केंद्र सरकार द्वारा वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन के लिए लाए गए नए कानून की संवैधानिक वैधता को लेकर सुप्रीम कोर्ट में लगातार तीसरे दिन तीखी बहस हुई। चीफ जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की पीठ ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया है। हालांकि कोर्ट ने यह नहीं बताया कि फैसला कब सुनाया जाएगा।
सरकार ने क्या कहा:
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र की ओर से दलील देते हुए कहा कि वक्फ इस्लामी अवधारणा है, लेकिन यह इस्लाम का “अनिवार्य हिस्सा” नहीं है। उन्होंने इसे अन्य धर्मों में दान जैसी परंपरा बताया और कहा कि सरकार वक्फ संपत्तियों के बेहतर प्रबंधन के लिए कानून बना सकती है।
सरकार ने यह भी कहा कि नया कानून पारदर्शिता लाएगा और वक्फ संपत्तियों पर अवैध कब्जों को रोकेगा। वक्फ बाय यूजर की अवधारणा को सरकार ने मौलिक अधिकार न मानते हुए खारिज किया। साथ ही, यह भी स्पष्ट किया कि रजिस्ट्रेशन के बिना अब कोई भी संपत्ति वक्फ नहीं मानी जाएगी।
याचिकाकर्ताओं की आपत्ति:
वहीं, विपक्षी पक्ष – जिसमें असदुद्दीन ओवैसी, मोहम्मद जावेद और कई मुस्लिम संगठनों की ओर से कपिल सिब्बल, राजीव धवन, हुजैफा अहमदी और अभिषेक मनु सिंघवी जैसे वरिष्ठ वकील पेश हुए – ने कानून की कई खामियां गिनाईं।
कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि इससे लखनऊ का इमामबाड़ा और संभल की जामा मस्जिद जैसी ऐतिहासिक वक्फ संपत्तियां भी छीनी जा सकती हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि पाँच साल प्रैक्टिसिंग मुस्लिम होने की शर्त संविधान के अनुच्छेद 15 का उल्लंघन है और यह भेदभावपूर्ण है।
दोनों पक्षों की प्रमुख दलीलें:
सरकार: वक्फ धर्म का अभिन्न हिस्सा नहीं; कानून से पारदर्शिता आएगी; रजिस्ट्रेशन अनिवार्य होगा
याचिकाकर्ता: वक्फ इस्लाम का आवश्यक हिस्सा; कानून से संपत्तियों पर कब्जे का रास्ता खुलेगा; गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति हस्तक्षेप है
मामले की पृष्ठभूमि क्या है?
वक्फ का मतलब है किसी व्यक्ति द्वारा अपनी संपत्ति को अल्लाह के नाम पर हमेशा के लिए दान कर देना, ताकि उसका इस्तेमाल मस्जिद, दरगाह, मदरसा, कब्रिस्तान, अनाथालय या अन्य धार्मिक-धार्मिक कार्यों में किया जा सके। भारत में करोड़ों की वक्फ संपत्तियां हैं, और ये देशभर में फैली हैं।
मोदी सरकार ने हाल ही में वक्फ कानून में संशोधन किया, जिसमें वक्फ की मान्यता, प्रबंधन, विवाद समाधान और बोर्ड की संरचना से जुड़े कई बदलाव किए गए हैं। इस कानून को लेकर मुस्लिम संगठनों और नेताओं ने विरोध जताया और सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर कर दीं।
सरकार की दलीलें क्या हैं?
- वक्फ इस्लाम का “अनिवार्य हिस्सा” नहीं है
सरकार ने कहा कि वक्फ इस्लामी अवधारणा जरूर है, लेकिन इसे इस्लाम का “मौलिक हिस्सा” नहीं माना जा सकता, जैसे नमाज या रोजा। इसलिए इस पर धार्मिक स्वतंत्रता (अनुच्छेद 25) का हवाला देना गलत है।
- दान की तरह है, धर्म नहीं
सरकार के अनुसार वक्फ को उसी तरह देखना चाहिए जैसे हिंदू, सिख या ईसाई धर्मों में मंदिर, गुरुद्वारा या चर्च को दी गई दान-संपत्तियां। यह कोई ऐसा धार्मिक कृत्य नहीं जो धर्म का केंद्रीय तत्व हो।
- वक्फ बाय यूजर की अवधारणा गलत
सरकार ने कहा कि “वक्फ बाय यूजर” यानी इस्तेमाल के आधार पर वक्फ घोषित कर देना गलत है और इसका दुरुपयोग हो रहा है। अब नया कानून कहता है कि केवल पंजीकृत (रजिस्टर्ड) संपत्तियां ही वक्फ मानी जाएंगी।
- रजिस्ट्रेशन अनिवार्य और कलेक्टर की भूमिका सीमित
सरकार के अनुसार रजिस्ट्रेशन के बिना कोई भी संपत्ति वक्फ नहीं मानी जाएगी। कलेक्टर केवल रिकॉर्ड में बदलाव करेगा, असली मालिकाना हक अदालत तय करेगी।
- गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति से कोई हानि नहीं
सरकार ने कहा कि वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्य रखना कोई हस्तक्षेप नहीं है बल्कि यह प्रशासनिक सुधार है।
याचिकाकर्ताओं की आपत्तियां क्या हैं?
- वक्फ इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि वक्फ इस्लाम में सदियों से मान्य परंपरा है, और हदीसों में भी इसका जिक्र है। कुरान में भले ही सीधे “वक्फ” शब्द न हो, लेकिन दान और खैरात की बात की गई है, जिससे इसका आधार मिलता है।
- धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन
उन्होंने कहा कि यह कानून अनुच्छेद 25 और 26 का उल्लंघन करता है, जो धार्मिक मामलों को स्वतंत्रता से संचालित करने का अधिकार देता है।
- 5 साल तक प्रैक्टिसिंग मुस्लिम की शर्त भेदभावपूर्ण
सरकार ने वक्फ बोर्ड के सदस्यों के लिए यह शर्त रखी कि वे पिछले 5 वर्षों से इस्लाम का पालन कर रहे हों। याचिकाकर्ताओं ने इसे अनुच्छेद 15 (भेदभाव का निषेध) के खिलाफ बताया। उन्होंने पूछा – यह कैसे साबित किया जाएगा कि कोई 5 साल से “प्रैक्टिसिंग मुस्लिम” है?
- गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति हस्तक्षेप है
वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति को उन्होंने धार्मिक मामलों में सरकार की सीधी दखल बताया।
- “वक्फ बाय यूजर” को खत्म करना साजिश
उनका आरोप था कि सरकार जानबूझकर पुरानी, ऐतिहासिक वक्फ संपत्तियों को विवादित बनाएगी, फिर “बोर्ड रद्द” कर वहां कब्जा करेगी।
- प्रसिद्ध स्थलों पर खतरे की आशंका
कपिल सिब्बल ने उदाहरण दिया कि लखनऊ का बड़ा इमामबाड़ा या संभल की जामा मस्जिद जैसी ऐतिहासिक संपत्तियां भी इस कानून की आड़ में छीनी जा सकती हैं।
अब अगला कदम क्या होगा?
सुप्रीम कोर्ट ने तीन दिन तक चली बहस के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया है। अब यह देखा जाएगा कि कोर्ट यह तय करता है कि—
वक्फ इस्लाम का आवश्यक हिस्सा है या नहीं,
सरकार वक्फ संपत्तियों पर कितना अधिकार रखती है,
नया कानून संविधान के अनुरूप है या नहीं।
फैसला आते ही इसका असर देशभर में लाखों करोड़ की वक्फ संपत्तियों पर पड़ सकता है, जो कई बार विवादों में रहती हैं।