डिजिटल डेस्क |मिरर मीडिया :अमेरिका और ईरान के बीच न्यूक्लियर डील को लेकर बातचीत जारी है।2018 में खुद ऐसे ही एक डील से अमेरिका को बाहर निकालने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने दूसरे कार्यकाल में एक नई डील की कोशिश में हैं।अमेरिका और ईरान के बीच हाल ही में पहले दौर की बातचीत ओमान में हुई है। अब अगले दौर की बातचीत 19 अप्रैल को होगी। एक समाचार एजेंसी के माध्यम से ईरानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता एस्माईल बाघेई ने कहा कि विचार-विमर्श के बाद यह निर्णय लिया गया कि शनिवार को होने वाली दूसरे दौर की वार्ता की मेजबानी मस्कट करेगा।
अपनी मर्जी की डील चाहते हैं ट्रंप
अमेरिका के विशेष दूत स्टीव विटकॉफ ने साफ-साफ कहा है कि अगर तेहरान को वाशिंगटन के साथ कोई डील करनी है तो अपने परमाणु संवर्धन कार्यक्रम यानी न्यूक्लियर एनरिचमेंट प्रोग्राम को रोकना और समाप्त करना होगा। ईरान को अपनी यूरेनियम को एनरिच करने से जुड़ीं गतिविधियों पर रोक लगानी होगी और बदले में उसे अमेरिकी प्रतिबंधों से राहत मिलेगी। इस तरह ईरान के अधिकारियों के साथ वार्ता के एक और दौर से पहले अमेरिका ने अपने मांगों का स्तर बढ़ा दिया है।
वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी अपने अगले कदम को फूंक-फूंककर रख रहे हैं। ट्रंप अपनी मर्जी का डील करना चाहते हैं, चाहे उसके लिए कोई भी रणनीति अपनानी पड़े।वार्ता विफल होने की स्थिति में, ईरान पर दबाव बनाने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति ने सैन्य योजनाओं को बैकअप के रूप में रखा है।
ट्रंप बढ़ा रहे दबाव?
अमेरिका-ईरान वार्ता के अगले दौर से पहले ही वाशिंगटन ने इस क्षेत्र में दूसरा विमानवाहक पोत भेज दिया है। यूएसएस कार्ल विंसन और उसका स्ट्राइक ग्रुप अरब सागर से फारस की खाड़ी की ओर बढ़ गया है। एक दूसरा अमेरिकी विमानवाहक पोत – यूएसएस हैरी एस. ट्रूमैन ने भी इसी तरह की कार्रवाई जारी रखी है। एक दूसरे स्ट्राइक ग्रुप को ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली होसैनी खामेनेई के सामने अपने इरादे स्पष्ट करने के लिए ट्रंप द्वारा हमलों को तेज करने के एक कदम के रूप में देखा जा रहा है।
अमेरिका ने 2018 में न्यूक्लियर डील से खुद को किया था बाहर
अमेरिका ने बराक ओबामा के कार्यकाल में ईरान ने साथ न्यूक्लियर प्रोग्राम को लेकर एक डील पर साइन किया था, जिसे ज्वाइंट कॉम्प्रिहेंसिव एक्शन प्लान के रूप में जाना जाता है। ईरान ने जुलाई 2015 में छह प्रमुख देशों – ब्रिटेन, चीन, फ्रांस, जर्मनी, रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ एक परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इस समझौते के तहत ईरान प्रतिबंधों में छूट के बदले अपनी परमाणु गतिविधियों को सीमित करने पर सहमत हुआ था। हालांकि, मई 2018 में अपने पहले कार्यकाल के दौरान ट्रंप ने एकतरफा तरीके से अपने देश को इस समझौते से बाहर निकाल लिया और ईरान पर फिर से प्रतिबंध लगा दिए थे, जिससे तेहरान को समझौते के तहत अपनी प्रतिबद्धताओं को कम करना पड़ा।
भारत के लिए इस वार्ता के मायने
इधर, भारत ने अमेरिका और ईरान के बीच होने वाली डील पर नजर बनाए रखी है। दोनों देशों के बीच हो रही इस वार्ता का असर भारत पर भी पड़ सकता है। भारत के लिए ये वार्ता इसलिए अहम है क्योंकि अमेरिका और ईरान दोनों के साथ भारत के कूटनीतिक संबंध हैं। अमेरिका और ईरान के बीच बात बन जाए, ये भारत के लिए अच्छा होगा क्योंकि भारत कभी ईरान के तेल का बड़ा खरीदार था। कच्चे तेल के लिए भारत ईरान पर काफ़ी निर्भर था। 2019 से पहले ईरान से भारत का तेल आयात 11 फ़ीसदी था। लेकिन ट्रंप के पहले प्रशासन के दौरान जब ईरान पर प्रतिबंध वापस लगा दिया गया, तो भारत को ईरान से अपना तेल आयात रोकना पड़ा ताकि उस पर किसी तरह का सेकेंड्री प्रतिबंध न लगे।
अब भारत जो तेल सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और इराक से खरीद रहा है, वो ज़्यादा महंगा पड़ रहा है। ऐसे में ईरान पर प्रतिबंध जारी रहने से यही स्थिति बरकरार रहेगी। अगर भारत ईरान से तेल खरीदता है, तो वो सस्ता होगा। इससे भारत का जो व्यापार घाटा है, उसमें थोड़ी राहत मिल सकती है। घरेलू ईंधन के मूल्य भी स्थिर हो सकते हैं।