नई दिल्ली। कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष एकादशी को मनाई जाने वाली देवउठनी एकादशी (प्रबोधिनी एकादशी) इस वर्ष 1 नवंबर 2025 (शनिवार) को पड़ रही है। यह तिथि इसलिए विशेष मानी जाती है क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु चार महीनों की योगनिद्रा से जागते हैं और इसी के साथ शुभ कार्यों की शुरुआत होती है।
🌿 चातुर्मास का अंत और शुभ कार्यों की शुरुआत
धार्मिक मान्यता के अनुसार, आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक की अवधि को चातुर्मास कहा जाता है। इस दौरान देवता विश्राम अवस्था में रहते हैं, इसलिए विवाह, गृहप्रवेश, मुंडन या कोई भी मांगलिक कार्य नहीं किए जाते।
देवउठनी एकादशी के दिन जब भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागते हैं, तब माना जाता है कि ब्रह्मांड में शुभ ऊर्जा पुनः सक्रिय हो जाती है। इसलिए इस दिन से विवाह, नामकरण, गृहप्रवेश जैसे सभी शुभ कार्यों की शुरुआत होती है।
🪔 देवउठनी एकादशी का महत्व
इस दिन भक्तजन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की विशेष पूजा करते हैं। मान्यता है कि देवउठनी एकादशी का व्रत रखने और पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि, वैवाहिक सुख और सौभाग्य प्राप्त होता है।
इस अवसर पर भगवान विष्णु के जागरण की प्रतीकात्मक पूजा “उठो देव उठो” कहकर की जाती है। भक्त गन्ना, फूल, दीपक और तुलसी अर्पित करते हैं।
📖 पौराणिक कथा
पुराणों के अनुसार, जब भगवान विष्णु ने बलि राजा से वामन अवतार लेकर तीन पग भूमि मांगी थी, तब उन्होंने पाताल लोक को अपना निवास बनाया। उसी समय भगवान विष्णु ने चार महीनों के लिए योगनिद्रा में प्रवेश किया।
चार महीने बाद, कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन जब भगवान विष्णु जागे, तब धरती पर पुनः जीवन, ऊर्जा और शुभता का संचार हुआ। इसी कारण इसे “देवोत्थान एकादशी” कहा जाता है।
💍 तुलसी विवाह और शुभ कार्यों का आरंभ
देवउठनी एकादशी के अगले दिन तुलसी विवाह का आयोजन किया जाता है, जिसमें तुलसी (माता लक्ष्मी का रूप) का विवाह भगवान विष्णु (शालिग्राम रूप) से कराया जाता है। यह विवाह मांगलिक कार्यों की औपचारिक शुरुआत का प्रतीक होता है।
इस दिन से पूरे देश में शादी-विवाह, गृहप्रवेश, अन्नप्राशन आदि मांगलिक कार्यक्रम शुरू हो जाते हैं।

