डिजिटल डेस्क। मिरर मीडिया : भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने कार्यकाल के आखिरी दिन एक महत्वपूर्ण फैसले में ‘बुलडोजर जस्टिस’ की कड़ी आलोचना की। अपने बयान में उन्होंने स्पष्ट किया कि बुलडोजर का प्रयोग कर संपत्ति का विध्वंस करना कानून के शासन और मौलिक अधिकारों का हनन है। उन्होंने कहा कि अगर ऐसा न्यायिक प्रणाली में स्वीकार किया जाता है, तो संविधान के अनुच्छेद 300ए के तहत संपत्ति के अधिकार की सुरक्षा सिर्फ कागजी बनकर रह जाएगी।
पीठ ने यह भी कहा कि बुलडोजर से न्याय की संकल्पना सभ्य न्यायिक प्रणाली के मानकों के विपरीत है। जस्टिस चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने चिंता जताई कि यदि किसी सरकारी विभाग को इस तरह की मनमानी कार्यवाही की छूट दी जाती है, तो इससे नागरिकों की संपत्तियों को चुनिंदा प्रतिशोध के रूप में ध्वस्त करने का गंभीर खतरा उत्पन्न होगा।
अदालत ने विध्वंस से पहले उठाए जाने वाले छह आवश्यक कदम बताए
सुप्रीम कोर्ट ने भविष्य में किसी भी संपत्ति को ध्वस्त करने से पहले छह महत्वपूर्ण चरणों का पालन करने का निर्देश दिया है:
- मौजूदा भूमि रिकॉर्ड और मानचित्रों का सत्यापन।
- वास्तविक अतिक्रमणों की पहचान के लिए एक व्यवस्थित सर्वेक्षण।
- कथित अतिक्रमणकारियों को तीन बार लिखित नोटिस जारी करना।
- नोटिस के जवाब में आई आपत्तियों पर उचित विचार और आदेश पारित करना।
- अतिक्रमण हटाने के लिए पर्याप्त समय देना।
- अगर जरूरत हो तो अतिरिक्त भूमि का कानूनी अधिग्रहण करना।
महाराजगंज प्रकरण: राज्य की क्रूर कार्यवाही का उदाहरण
यह फैसला 2019 में उत्तर प्रदेश के महाराजगंज जिले में पत्रकार मनोज टिबरेवाल आकाश के घर के ध्वंस के मामले से जुड़ा है। अदालत ने राज्य द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया को ‘क्रूर’ बताया और विध्वंस के तरीके में कई कानूनी उल्लंघन पाए। राज्य ने इसे राष्ट्रीय राजमार्ग विस्तार के लिए आवश्यक बताया था, लेकिन जांच में सामने आया कि यह पूरी प्रक्रिया राज्य शक्ति के दुरुपयोग का प्रतीक थी।
पीड़ित को मुआवजा, दोषियों पर कार्यवाही का आदेश
अदालत ने राज्य को याचिकाकर्ता को 25 लाख रुपये का अंतरिम मुआवजा देने और यूपी के मुख्य सचिव को दोषी अधिकारियों और ठेकेदारों पर आपराधिक मामला दर्ज कर अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू करने का निर्देश दिया।
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