Bihar: मोदी की प्रशंसा पर 11 साल का “वनवास”, चुनाव से पहले जेडीयू में वापसी, अब अमौर से चुनाव लड़ेंगे साबिर अली

Neelam
By Neelam
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रशंसा करने पर 11 वर्ष पहले जनता दल यूनाइटेड (जद(यू)) से निष्कासित किए गए राज्यसभा के पूर्व सदस्य साबिर अली की फिर से पार्टी में वापसी हो गई है। साबिर अली को पार्टी ने शनिवार को अमौर विधानसभा सीट से अपना उम्मीदवार घोषित किया। जेडीयू ने आखिरी समय में बड़ा फैसला लेते हुए पूर्णिया की अमौर सीट पर कैंडिडेट बदल दिया।

पूर्णिया की अमौर सीट से पार्टी ने नामांकन की अंतिम तारीख से ठीक एक दिन पहले अपने घोषित प्रत्याशी सबा ज़फर का टिकट काट दिया है। जेडीयू ने अमौर से अपना प्रत्याशी बदल दिया। पार्टी ने अपने प्रत्याशियों की जो सूची जारी की थी उसमें पहले सबा जफर का नाम था। वहीं अब जेडीयू ने राज्यसभा के पूर्व सदस्य साबिर अली को अमौर से अपना प्रत्याशी बनाया है। जेडीयू ने सबा जफर से चुनावी सिंबल वापस ले लिया गया। जेडीयू ने अपने सभी कार्यकर्ताओं और समर्थकों से अपील की है कि वो एकजुट होकर साबिर अली की सफलता सुनिश्चित करें।

साबिर अली का सियासी सफर

कभी नीतीश कुमार के बेहद करीबी माने जाने वाले, राज्यसभा में जेडीयू का चेहरा रहे साबिर अली आज फिर उसी पार्टी में लौट आए हैं, जहां से उन्होंने सियासत की शुरुआत की थी। राजनीति में उनका आगमन 2000 के दशक में हुआ और नीतीश कुमार के नेतृत्व से प्रभावित होकर उन्होंने जेडीयू जॉइन की। पार्टी ने उनकी मेहनत और प्रभाव को देखा और 2008 में उन्हें राज्यसभा भेजा गया। वहां वे 2008 से 2014 तक जेडीयू के चेहरे बने रहे। राज्यसभा में जेडीयू की आवाज बनकर उन्होंने पार्टी के मुद्दों को मजबूती से उठाया। साबिर अली मुस्लिम समुदाय में लोकप्रिय थे। सीमांचल और पूर्वी चंपारण में उनकी अच्छी पकड़ थी। लोग उन्हें एक मेहनती और प्रभावशाली नेता के रूप में जानने लगे। लेकिन, साबिर अली के चढ़ाव के बाद उतार का दौर भी आया।

कुछ समय के लिए गुमनामी में चले गए

बिहार के पूर्वी चंपारण में जन्मे साबिर अली को 2014 में ही पीएम मोदी की तारीफ करने के चलते जदयू ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया। जेडीयू से निकाले जाने के बाद वे लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) में चले गए और फिर वहां से भाजपा की ओर रुख किया। लेकिन उन पर लगे पुराने दाग साबिर अली पर भारी पड़े और फिर उन्हें बीजेपी ने भी कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं दी। दरअसल, कुछ भाजपा नेताओं ने सार्वजनिक रूप से उनके बयानबाज़ी पर सवाल उठाए। कुछ रिपोर्ट्स में कहा गया कि उन्हें इंडियन मुजाहिदीन के यासीन भटकल से जोड़ने के आरोप लगे। 2014 में ही भाजपा उनकी एंट्री रोक दी गई। इन घटनाओं ने साबिर अली को सियासत के निचले पायदान पर ला दिया और वे कुछ समय के लिए गुमनामी में चले गए।

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