हजारीबाग में हाल ही में नकली पनीर के एक बड़े जाल का भंडाफोड़ हुआ है, जिसने पूरे शहर में हड़कंप मचा दिया है। जिला प्रशासन की छापेमारी में करीब 4000 किलो मिलावटी पनीर जब्त किया गया है। इस खुलासे के बाद लोगों के मन में यह सवाल गहराता जा रहा है — क्या रोज़मर्रा में खाया जाने वाला पनीर सुरक्षित है?
प्रशासन ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए शहरभर के होटलों, रेस्टोरेंटों और डेयरी दुकानों की जांच शुरू कर दी है। हजारीबाग के उपायुक्त शशि कुमार सिंह ने सख्त निर्देश दिए हैं कि स्वास्थ्य से कोई समझौता नहीं होगा। उन्होंने चेतावनी दी है कि ज़हरीले कारोबार में शामिल किसी भी व्यक्ति को बख्शा नहीं जाएगा।
समाजसेवी मनोज गुप्ता के अनुसार, झंडा चौक, डेली मार्केट, बड़ा बाजार और सुरेश कॉलोनी जैसे इलाकों में लंबे समय से नकली पनीर का अवैध धंधा चल रहा था। उन्होंने कहा, “जनता खुद भी इस स्थिति के लिए जिम्मेदार है क्योंकि सस्ते के चक्कर में गुणवत्ता की अनदेखी कर बैठती है।”
इस मुद्दे पर चिकित्सक डॉ. निखिल आनंद ने गहरी चिंता जताई है। उनका कहना है कि नकली पनीर में इस्तेमाल होने वाले रसायन लीवर और पाचन तंत्र को नुकसान पहुंचा सकते हैं। उन्होंने इसे धीमा ज़हर करार देते हुए जनता को सचेत रहने की सलाह दी है।
स्थानीय डेयरी किसान काली गोप ने भी प्रशासन से सख्त कार्रवाई की मांग की है। उन्होंने कहा कि शुद्ध पनीर की लागत 450 से 500 रुपये प्रति किलो आती है, जबकि नकली पनीर केवल 200 से 260 रुपये किलो में बिकता है। इससे असली उत्पादकों का आर्थिक नुकसान हो रहा है।
यह मामला केवल मिलावट नहीं, बल्कि जनस्वास्थ्य पर सीधा हमला है। हजारीबाग की यह घटना हम सबको यह सोचने पर मजबूर करती है —
“क्या हमारी थाली में परोसा गया हर निवाला वाकई सुरक्षित है?”