डिजिटल डेस्क। मिरर मीडिया: असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लेमिन (एआइएमआइएम) ने झारखंड विधानसभा चुनाव के लिए सात सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। इनमें पाकुड़, महागामा, रांची, जमशेदपुर पश्चिम, बड़कागांव, चतरा और गढ़वा सीटें शामिल हैं। माना जा रहा है कि इन सात सीटों के अलावा पार्टी दूसरे चरण की सीटों पर भी अपने उम्मीदवार खड़े कर सकती है। इन सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 22 से 38 प्रतिशत तक है, जो एआइएमआइएम के लिए चुनावी समीकरण को मजबूत बना सकता है।
संताल परगना और अन्य जिलों में मुस्लिम आबादी का दबदबा
झारखंड के संताल परगना क्षेत्र में देवघर, गोड्डा, जामताड़ा, साहेबगंज और पाकुड़ जिलों के अलावा लोहरदगा और गिरिडीह में भी मुस्लिम समुदाय की महत्वपूर्ण संख्या है। साहेबगंज और पाकुड़ में मुसलमान कुल आबादी का लगभग 30 प्रतिशत हैं, जबकि देवघर, गोड्डा, जामताड़ा, लोहरदगा और गिरिडीह में यह प्रतिशत करीब 20 है। इस जनसंख्या अनुपात के आधार पर एआइएमआइएम ने इन क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति मजबूत करने की योजना बनाई है।
पिछले चुनाव में एआइएमआइएम का प्रदर्शन
वर्ष 2019 के झारखंड विधानसभा चुनाव में एआइएमआइएम ने 16 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। हालांकि पार्टी का प्रदर्शन अपेक्षित नहीं रहा। सबसे अधिक वोट डुमरी सीट पर मिले, जहां पार्टी को 24,132 मत प्राप्त हुए थे। इसके बाद बरकट्ठा सीट पर मोहम्मद अशरफ अंसारी को 18,416 वोट और मांडर सीट पर शिशिर लकड़ा को 23,592 वोट मिले थे। हालांकि, पिछले चुनाव में प्रदेश के मुस्लिम मतदाताओं का रुझान ओवैसी की पार्टी की तरफ कम ही रहा, फिर भी एआइएमआइएम को इस बार अल्पसंख्यक मतदाताओं का समर्थन मिलने की उम्मीद है।
झारखंड प्रदेश अध्यक्ष मो शाकिर का बयान
एआइएमआइएम के झारखंड प्रदेश अध्यक्ष मोहम्मद शाकिर ने जानकारी दी कि पार्टी ने सात सीटों पर प्रत्याशियों के नामों की घोषणा कर दी है। पाकुड़ से हाजी तनवीर आलम, महागामा से कमरान खान, रांची से महताब आलम, जमशेदपुर पश्चिम से बाबर खान, चतरा से सुबोध पासवान, बड़कागांव से शमीम अंसारी और गढ़वा से डॉ. एम. एन. खान को टिकट दिया गया है।
चुनावी चुनौती और अल्पसंख्यक मतदाताओं पर दांव
एआइएमआइएम का झारखंड में चुनावी सफर आसान नहीं रहा है, लेकिन इस बार पार्टी ने विशेष रणनीति के साथ मुस्लिम बहुल क्षेत्रों को लक्षित किया है। अब देखना यह है कि क्या पार्टी अपने प्रयासों में कामयाब होती है और अल्पसंख्यक मतदाताओं का समर्थन हासिल कर पाती है या नहीं।
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