीय समिति को भेजा जाता है।