जंगल की गहराई से निकली मीठी राह, खोखरो के सबर और ‘Boram Honey’ की अनूठी कहानी

Manju
By Manju
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डिजिटल डेस्क। जमशेदपुर : बोड़ाम प्रखंड के एक छोटे से गांव खोखरो में 45 सबर परिवारों ने वो कर दिखाया, जो किसी आंदोलन से कम नहीं। सदियों से जंगलों पर निर्भर इस आदिम जनजाति समूह के परिवारों ने शहद संग्रहण को पारंपरिक गतिविधि से आगे बढ़ाकर व्यवस्थित-व्यापारिक उद्यम में बदल डाला और यहीं से शुरू हुई बोड़ाम की ‘मधु’र क्रांति।

परंपरा से प्रगति की ओर

सबर समुदाय का जीवन सालों से NTFP महुआ, पत्ता, झाड़ू और विशेषकर वन शहद पर आधारित रहा। सालाना लगभग 2 टन शहद एकत्र होता था, पर उचित बाज़ार, मूल्य और भंडारण की कमी से यह अथक मेहनत व्यर्थ हो जाती थी।

सरकारी पहल – PM-JANMAN और VDVK की स्थापना

2024 में PM-JANMAN योजना के अंतर्गत खोखरो गांव में वन धन विकास केंद्र (VDVK) की स्थापना हुई। 16 सितंबर 2024 को योजना की शुरुआत के साथ सबर समुदाय के सदस्यों को शहद संग्रहण, मधुमक्खी पालन, प्रोसेसिंग और ब्रांडिंग में प्रशिक्षण मिला।

प्रशिक्षण और उपकरणों से आत्मनिर्भरता

महिलाओं को वैज्ञानिक तरीके से संग्रहण, हाइजीन, फिल्ट्रेशन और पैकेजिंग का प्रशिक्षण दिया गया। 30 परिवारों को आवश्यक उपकरणों की किट (कुल्हाड़ी, डावली, फनल, ग्लव्स, हेलमेट, जार आदि) दी गई, जिससे उनकी सहभागिता और आत्मविश्वास में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।

Boram Honey – एक ब्रांड, एक पहचान

Boram Honey ब्रांड का आकर्षक लेबल, सुरक्षित पैकेजिंग और गुणवत्ता ने इसे एक खास पहचान दिलाई। अब यह शहद केवल एक उत्पाद नहीं, बल्कि सबर समुदाय की सशक्त आवाज़ बन चुका है।

संगठित विपणन और FPO के साथ गठजोड़

तेजस्विनी महिला किसान उत्पादन समूह FPO और 16 गठित Joint Liability Groups (JLGs) के माध्यम से शहद की संगठित बिक्री शुरू हुई। इससे न केवल उत्पाद को उचित मूल्य मिला, बल्कि समुदाय की बाजार तक सीधी पहुँच भी बनी।

भविष्य की तैयारी – जैविक खेती और B-Box वितरण

आगे चलकर योजना है कि B-Box के ज़रिए मधुमक्खी पालन को और बढ़ाया जाए। इससे शहद उत्पादन बढ़ेगा और परागण के ज़रिए जैविक खेती को भी बल मिलेगा, जिससे वन और कृषि में संतुलन बना रहेगा।

जंगल से आत्मनिर्भरता तक का सफर

‘Boram Honey’ की सफलता सिर्फ शहद बेचने की कहानी नहीं है, यह एक समुदाय की संघर्ष, सीख और संगठन के ज़रिए आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ती यात्रा है। खोखरो के सबर परिवारों ने यह दिखा दिया कि जब अवसर, मार्गदर्शन और सहयोग मिलता है, तो जंगल की गहराई से भी आत्मनिर्भरता की मीठी राह निकल सकती है।

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