Bihar: बिहार में एनडीए की प्रचंड बढ़त, जनता ने महागठबंधन को नकारा, कहां चूक गए तेजस्वी?

Neelam
By Neelam
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बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजे आने लगे हैं। बिहार में 243 विधानसभा सीटों के लिए दो चरणों में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों ने एनडीए को फिर से सत्ता की चाभी सौंप दी है। चुनाव आयोग की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक, अभी तक की मतगणना में बीजेपी और जेडीयू नंबर एक और दो पर चल रही है। आंकड़ों में आरजेडी का हाल बुरा है। राज्य के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को राघोपुर सीट पर शुरुआती रुझानों में बीजेपी के सतीश कुमार से कड़ी टक्कर मिल रही है। इस बीच बड़ा सवाल ये है कि आखिर जो पार्टी और जो नेता चुनाव के दिन तक बराबरी का टक्कर देने का दावा कर रहा था वो कैसे फुस्स हो गई?

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की मतगणना जारी है और अब तक आए रुझानों में एनडीए प्रचंड जीत की ओर आगे बढ़ रही है। एनडीए में अब बीजेपी और जेडीयू के बीच में ही सबसे बड़ी पार्टी का मुकाबला देखने को मिल रहा है। वहीं पिछली बार सबसे बड़ी पार्टी रही राजद इस बार तीसरे नंबर पर खिसक चुकी है। जानते हैं कि वे कौन से बड़े कारण हैं, जिससे आरजेडी को इतना बड़ा नुकसान हुआ है?

1.जंगल राज का भय

आरजेडी के खराब प्रदर्शन के पीछे की सबसे बड़ी और पहली वजह रही-जंगल राज का भय। बीजेपी ने प्रचार में ‘आरजेडी का यादव राज’ का नैरेटिव चलाया। एनडीए ने लगातार 1990-2005 के बीच के उसी दौर को याद दिलाया जब अपहरण, हत्या और भ्रष्टाचार बिहार की पहचान बन गया था। खासकर महिलाएं इस नैरेटिव से सबसे ज्यादा प्रभावित दिखीं। तेजस्वी जितना बदलाव की बात करते रहे, एनडीए उतना अतीत का डर दिखाता रहा और एनडीए की यह रणनीति काम कर गई।

2.नौकरी के वादे पर विश्वास नहीं कर सकी जनता

दूसरा बड़ा कारण बना नौकरी के वादे। तेजस्वी यादव ने हर घर को एक नौकरी देने की बात कही, जिसे एनडीए ने ‘असंभव’ बताया। तेजस्वी का यह बड़ा वादा युवाओं में चर्चा तो बना, लेकिन विश्वसनीय नहीं बन पाया। ढाई करोड़ से अधिक सरकारी नौकरी का दावा बिल्कुल ही जनता के मन में विश्वास नहीं जमा पाया। फंडिंग, कार्यान्वयन योजना या समयबद्ध ब्लूप्रिंट के अभाव ने वोटरों में अविश्वास पैदा किया। हर घर को सरकारी नौकरी पर वो खुद जवाब नहीं दे सके। हर रोज कहते रहे कि बस अगले 2 दिन में ब्लू प्रिंट आ जाएगा।

3.गठबंधन दलो के साथ नहीं दिखा सहयोग

तेजस्वी ने अपने सहयोगियों कांग्रेस, वाम दलों और छोटी पार्टियों को वो भाव नहीं दिया, जो एनडीए में दिखा। शुरूआत में एनडीए में भी सीट शेयरिंग को लेकर मतभेद दिखे, लेकिन उसे जल्द सुलझा लिया गया। वहीं, तेजस्वी के ‘आरजेडी सेंट्रिक’ अप्रोच ने विपक्ष को बांट दिया। यह न केवल वोट ट्रांसफर फेल कर गया, बल्कि एनडीए को ‘एकजुट’ दिखाने का मौका दिया।

4.आपस में ही लड़ता रहा महागठबंधन

बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार, महागठबंधन में शामिल पार्टियों के बीच शुरुआत से ही सीटों को लेकर खींचतान थी। इसी का नतीजा था कि विधानसभा सीटों के बंटवारे के बावजूद, 10 सीटों पर कांग्रेस, आरजेडी और लेफ्ट पार्टियां आमने-सामने लड़ीं। इनमें लालगंज, वैशाली, कहलगांव, सुल्तानगंज, वारसलीगंज और सिकंदरा वो सीटें थी, जहां आरजेडी और कांग्रेस दोनों ने अपने-अपने प्रत्याशी खड़े किए। इसके अलावा करगहर, बिहारशरीफ, राजापाकड़ और बछवाड़ा में कांग्रेस और सीपीआई आमने-सामने थे। इसी तरह चैनपुर विधानसभा सीट पर आरजेडी और वीआईपी के उम्मीदवारों के बीच ही मुकाबला था।

5.लालू परिवार पर भ्रष्टाचार का दाग

तेजस्वी यादव और उनके परिवार पर भ्रष्टाचार का दाग इस बार भी एक अहम हथियार रहा। चुनाव के दौरान आईआरसीटीसी घोटाला मामले की सुनवाई हुई और एनडीए ने इसे भ्रष्टाचार की वापसी के रूप में प्रचारित किया और जनता के एक वर्ग ने इसे गंभीरता से लिया।

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