बिहार की धार्मिक और ऐतिहासिक नगरी गया को अब एक नया नाम मिल गया है। नीतीश कैबिनेट में ‘गया’ का नाम बदलकर ‘गया जी’ किए जाने के प्रस्ताव पर मुहर लगा दी गई। जिले का नाम गया जी करने को लेकर लोग काफी लंबे समय से मांग कर रहे थे, जो अब पूरी हो गई है। लोगों का कहना है, कि गयाजी नाम होने से यहां के पौराणिक और धार्मिक अध्याय को पूरे विश्व में और प्रसिद्ध मिलेगी।

लंबे समय से की जा रही थी मांग
गया को हिंदू धर्म में मोक्ष प्राप्ति का प्रमुख स्थल माना जाता है। पिंडदान और श्राद्ध कर्म के लिए यह नगरी देशभर से श्रद्धालुओं को आकर्षित करती है। ऐसे में स्थानीय संतों, गयावाल पंडों और जनप्रतिनिधियों की ओर से लंबे समय से यह मांग की जा रही थी कि गया को ‘गया जी’ के नाम से संबोधित किया जाए, ताकि इसकी धार्मिक गरिमा और आधिकारिक मान्यता में सम्मान सूचक परिवर्तन हो सके।
जानें इस धार्मिक नगरी की पौराणिक कथा
हिंदू ग्रंथों के अनुसार त्रेता युग में ‘गयासुर’ नामक एक राक्षस हुआ करता था, जो भगवान विष्णु की तपस्या में लीन रहता था। भक्त की भक्ति देखकर भगवान विष्णु ने गयासुर से वरदान मांगने को कहा। भगवान विष्णु से उसने कहा कि आप मेरे शरीर में वास करें, ताकि जो कोई मुझे देखे उसके समस्त पाप नष्ट हो जाएं। वह जीव पुण्य आत्मा हो जाए और उसे स्वर्ग में जगह मिले। वरदान के बाद जो कोई भी उसे देखता उसके सारे कष्ट दूर हो जाते।
विधि के विधान को समाप्त होता देखकर ब्रह्मा जी गयासुर के पास गए। उन्होंने कहा, हे परमपुण्य गयासुर! मुझे ब्रह्म-यज्ञ करना है और तुम्हारे समान पुण्य-भूमि मुझे कहीं नहीं मिली। गयासुर के लेटते ही 5 कोस तक उसका शरीर फैल गया। उसके शरीर पर बैठकर सभी देवी-देवताओं ने यज्ञ किया।
विशाल यज्ञ के बाद भी गयासुर का शरीर अस्थिर रहा। ये देख देवता चिंतित हो गये। देवाताओं ने एक और योजना बनाई। सभी ने एक मत होकर भगवान विष्णु से कहा, अगर आप भी यज्ञ में शामिल हो जायें तो फिर गयासुर का शरीर स्थिर हो सकता है। कहा जाता है कि भगवान विष्णु की क्रिया से गयासुर स्थिर हो गया। त्याग को देखकर भगवान विष्णु ने गयासुर से वरदान मांगने के लिए कहा।
गयासुर ने भगवान विष्णु से कहा कि आप मुझे पत्थर की शिला बना दें और यहीं स्थापित कर दें। साथ ही मेरी इच्छा है कि आप सभी देवताओं के साथ अप्रत्यक्ष रूप से इसी शिला पर विराजमान रहें ताकि यह स्थान मृत्यु के बाद किए जाने वाले धार्मिक अनुष्ठानों के लिए तीर्थस्थल बन जाए। ऐसे में विष्णु ने कहा गयासुर तुम धन्य हो। तुमने लोगों के जीवित अवस्था में भी कल्याण का वरदान मांगा और मृत्यु के बाद भी मृत आत्माओं के कल्याण के लिए वरदान मांग रहे हो। तुम्हारी इस कल्याणकारी भावना से पितरों के श्राद्ध-तर्पण आदि करने यहां आएंगे और सभी आत्माओं को पीड़ा से मुक्ति मिलेगी। तब से ही यहां पर पितरों का श्राद्ध तर्पण किया जाता है।