बिहार चुनाव से पहले वोटर लिस्ट के विशेष गहन पुनरीक्षण यानी एसआईआर को लेकर देशभर मे सियासत गर्म है। बिहार विधानसभा से लेकर संसद तक इसकी गूंज सुनाई दे रही है। विपक्षी दल चुनाव आयोग पर केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार की संशा पर सवाल उठा रहे हैं। इस बीच चुनाव आयोग की प्रतिक्रिया सामने आयी है। चुनाव आयोग ने सवाल किया कि क्या संविधान का उल्लंघन करके फर्जी मतदान का रास्ता बनाना चाहिए?

चुनाव आयोग ने कहा कि भारत निर्वाचन आयोग अपने आलोचकों से सवाल करता है कि, “भारत का संविधान भारतीय लोकतंत्र की जननी है. तो क्या इन बातों से डरकर, निर्वाचन आयोग को कुछ लोगों के बहकावे में आकर, संविधान के विरुद्ध जाकर, पहले बिहार में, फिर पूरे देश में, मृतक मतदाताओं, स्थायी रूप से पलायन कर चुके मतदाताओं, दो स्थानों पर वोट दर्ज कराने वाले मतदाताओं, फर्जी मतदाताओं या विदेशी मतदाताओं के नाम पर फर्जी वोट डालने का रास्ता बनाना चाहिए?
चुनाव आयोग ने कहा- चिंतन का सबसे उपयुक्त समय
आयोग ने सवालिया लहजे में कहा, “क्या निर्वाचन आयोग की ओर से पारदर्शी प्रक्रिया से तैयार की जा रही प्रामाणिक मतदाता सूची निष्पक्ष चुनाव और मजबूत लोकतंत्र की आधारशिला नहीं है? इन सवालों पर, कभी न कभी, हम सभी को और भारत के सभी नागरिकों को राजनीतिक विचारधाराओं से परे जाकर, गहराई से सोचना होगा। और शायद आप सभी के लिए इस आवश्यक चिंतन का सबसे उपयुक्त समय अब भारत में आ गया है।”
एसआईआर पर बिहार में जारी है बवाल
बता दें कि बिहार में एसआईआर के मुद्दे पर इन दिनों विपक्ष जमकर विरोध प्रदर्शन कर रहा है। इसी मुद्दे पर बुधवार को बिहार विधानसभा में सीएम नीतीश कुमार और नेता विपक्ष तेजस्वी यादव के बीच तीखी नोकझोंक देखी गई। तेजस्वी ने तो यहां तक कह दिया कि एसआईआर करने में पिछली बार अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में 2 साल लगे थे। अब फिर से ये हो रहा है। फिर क्या ये मान लेना चाहिए कि 2003 से 2025 तक चुनाव फर्जी तरीके से कराए गए। इसका मतलब तो ये हुआ कि नीतीश फर्जी तरह से बिहार के सीएम बने हैं। विधायक भी फर्जी वोटरों से चुने गए है।