मुंबई सेशन कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाते हुए यह स्पष्ट किया कि किसी अनजान महिला को व्हाट्सएप पर आपत्तिजनक मैसेज भेजना उसकी शील का अपमान करने के बराबर है। अदालत ने इस मामले में आरोपी को तीन महीने की सजा और जुर्माने की सजा को बरकरार रखते हुए उसकी अपील को खारिज कर दिया।
क्या है पूरा मामला?
यह घटना 26 जनवरी 2016 की है, जब पीड़िता, जो उस समय मुंबई के बोरीवली इलाके की पार्षद थीं, को एक अनजान नंबर से आपत्तिजनक व्हाट्सएप मैसेज प्राप्त हुए। आरोपी नरसिंह गुडे ने पीड़िता को संदेश भेजकर उसकी शारीरिक बनावट पर टिप्पणी की और व्यक्तिगत सवाल पूछे। भेजे गए मैसेज इस प्रकार थे:
- “क्या तुम सो रही हो?”
- “क्या तुम शादीशुदा हो या नहीं?”
- “तुम बहुत स्मार्ट दिखती हो।”
- “तुम बहुत गोरी हो।”
- “मुझे तुम पसंद हो।”
- “मेरी उम्र 40 साल है। कल मिलते हैं।”
जब पीड़िता ने यह संदेश अपने पति को दिखाए और उस अनजान नंबर पर कॉल करने की कोशिश की, तो आरोपी ने फोन रिसीव नहीं किया। इसके बजाय, उसने जवाब में मैसेज किया – “सॉरी, रात में कॉल स्वीकार नहीं की जाती। मुझे व्हाट्सएप चैटिंग पसंद है, ऑनलाइन आओ।” इसके साथ ही, आरोपी ने कुछ अश्लील तस्वीरें और अन्य आपत्तिजनक संदेश भी भेजे।
पीड़िता ने महसूस की शर्मिंदगी, पुलिस से की शिकायत
पीड़िता ने इस घटना से खुद को बेहद असहज, शर्मिंदा और नाराज महसूस किया। इसके बाद, उसने तुरंत पुलिस से संपर्क कर शिकायत दर्ज करवाई। पुलिस ने आरोपी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 509 और सूचना प्रौद्योगिकी (IT) अधिनियम की धारा 67 और 67A के तहत मामला दर्ज किया।
कोर्ट में आरोपी का बचाव, लेकिन दलीलें हुई खारिज
आरोपी ने बचाव में तर्क दिया कि ऐसी कोई घटना हुई ही नहीं और यह मामला राजनीतिक द्वेष से प्रेरित था। उसने दावा किया कि पीड़िता और उसके पति, जो कि पूर्व पार्षद हैं, से उसकी राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता थी, जिसके चलते उन्होंने उसे झूठे मामले में फंसाया।
हालांकि, अदालत ने इस तर्क को पूरी तरह खारिज कर दिया। जज ने कहा कि कोई भी महिला अपनी गरिमा को दांव पर लगाकर किसी पर झूठा आरोप नहीं लगाएगी। अदालत ने यह भी माना कि आरोपी और पीड़िता के बीच कोई पूर्व परिचय या संबंध नहीं था, इसलिए ऐसे आपत्तिजनक संदेश भेजना पूरी तरह से अनुचित और आपराधिक कृत्य था।
अदालत की सख्त टिप्पणी, आरोपी की अपील खारिज
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश डी.जी. ढोबले ने इस मामले में कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा,
“कोई भी विवाहित महिला या उसका पति, जो कि प्रतिष्ठित और पार्षद हैं, शाम 11 बजे से रात 12:30 बजे तक भेजे गए ऐसे व्हाट्सएप मैसेज और अश्लील तस्वीरों को बर्दाश्त नहीं करेगा, खासकर तब, जब भेजने वाले के साथ कोई संबंध न हो।”
अदालत ने स्पष्ट किया कि इस तरह के संदेश महिलाओं की गरिमा और सम्मान के खिलाफ हैं और भारतीय दंड संहिता की धारा 509 के तहत अपराध की श्रेणी में आते हैं। इसके अलावा, आईटी अधिनियम की धारा 67 और 67ए के तहत भी यह दंडनीय अपराध है, क्योंकि इसमें इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से अश्लील सामग्री का प्रसार किया गया था।
आरोपी ने अपनी अपील में यह दावा किया कि उसने मैसेज नहीं भेजे, लेकिन न्यायालय ने इसे भी खारिज कर दिया। जज ने कहा कि चूंकि आरोपी को अपने फोन के उपयोग के बारे में विशेष जानकारी थी, इसलिए यह स्पष्ट करने की जिम्मेदारी उसी की थी कि ऐसे संदेश उसके नंबर से कैसे भेजे गए।
अंततः, न्यायालय ने आरोपी की दोषसिद्धि को बरकरार रखते हुए उसकी तीन महीने की साधारण कैद और जुर्माने की सजा को कायम रखा। इस फैसले से यह स्पष्ट संकेत मिला है कि डिजिटल माध्यमों पर भी महिलाओं की गरिमा और सम्मान की रक्षा के लिए सख्त कानूनी प्रावधान लागू किए जाएंगे।