डिजिटल डेस्क। मिरर मीडिया: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण को
लेकर बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति में कोटे में कोटे को मंजूरी दे दी है। इस मामलें में अदालत का कहना है कि कोटे में कोटा असमानता के खिलाफ नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट के 7 जजों की पीठ ने कहा है कि राज्य सरकार अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों में सब कैटेगरी बना सकती है, जिससे मूल और जरूरतमंद कैटेगरी को आरक्षण का अधिक फायदा मिलेगा।
SC/ST कैटेगरी में भी ज्यादा पिछड़ी जातियों को सशक्त करने की जरूरत: सुप्रीम कोर्ट
सुनाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि SC/ST कैटेगरी में भी कई ऐसी जातियां हैं, जो बहुत ही ज्यादा पिछड़ी हुई हैं। इन जातियों के सशक्तिकरण की सख्त जरूरत है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जिस जाति को आरक्षण में अलग से हिस्सा दिया जा रहा है, उसके पिछड़ेपन का सबूत होना चाहिए। शिक्षा और नौकरी में उसके कम प्रतिनिधित्व को आधार बनाया जा सकता है। सिर्फ किसी जाति की संख्या ज्यादा होने को आधार बनाना गलत होगा।
2004 के फैसले को पलटा
सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की पीठ ने इस फैसले को सुनाया है। जिसमें 6 जज इस फैसले के मत में थे। अब इस फैसले के तहत अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों में सब कैटेगरी बनाई जाएंगी। जिसमें ज्यादा पिछड़ी जातियों को जगह दी जाएगी।
इससे पहले 5 जजों की पीठ ने साल 2004 में इस फैसले पर रोक लगा दी थी और ईवी चिन्नैया मामले में कहा था कि अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों में कोई सब कैटेगरी नहीं बनाई जाएगी।
क्या है आरक्षण के भीतर आरक्षण?
अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के आरक्षण के लिए उप-वर्गीकरण को “कोटा के भीतर कोटा” कहा जाता है।यानी कि अगर एक समुदाय या श्रेणी के लोगों को आरक्षण दिया जा रहा है तो उसी श्रेणी का उप वर्गीकरण करके उनके बीच आरक्षित सीटों का बंटवारा करना| उदाहरण के तौर पर अगर अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षण 15 प्रतिशत तय है तो इस वर्ग में शामिल जातियों और उनके सामाजिक, आर्थिक पिछेड़ेपन के आधार पर अलग-अलग आरक्षण देना है।
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