डिजिटल डेस्क/जमशेदपुर : पश्चिम बंगाल के राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। अब विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति पर दोनों आमने-सामने हैं। महामहिम डॉ. सीवी आनंद बोस ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा 17 सरकारी विश्वविद्यालयों के कुलपति पदों के लिए प्रस्तावित नामों पर आपत्ति जताई है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व न्यायमूर्ति यूयू ललित की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया है, जो अपनी सिफारिशों के आधार पर कोर्ट को आगे का निर्देश देगी।
सुप्रीम कोर्ट ने पहले राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि कुलपतियों के रिक्त पदों के लिए नामों की सूची राज्यपाल, जो विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति भी हैं, को भेजी जाए। मुख्यमंत्री ने 36 विश्वविद्यालयों के लिए नाम प्रस्तावित किए थे, जिनमें से 19 नामों को राज्यपाल ने मंजूरी दे दी, लेकिन 17 नामों पर आपत्ति दर्ज की। आपत्ति के कारणों का खुलासा नहीं किया गया है। इन विश्वविद्यालयों में कलकत्ता विश्वविद्यालय, जादवपुर विश्वविद्यालय जैसे प्रमुख संस्थान शामिल हैं।
फ्लैशबैक: नया नहीं है विवाद
पश्चिम बंगाल के राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच विश्वविद्यालयों में कुलपति नियुक्तियों को लेकर कई बार विवाद सामने आए हैं। इन विवादों की जड़ मुख्य रूप से राज्यपाल की कुलाधिपति की भूमिका और राज्य सरकार की नियुक्ति प्रक्रिया में हस्तक्षेप को लेकर रही है।
प्रमुख विवाद
जगदीप धनखड़ के कार्यकाल में विवाद (2019-2022)
कुलपति नियुक्तियों पर असहमति: पूर्व राज्यपाल जगदीप धनखड़ (जो बाद में भारत के उपराष्ट्रपति बने) ने 2022 में 24 विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्तियों पर सवाल उठाए, क्योंकि ये नियुक्तियां उनकी स्वीकृति के बिना की गई थीं। उन्होंने इसे ‘कानूनी उल्लंघन’ करार दिया और नियुक्तियों को रद्द करने की चेतावनी दी थी।
कुलाधिपति की भूमिका में बदलाव का प्रस्ताव
ममता बनर्जी सरकार ने 2022 में ‘पश्चिम बंगाल विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) विधेयक’ पारित किया, जिसमें राज्यपाल को कुलाधिपति के पद से हटाकर मुख्यमंत्री को यह जिम्मेदारी देने का प्रावधान था। इस विधेयक को धनखड़ ने ‘असंवैधानिक’ बताया और इस पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया।
विश्वविद्यालयों के संचालन में हस्तक्षेप
धनखड़ ने कई बार कुलपतियों को बैठक के लिए बुलाया, जिसे राज्य सरकार ने अस्वीकार किया। 2020 में एक वर्चुअल बैठक में कोई कुलपति शामिल नहीं हुआ, जिसके बाद धनखड़ ने राज्य की शिक्षा व्यवस्था को ‘राजनीतिक रूप से बंधक’ बताया। जवाब में ममता बनर्जी ने कुलपतियों को किसी भी कार्रवाई से सुरक्षा का आश्वासन दिया।
सार्वजनिक टकराव
धनखड़ और ममता बनर्जी के बीच तीखी बयानबाजी आम थी। धनखड़ ने सरकार पर संवैधानिक कर्तव्यों का पालन न करने का आरोप लगाया, जबकि ममता ने उन्हें ‘केंद्र का एजेंट’ करार दिया।
सीवी आनंद बोस के कार्यकाल में विवाद (2022-वर्तमान)
कुलपति नियुक्तियों पर आपत्ति: वर्तमान राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने 17 विश्वविद्यालयों के लिए ममता बनर्जी द्वारा प्रस्तावित कुलपतियों के नामों पर आपत्ति जताई। इसके चलते सुप्रीम कोर्ट ने 2023 में पूर्व मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित की अध्यक्षता में एक समिति गठित की, जो नियुक्तियों के लिए नामों की सिफारिश करती है।
स्वतंत्र नियुक्तियां: 2023 में बोस ने 11 विश्वविद्यालयों में अंतरिम कुलपतियों की नियुक्ति की, बिना राज्य सरकार या शिक्षा विभाग से परामर्श किए। तत्कालीन शिक्षा मंत्री ने इसे ‘मनमानी’ और मुख्यमंत्री का ‘अपमान’ बताया।
सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप: 2023 में कलकत्ता हाई कोर्ट ने बोस द्वारा की गई अंतरिम नियुक्तियों को वैध ठहराया, लेकिन राज्य सरकार ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट ने नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता के लिए समिति गठन का आदेश दिया।
राज्य सरकार का रुख: ममता सरकार ने बार-बार आरोप लगाया कि राज्यपाल केंद्र सरकार के इशारे पर काम कर रहे हैं और विश्वविद्यालयों में राजनीतिक हस्तक्षेप कर रहे हैं। दूसरी ओर, बोस ने नियुक्तियों में ‘जटिलताओं’ का हवाला देते हुए अपनी आपत्तियों को सुप्रीम कोर्ट में सीलबंद लिफाफे में प्रस्तुत किया।
कानूनी और संवैधानिक विवाद:
कुलाधिपति की शक्तियों में कटौती
2019 में ममता सरकार ने नियमों में संशोधन कर राज्यपाल की कुलाधिपति के रूप में शक्तियों को सीमित कर दिया, जैसे कुलपति चयन में उनकी भूमिका कम करना और विश्वविद्यालयों की बैठकों को बुलाने का अधिकार छीनना। धनखड़ ने इसे ‘असंवैधानिक’ बताया और कहा कि वह ‘रबड़ स्टांप’ नहीं हैं।
पंची आयोग की सिफारिशें: ममता सरकार ने 2022 और 2023 के विधेयकों में पंची आयोग की सिफारिशों का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि राज्यपाल को ऐसी वैधानिक भूमिकाएं नहीं दी जानी चाहिए जो विवाद का कारण बनें।
अन्य राज्यों से तुलना
पश्चिम बंगाल का यह विवाद अन्य विपक्षी शासित राज्यों जैसे तमिलनाडु और महाराष्ट्र में भी देखा गया, जहां राज्य सरकारों ने कुलपति नियुक्तियों में राज्यपाल की शक्तियों को कम करने की कोशिश की। तमिलनाडु ने 2022 में विधेयक पारित कर कुलपति नियुक्ति का अधिकार राज्य सरकार को दिया।