डिजिटल डेस्क/ कोलकाता: कलकत्ता हाई कोर्ट ने एक अहम टिप्पणी में कहा है कि बच्चों का दादा-दादी के साथ रहना उनके सर्वांगीण विकास के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है जितना माता-पिता के साथ। कोर्ट ने कहा कि दादा-दादी से कहानियां सुनने और उनके जीवन के अनुभवों को जानने से बच्चों के साथ रिश्ते मजबूत होते हैं, जिसका उनके व्यक्तित्व पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यह टिप्पणी आठ साल की एक बच्ची से जुड़े मामले में आई, जिसके माता-पिता, दोनों चिकित्सक, अलग रहते हैं। बच्ची अपनी मां के साथ रहती है। अलीपुर की निचली अदालत ने पिता को बच्ची के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए तीन दिन बात करने और एक दिन मिलने की अनुमति दी थी। पिता ने गर्मियों की छुट्टियों में बेटी को 15 दिन अपने साथ रखने की मांग की थी, जिसका मां ने विरोध किया।
निचली अदालत के अतिरिक्त जिला न्यायाधीश ने बच्ची से निजी तौर पर बात कर उसकी इच्छा जानी। बच्ची ने बताया कि उसे अपने पिता के साथ 15 दिन रहने में कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन मां के साथ रहना उसे ज्यादा खुशी देता है। इस पर निचली अदालत ने 15 के बजाय सात दिन की अनुमति दी। मां ने इस फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील की।
हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान पिता के वकील ने तर्क दिया कि बच्ची जब उनके साथ रहेगी, तब दादा-दादी भी साथ होंगे, जिससे उसे कोई असुविधा नहीं होगी।
जस्टिस हिरणमय भट्टाचार्य की पीठ ने कहा कि बच्चों को अपने पिता के साथ समय बिताने की भी जरूरत है, क्योंकि यह उनके विकास के लिए महत्वपूर्ण है। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि बच्ची जब चाहे अपनी मां से फोन पर बात कर सकेगी और उसे कोलकाता के बाहर कहीं नहीं ले जाया जाएगा। यह फैसला न केवल बच्चों के पालन-पोषण में दादा-दादी की भूमिका को रेखांकित करता है, बल्कि माता-पिता के बीच तनावपूर्ण रिश्तों में बच्चों के हितों को प्राथमिकता देने की जरूरत पर भी जोर देता है।