UNESCO ने बुधवार, 10 दिसंबर 2025 को दीपावली को “Intangible Cultural Heritage of Humanity” — यानी अमूर्त सांस्कृतिक विरासत — की वैश्विक सूची में शामिल कर लिया। यह निर्णय 20th Session of the Intergovernmental Committee for Safeguarding of Intangible Cultural Heritage में लिया गया, जिसकी मेज़बानी पहली बार भारत में दिल्ली के लाल किले परिसर में हो रही है।
इसके साथ ही भारत की इस प्रतिष्ठित सूची में दर्ज परंपराओं और त्योहारों की संख्या बढ़कर 16 हो गई है।
🇮🇳 राष्ट्र में खुशी की लहर: नेताओं ने कहा—भारत की संस्कृति को मिला सम्मान
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दीपावली को “हमारी सभ्यता की आत्मा” बताते हुए इस ऐतिहासिक उपलब्धि का स्वागत किया और कहा कि इससे भारत की सांस्कृतिक विरासत की विश्व स्तर पर और अधिक प्रतिष्ठा बढ़ेगी।
विदेश मंत्री एस. जयशंकर और الثقافة मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने भी UNESCO के इस फैसले को भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं के प्रति वैश्विक सम्मान की बड़ी उपलब्धि बताया।
इधर दिल्ली में भी जश्न का माहौल है — सरकार ने लाल किले, चांदनी चौक समेत कई महत्वपूर्ण इमारतों को दीपों और रोशनी से सजाने की तैयारी शुरू कर दी है।
✨ दीपावली की वैश्विक पहचान क्यों महत्वपूर्ण?
UNESCO की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत सूची में किसी परंपरा का दर्ज होना न सिर्फ अंतरराष्ट्रीय मान्यता का प्रतीक है, बल्कि उसे भावी पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रखने की प्रक्रिया को भी मजबूत करता है।
यह मान्यता दुनिया के देशों को दीपावली के सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक महत्व को समझने और अपनाने का अवसर देती है।
प्रकाश, सद्भावना और अच्छाई की जीत का प्रतीक दीपावली अब वैश्विक सांस्कृतिक मंच पर और अधिक चमकने लगी है।
🎉 आगे क्या—बढ़ेगा उत्सव, पर्यटन और संस्कृति का दायरा
विशेषज्ञों का मानना है कि UNESCO की यह मान्यता भारत में सांस्कृतिक पर्यटन को बढ़ावा देगी। दीपावली से जुड़ी कला, परंपराएं, लोक-नृत्य, हस्त-कला और धार्मिक गतिविधियों को संरक्षण और प्रोत्साहन देने के लिए अब और अधिक योजनाएँ बनेंगी।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी दीपावली उत्सवों का दायरा बढ़ेगा, जिससे भारत की सांस्कृतिक पहचान और मजबूत होगी और दुनिया में इसका प्रभाव और व्यापक होगा।

