संवाददाता, धनबाद: प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश वीरेंद्र कुमार तिवारी के नेतृत्व में सोमवार को एक उच्च स्तरीय टीम ने मंडल कारा का निरीक्षण किया। इस टीम में न्यायिक अधिकारियों और जिला प्रशासन के कई वरिष्ठ सदस्य शामिल थे।
प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश वीरेंद्र कुमार तिवारी ने बताया कि सामाजिक संगठनों और कुछ रिपोर्ट्स में आशंका व्यक्त की गई थी कि जेलों में बंदियों के बीच जातिगत भेदभाव हो सकता है। इसके तहत कैदियों को जाति या समुदाय के आधार पर अलग-अलग बैरकों में रखने की बात सामने आई थी। इन मुद्दों पर सर्वोच्च न्यायालय ने स्वत: संज्ञान लेते हुए 31 अक्टूबर 2024 को आदेश पारित किया था और सभी जेलों में जांच के निर्देश दिए थे।
प्रधान न्यायाधीश ने बताया कि मंडल कारा में ऐसी कोई अनियमितता नहीं पाई गई। जेल प्रशासन का मुख्य उद्देश्य कैदियों का पुनर्वास और सुरक्षा सुनिश्चित करना है।
मंडल कारा के प्रभारी अधीक्षक सह अपर समाहर्ता विनोद कुमार ने कहा कि बंदियों को उनके अपराध की प्रकृति, सुरक्षा की स्थिति और उनके व्यवहार के आधार पर बैरकों में रखा जाता है, न कि जाति, धर्म या किसी अन्य सामाजिक पहचान के आधार पर।
न्यायाधीश सह सचिव, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, राकेश रोशन ने जानकारी दी कि यह जांच सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर की गई। सामाजिक संस्था सुकन्या बनाम भारत सरकार के मामले (रिट याचिका संख्या 1404/23) में जेलों में जातिगत वर्गीकरण की शिकायत पर अदालत ने सभी जेलों में जांच का आदेश दिया था।
जांच टीम में प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश वीरेंद्र कुमार तिवारी, अवर न्यायाधीश राकेश रोशन, अपर समाहर्ता सह मंडल कारा अधीक्षक विनोद कुमार, अनुमंडल पदाधिकारी राजेश कुमार, प्रभारी चीफ मेडिकल ऑफिसर डॉ. रोहित गौतम, डॉ. राजीव कुमार सिंह, जिला समाज कल्याण पदाधिकारी अनीता कुजूर, भवन प्रमंडल के कार्यपालक पदाधिकारी चंदन कुमार, जिला कृषि पदाधिकारी शिव कुमार राम, प्रखंड शिक्षा प्रसार पदाधिकारी विनोद कुमार मोदी, और एलएडीसीएस के चीफ कुमार विमलेंदू समेत अन्य अधिकारी शामिल थे।यह जांच सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का अनुपालन है, जिसका उ
द्देश्य जेलों में बंदियों के साथ समान और न्यायपूर्ण व्यवहार सुनिश्चित करना है। मंडल कारा में किसी भी प्रकार का जातिगत भेदभाव न होने की पुष्टि की गई है।