हूल दिवस पर आदिवासियों पर लाठीचार्ज के विरोध में बीजेपी का प्रदेशव्यापी प्रदर्शन, रांची में सीएम हेमंत का पुतला दहन, देखें वीडियो….

KK Sagar
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हूल दिवस के अवसर पर झारखंड के भोगनाडीह में आदिवासियों पर हुए लाठीचार्ज और आंसू गैस के इस्तेमाल को लेकर भारतीय जनता पार्टी ने राज्य सरकार के खिलाफ तीखा विरोध दर्ज कराया। इस घटना के विरोध में भाजपा ने राज्यभर में प्रदर्शन कर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का पुतला दहन किया।

राजधानी रांची में अल्बर्ट एक्का चौक पर भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं ने जोरदार प्रदर्शन किया। भाजपा का आरोप है कि हूल दिवस जैसे ऐतिहासिक दिन पर शांतिपूर्ण ढंग से एकत्रित आदिवासियों पर सरकार ने दमनकारी रवैया अपनाया, जो लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है।

भाजपा नेताओं ने कहा कि 1855 में सिदो-कान्हू जैसे वीर सपूतों ने अंग्रेजी हुकूमत और जमींदारी शोषण के खिलाफ जो आंदोलन किया था, उसी की याद में हर साल 30 जून को हूल दिवस मनाया जाता है। लेकिन इस वर्ष इस ऐतिहासिक दिन पर आदिवासियों के साथ जो बर्ताव हुआ, वह बेहद निंदनीय है।

राज्य के सभी जिलों में भाजपा कार्यकर्ताओं ने विरोध मार्च निकाला और मुख्यमंत्री का पुतला जलाकर राज्य सरकार से आदिवासियों पर हुई कार्रवाई के लिए माफी की मांग की।

भाजपा ने स्पष्ट किया कि जब तक दोषियों पर कार्रवाई नहीं होती और आदिवासियों के सम्मान की रक्षा नहीं की जाती, तब तक उनका आंदोलन जारी रहेगा।

गौरतलब है कि हूल दिवस के मौके पर अमर शहीद सिद्धो-कान्हू की जन्मभूमि भोगनाडीह में उस समय तनाव फैल गया जब सिद्धो-कान्हू पार्क में लगे ताले को शहीद के वंशज जंडल मुर्मू द्वारा तोड़े जाने के बाद आदिवासी ग्रामीणों में आक्रोश फैल गया। पूजा-अर्चना और उत्सव के माहौल के बीच पार्क का ताला टूटने की घटना से लोग भड़क उठे, जिससे पुलिस के साथ उनकी झड़प हो गई।

स्थिति इतनी बिगड़ गई कि ग्रामीणों ने पुलिस पर पथराव कर दिया और पारंपरिक तीर-धनुष से हमला भी कर दिया। इस हमले में बरहरवा के एसडीपीओ समेत कई पुलिसकर्मी घायल हो गए। भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज, आंसू गैस के गोले और हवाई फायरिंग करनी पड़ी।

घटना के बाद पूरे भोगनाडीह गांव में भारी संख्या में पुलिस बल तैनात कर दिया गया है और स्थिति अब नियंत्रण में है। प्रशासन पूरे मामले की जांच में जुट गया है।

गौरतलब है कि हूल दिवस हर वर्ष 30 जून को 1855 के संताल विद्रोह की स्मृति में मनाया जाता है, जिसमें सिद्धो-कान्हू मुर्मू ने ब्रिटिश हुकूमत और स्थानीय जमींदारों के अत्याचारों के खिलाफ बिगुल फूंका था। इस अवसर पर भोगनाडीह में हर साल श्रद्धांजलि कार्यक्रम, पूजा-अर्चना और सांस्कृतिक आयोजन होते हैं, लेकिन इस बार विवाद और हिंसा की छाया इस ऐतिहासिक दिवस को प्रभावित कर गई।

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