चुनावी विश्लेषक और जन सुराज से संस्थापक प्रशांत किशोर ने बुधवार को अपनी जन्मभूमि करगहर से चुनाव लड़ने का बयान देकर बिहार का सियासी पारा बढ़ा दिया है। अभी तक प्रशांत किशोर खुद के चुनाव लड़ने पर कोई स्पष्ट बयान देने से बच रहे थे। लेकिन बुधवार को उन्होंने साफ कर दिया कि यदि पार्टी कहेगी तो रोहतास के करगहर से या फिर वैशाली जिले की राघोपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ूंगा।

दरअसल प्रशांत किशोर ने एक डिजिटल न्यूज चैनल में कहा, सभी लोगों को कहता हूं दो जगहों से लड़ना चाहिए। जन्म भूमि या कर्म भूमि। पीके ने आगे कहा कि अगर जन्मभूमि की बात करें को करगहर मेरी जन्म भूमि है और मैं वहीं से चुनाव लड़ना चाहता हूं। अब तक राघोपुर (तेजस्वी यादव के विधानसभ) से लड़ने की बात करने वाले पीके जन्मभूमि के सहारे करगहर से चुनाव लड़ना चाहते हैं। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि पीके ने करगहर सीट को ही क्यों चुना?
दलित वोटरों की भूमिका निर्णायक
बिहार में चुनावी जीत पर जातीय समीकरण काफी ज्यादा हावी है। ऐसे में यह समझना जरूरी है कि करगहर सीट का जातीय समीकरण क्या है? यह सीट ब्राह्मण बहुल मानी जाती है। हालांकि, यहां कुर्मी, कोइरी और अनुसूचित जाति के वोट भी निर्णायक भूमिका में हैं। इस सीट पर जीत हार के अंतर में दलित वोटरों की भूमिका अहम होती है। पिछली बार मायावती की पार्टी बीएसपी की वजह से जेडीयू यह सीट हार गई थी।
नया राजनीतिक विकल्प पेश कर मार सकते हैं बाजी?
चुनाव आयोग 2024 के आंकड़े के मुताबिक करगहर विधानसभा में करीब 3 लाख 30 हजार वोटर्स हैं। करगहर सीट पर 30 हजार ब्राह्मण, 15 हजार राजपूत और 10 हजार से ज्यादा भूमिहार ब्राह्मण हैं। यह कुल वोटों का करीब-करीब 20 फीसद है। करगहर में इसके अलावा कुर्मी-कोइरी और रविदास जातियों का दबदबा है। तीनों जातियों के करीब 30 प्रतिशत वोट यहां पर हैं। रविदास को छोड़कर बाकी दलित भी यहां 10 प्रतिशत से ज्यादा हैं। करीब 7 प्रतिशत वोटर्स यहां पर अल्पसंख्यक समुदाय के हैं। प्रशांत किशोर ब्राह्मण समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। वर्तमान में जो कांग्रेस के विधायक हैं, वो भी ब्राह्मण समुदाय से ही हैं। ऐसे में उनका यहां से चुनाव लड़ना एक सीधा संदेश देता है कि वह पारंपरिक ब्राह्मण वोट बैंक को अपनी तरफ खींचने की कोशिश करेंगे।
पीके के लिए इसलिए भी सेफ है ये सीट
बिहार में सवर्ण समुदाय को भारतीय जनता पार्टी का कोर वोटर्स माना जाता है। दिलचस्प बात है कि सवर्ण बहुल करगहर में बीजेपी उम्मीदवार नहीं उतारती है। यह सीट जनता दल यूनाइटेड की है। पिछले चुनाव जेडीयू उम्मीदवार यहां से दूसरे नंबर पर रहे थे। इस बार भी यह सीट जेडीयू के खाते में ही जाएगी। पीके की पार्टी इसलिए भी इसे सेफ सीट मान रही है।
राघोपुर में सेंध लगाना इतना आसान नहीं
वहीं राघोपुर वैशाली जिले की हाई-प्रोफ़ाइल सीट मानी जाती है। लालू प्रसाद यादव (1995, 2000) और राबड़ी देवी (2005) का प्रतिनिधित्व देख चुकी है। 2015 और 2020, दोनों में तेजस्वी प्रसाद यादव ने यहीं से जीत दर्ज की। अगर पीके राघोपुर से तेजस्वी यादव के ख़िलाफ़ उतरते हैं तो वो सीधे तौर पे लालू परिवार को चुनौती होगी। यह आरजेडी परिवार की गढ़ सीट है। इस किले में सेंध लगाना इतना आसान नहीं होगा।