झारखंड में सरकारी खजाने से 2,812 करोड़ रुपये के गबन का चौंकाने वाला मामला सामने आया है। महालेखाकार (CAG) की हालिया रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है कि यह राशि विभिन्न विभागों ने एडवांस के रूप में निकाली, लेकिन उसका कोई हिसाब नहीं दिया गया। वित्तीय अनियमितताओं के इस मामले ने न केवल सरकारी तंत्र की निष्क्रियता उजागर की है, बल्कि राज्य में वित्तीय पारदर्शिता और जवाबदेही पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
CAG रिपोर्ट का खुलासा
महालेखाकार की रिपोर्ट में बताया गया है कि झारखंड सरकार के विभिन्न विभागों द्वारा खजाने से 4,937 करोड़ रुपये के डीसी बिल (विस्तृत व्यय विवरण) लंबित हैं। इनमें से अब तक सिर्फ 1,698 करोड़ रुपये का ही समायोजन हो सका है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि एडवांस में निकाली गई 2,812 करोड़ रुपये की राशि का उपयोग कहां हुआ और इसका हिसाब क्यों नहीं दिया गया।
विशेष रूप से ग्रामीण विकास विभाग से 411 करोड़ रुपये अन्य विभागों को दिए गए, लेकिन आज तक इसका कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है।
क्या है एसी-डीसी बिल का सिस्टम?
एसी बिल (Abstract Contingency Bill): सरकारी खजाने से एडवांस के रूप में निकाली गई राशि का हिसाब इस बिल के जरिए दिया जाता है।
डीसी बिल (Detailed Contingency Bill): यह बिल एडवांस राशि के वास्तविक खर्च का विवरण प्रस्तुत करता है। सरकारी नियमों के अनुसार, एसी बिल के तहत निकाली गई राशि का डीसी बिल एक महीने के भीतर देना अनिवार्य है।
नियमों की अनदेखी और सरकार की लापरवाही
CAG की रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया गया है कि राज्य सरकार के कई विभाग इस अनिवार्य प्रक्रिया को नजरअंदाज कर रहे हैं।
मार्च 2023 में, इस मुद्दे की जांच के लिए एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया गया था, लेकिन इसके बावजूद रिपोर्ट पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। यह लापरवाही न केवल नियमों का उल्लंघन है, बल्कि सरकारी तंत्र की कार्यप्रणाली पर भी गंभीर सवाल खड़े करती है।
विभागीय अनियमितताएं
CAG रिपोर्ट के अनुसार, जिन विभागों ने सबसे अधिक राशि निकाली, उनमें प्रमुख रूप से शामिल हैं:
ग्रामीण विकास विभाग: 411 करोड़ रुपये
सड़क निर्माण विभाग: 224 करोड़ रुपये
शिक्षा विभाग: 240 करोड़ रुपये
स्वास्थ्य विभाग: 147 करोड़ रुपये
नगर विकास विभाग: 107 करोड़ रुपये
विपक्ष का आरोप
इस मुद्दे को लेकर विपक्ष ने राज्य सरकार पर तीखा हमला किया है। भाजपा नेता बाबूलाल मरांडी ने सोशल मीडिया पर लिखा:
“झारखंड सरकार के खजाने से 2,812 करोड़ रुपये के गबन का मामला सामने आया है। यह राशि एसी-डीसी बिल के तहत निकाली गई, लेकिन अब तक इसका कोई हिसाब नहीं दिया गया। सरकार की इस लापरवाही ने जनता के विश्वास को झकझोर दिया है।”
वित्तीय पारदर्शिता पर सवाल
यह मामला सिर्फ वित्तीय लापरवाही तक सीमित नहीं है, बल्कि झारखंड सरकार की कार्यप्रणाली और पारदर्शिता पर भी गहरे सवाल खड़े करता है।
- हिसाब में देरी: एडवांस राशि का हिसाब देने में सालों की देरी क्यों हो रही है?
- कार्यवाही का अभाव: उच्चस्तरीय समिति की रिपोर्ट आने के बावजूद कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
- वित्तीय जवाबदेही: सरकारी अधिकारियों और विभागों की जवाबदेही तय क्यों नहीं हो रही?
क्या हो सकता है आगे?
इस गबन के खुलासे के बाद यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार इस मामले में क्या कदम उठाती है।
- सीबीआई या स्वतंत्र जांच: वित्तीय अनियमितताओं की जांच के लिए स्वतंत्र एजेंसी का गठन हो सकता है।
- वित्तीय प्रक्रियाओं में सख्ती: एडवांस निकासी और डीसी बिल के समायोजन में जवाबदेही तय करनी होगी।
- दोषियों पर कार्रवाई: इस घोटाले में शामिल अधिकारियों और विभागों पर कठोर कार्रवाई होनी चाहिए।
जनता की प्रतिक्रिया
झारखंड के लोगों में इस मामले को लेकर गहरा आक्रोश है। आम जनता सरकार से जवाबदेही की मांग कर रही है और यह उम्मीद की जा रही है कि दोषियों को जल्द से जल्द सजा मिले।
यह मामला केवल सरकारी वित्तीय प्रबंधन की विफलता नहीं है, बल्कि जनता के पैसों के साथ विश्वासघात का प्रतीक है। सरकार को इस मामले में पारदर्शिता और न्याय सुनिश्चित करने के लिए तुरंत ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।