परिचय
विवाह, जिसे भारतीय संस्कृति में सात फेरों और भगवान को साक्षी मानकर एक पवित्र बंधन माना गया है, आज के समय में रिश्ते उस पवित्रता से दूर होते जा रहे है। पहले जहां पति-पत्नी के बीच झगड़े भी रिश्ते को मजबूत करते थे, आज वही झगड़े जानलेवा बनते जा रहे हैं। बीते दो वर्षों में ऐसे कई मामले सामने आए हैं जहां वैवाहिक तनाव के चलते पुरुषों ने आत्महत्या कर ली या फिर हत्या जैसी घटनाएं हुईं। जबकि महिलाओं में भी ये आंकड़े अच्छे नहीं है।
बिगड़ते रिश्तों की कड़वी सच्चाई
पिछले दो वर्षों में देश के अलग-अलग हिस्सों में हजारों ऐसे मामले सामने आए हैं जहां शादीशुदा जीवन में तनाव इतना बढ़ गया कि पति ने आत्महत्या कर ली। कुछ मामलों में पुरुषों ने अपने बच्चों और पत्नी की हत्या कर खुद भी जान दे दी। NCRB (National Crime Records Bureau) के आंकड़ों के अनुसार 2023 में 81,000 पुरुषों ने आत्महत्या की, जिनमें से बड़ी संख्या वैवाहिक तनाव से जुड़ी थी। वहीं, महिलाओं में यह संख्या 45,000 के आसपास रही।
आत्महत्याओं के बढ़ते आंकड़े: एक चिंताजनक स्थिति
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, 2022 में भारत में 1,71,000 आत्महत्याएं दर्ज की गईं, जो अब तक की सबसे अधिक संख्या है। इनमें से कई मामलों में वैवाहिक तनाव, मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं, और सामाजिक दबाव प्रमुख कारण रहे हैं।
सोशल मीडिया: रिश्तों का नया दुश्मन
सोशल मीडिया, जो कभी लोगों को जोड़ने का माध्यम था, अब कई बार रिश्तों में तीसरा व्यक्ति लाकर उन्हें तोड़ने का काम कर रहा है। पति-पत्नी के बीच में किसी और का आना, चैटिंग, अफेयर, या फिर इंस्टाग्राम पर अजनबियों के साथ बढ़ती नजदीकियां, ये सब आज तलाक और रिश्तों की मौत के बड़े कारण बन चुके हैं।
महिलाओं द्वारा कानून का दुरुपयोग
भारतीय कानून में महिलाओं को संरक्षण देने के लिए धारा 498A, घरेलू हिंसा अधिनियम और दहेज कानून जैसी कई धाराएं बनाई गई हैं, परंतु आज इनका दुरुपयोग भी तेजी से बढ़ रहा है। कई महिलाएं झूठे आरोप लगाकर पुरुषों को मानसिक प्रताड़ना देती हैं, जिससे वे अवसाद में जाकर आत्महत्या कर लेते हैं। अदालतों ने भी समय-समय पर माना है कि 498A जैसे कानूनों का दुरुपयोग हो रहा है। NCRB की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार 80% से अधिक ऐसे मामले झूठे पाए गए या सबूतों के अभाव में खारिज हुए।
शादी की मर्यादा का हनन
आजकल कई महिलाएं विवाह के बाद भी प्रेम संबंधों में पड़ रही हैं और अपने पति को धोखा दे रही हैं। यह न केवल पति के आत्मसम्मान को चोट पहुंचाता है, बल्कि समाज को भी गलत संदेश देता है। जब कोई महिला अपने वैवाहिक जीवन में तीसरे पुरुष को शामिल करती है, तो वह विवाह संस्था के प्रति विश्वास को तोड़ती है। यह आने वाले समय में युवाओं के मन में विवाह के प्रति नकारात्मक सोच पैदा करता है, जिससे लोग शादी से ही डरने लगते हैं।
सौरभ–मुस्कान केस: विश्वासघात की पराकाष्ठा
मार्च 2025 में मेरठ में एक दिल दहला देने वाला मामला सामने आया, जहाँ पूर्व मर्चेंट नेवी अधिकारी सौरभ राजपूत की हत्या उनकी पत्नी मुस्कान रस्तोगी और उसके प्रेमी साहिल शुक्ला ने मिलकर की। सौरभ की लाश को 15 टुकड़ों में काटकर सीमेंट से भरे ड्रम में छिपाया गया था। इस घटना ने समाज में वैवाहिक विश्वास और मर्यादा पर गहरा प्रश्नचिन्ह लगा दिया।
मेरठ विवाहिता आत्महत्या केस: दर्दनाक और उत्पीड़न का काला सच
2025 में ही मेरठ में एक अन्य मामला सामने आया, जहाँ निशा वर्मा नामक विवाहिता का शव फांसी के फंदे से लटका मिला। परिजनों ने ससुराल वालों पर दहेज के लिए हत्या का आरोप लगाया। ससुराल पक्ष के लोग शव को अस्पताल में छोड़कर फरार हो गए थे।
कानून का दुरुपयोग: 498A और अन्य धाराओं का गलत इस्तेमाल
महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाए गए कानूनों का दुरुपयोग भी एक गंभीर समस्या बन चुका है। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने 2023 में टिप्पणी की थी कि महिलाएं अब पति और ससुराल वालों के खिलाफ “पाँच मामलों का पैकेज” दर्ज कराती हैं, जिसमें 498A, घरेलू हिंसा अधिनियम, और अन्य धाराएं शामिल होती हैं।
किसने किसे ज्यादा धोखा दिया: आंकड़ों की नजर से
अगर आंकड़ों की बात करें तो पुरुषों द्वारा धोखा देने के मामले अधिक रिपोर्ट किए जाते हैं, लेकिन महिलाओं द्वारा धोखा देने और कानून का दुरुपयोग कर पुरुषों को मानसिक प्रताड़ना देने के मामलों में बढ़ोत्तरी हुई है। Matrimonial Dispute Analysis 2022 के अनुसार, वैवाहिक जीवन में विश्वासघात के 58% मामलों में महिला द्वारा किसी और पुरुष से संबंध रखने की बात सामने आई। वहीं, पुरुषों द्वारा धोखा देने के मामले 42% थे। लेकिन इन दोनों ही स्थितियों में जब महिला झूठे केस करती है, तो पुरुष के पास न तो विकल्प बचता है और न ही सहारा।
तीसरे की एंट्री: रिश्तों की सबसे बड़ी चूक
पति हो या पत्नी, कभी भी किसी तीसरे व्यक्ति को अपने रिश्ते के बीच में नहीं लाना चाहिए, चाहे झगड़ा एक दिन का हो, एक महीने का या सालों पुराना क्यों न हो। रिश्ते में उतार-चढ़ाव आना स्वाभाविक है, लेकिन किसी अजनबी को दिल या ज़िंदगी में जगह देना उस रिश्ते की नींव को ही हिला देता है। अक्सर यही छोटी-छोटी दूरी, जब किसी बाहरी व्यक्ति की नज़दीकी से भर दी जाती है, तो वह रिश्ता विश्वास, सम्मान और वफादारी जैसे मूल स्तंभ खो देता है। भावनात्मक या शारीरिक स्तर पर किसी तीसरे से जुड़ाव, एक बार नहीं, बल्कि रिश्ते के हर पहलू को धीरे-धीरे तोड़ने लगता है।
अगर वाकई स्थिति ऐसी हो जाए कि साथ रहना संभव न हो, तो शांति और समझदारी से अलग होकर दोनों के अच्छे भविष्य के लिए सही निर्णय लिया जा सकता है। लेकिन किसी और के बहकावे या आकर्षण में आकर अपने जीवनसाथी के साथ विश्वासघात करना, न सिर्फ गलत है, बल्कि दोनों के जीवन को लंबे समय तक प्रभावित कर सकता है। रिश्तों को बचाना मुश्किल नहीं होता, बस सही वक्त पर सही सोच और समझदारी ज़रूरी होती है।
“विवाह: समझदारी, समर्पण और सीमाओं की मर्यादा”
विवाह केवल दो लोगों का साथ नहीं, बल्कि दो सोचों, दो संस्कारों और दो दुनियाओं का मिलन है। इस बंधन को निभाने के लिए प्यार, समझ, तालमेल और सबसे ज़रूरी, एक-दूसरे के प्रति सम्मान और वफादारी जरूरी होती है। शादी के बाद तालमेल बैठाना, एक-दूसरे की पसंद-नापसंद समझना और समय के साथ समझदारी से एडजस्ट करना ही रिश्ते को मजबूत बनाता है। हर रिश्ते में गलतियां होती हैं, पर उन गलतियों को माफ करना, आगे बढ़ना और एक-दूसरे के साथ खड़े रहना ही सच्चे प्रेम की निशानी है।
लेकिन इसका मतलब यह कदापि नहीं है कि जब रिश्ते में कठिन समय आए, तो उसका समाधान किसी अजनबी व्यक्ति के साथ भावनात्मक या शारीरिक संबंध बनाकर खोजा जाए। रिश्ते में किसी तीसरे व्यक्ति का प्रवेश रिश्ते की जड़ को खोखला कर देता है। किसी सोशल मीडिया चैट, कॉल, या मुलाकात से शुरू हुआ यह भावनात्मक झुकाव धीरे-धीरे विश्वासघात का रूप ले लेता है।
प्यार और समझदारी का यह बंधन तभी टिक सकता है जब दोनों साथी यह समझें कि खुशी सिर्फ खुद के लिए नहीं, बल्कि एक-दूसरे की भावनाओं का आदर करने में है। रिश्ते की मर्यादा को बनाए रखना, वफादारी निभाना और समस्याओं से मिलकर लड़ना ही असली “साथ निभाना” है। याद रखें, सच्चे रिश्ते में प्रेम के साथ-साथ सीमाओं की मर्यादा और एकनिष्ठता सबसे बड़ा आधार होती है। और जब दोनों साथी इस आधार को समझते हैं, तब ही विवाह एक सच्चे, सुंदर और स्थायी रिश्ते का रूप लेता है।
विवाह, जो कभी जीवनभर का साथ माना जाता था, आजकल विश्वासघात, कानून के दुरुपयोग, और सामाजिक दबावों के कारण संकट में है। सौरभ-मुस्कान और निशा वर्मा जैसे मामलों ने समाज को झकझोर कर रख दिया है। अब समय आ गया है कि हम विवाह की पवित्रता को पुनः स्थापित करें, कानूनों के दुरुपयोग को रोकें, और सामाजिक मूल्यों को सुदृढ़ करें।
भगवद गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने जीवन, कर्तव्य, संबंधों और आत्मा की गहराई को समझाते हुए उपदेश दिए हैं जो रिश्तों पर भी समान रूप से लागू होते हैं।
1. स्वधर्म और कर्तव्य का पालन —
श्लोक (अध्याय 3, श्लोक 19):
“तस्मादसक्तः सततं कार्यं कर्म समाचर। असक्तो ह्याचरन्कर्म परमाप्नोति पूरुषः।।”
भावार्थ:
इसलिए आसक्ति को त्याग कर निरंतर अपने कर्तव्यों का पालन करो। क्योंकि आसक्ति-रहित होकर कर्म करने वाला व्यक्ति परम लक्ष्य को प्राप्त करता है।
पति-पत्नी, माता-पिता या किसी भी रिश्ते में हमारा कर्तव्य होता है कि हम निःस्वार्थ भाव से उस रिश्ते को निभाएं। जब हम अपेक्षा और स्वार्थ से परे होकर किसी के लिए कुछ करते हैं, तो रिश्ते और भी गहरे हो जाते हैं।
2. क्रोध और अहंकार से बचो —
श्लोक (अध्याय 2, श्लोक 62-63):
“क्रोधाद्भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्मृति विब्रमः। स्मृति भ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात् प्रणश्यति।।”
भावार्थ:
क्रोध से भ्रम उत्पन्न होता है, भ्रम से स्मृति का नाश होता है, स्मृति के नाश से बुद्धि का विनाश होता है, और बुद्धि के विनाश से मनुष्य पतन को प्राप्त होता है।
झगड़े या मतभेद के समय हमें अपने क्रोध पर नियंत्रण रखना चाहिए, क्योंकि एक गलत शब्द रिश्ते को हमेशा के लिए खत्म कर सकता है।
3. आत्मा का ज्ञान और स्थिरता —
श्लोक (अध्याय 2, श्लोक 13):
“देहिनोऽस्मिन यथा देहे कौमारं यौवनं जरा। तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति।।”
भावार्थ:
जैसे शरीर में बाल्यावस्था, युवावस्था और वृद्धावस्था आती है, वैसे ही मृत्यु के बाद आत्मा दूसरा शरीर धारण करती है। ज्ञानी व्यक्ति इसमें मोह नहीं करता।
हर रिश्ता शरीर से नहीं, आत्मा से जुड़ा होता है। जब हम आत्मा के स्तर पर संबंधों को देखें, तो मोह, क्रोध, जलन जैसी नकारात्मक भावनाएं समाप्त हो जाती हैं।
4. निष्काम भाव से प्रेम करना —
श्लोक (अध्याय 12, श्लोक 13-14):
“अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्रः करुण एव च। निर्ममो निरहंकारः समदुःखसुखः क्षमी।।”
भावार्थ:
जो सभी प्राणियों से द्वेष रहित है, करुणाशील है, ममता और अहंकार से रहित है, सुख-दुख में समान रहता है और क्षमाशील है – वह भक्त मुझे प्रिय है।
रिश्ते तभी टिकते हैं जब उनमें ममता हो, पर स्वामित्व का भाव न हो, यानी अपेक्षा नहीं, समर्पण हो।
“विवाह में ‘हम’ की भावना बनाम ‘मैं’ की सोच”
विवाह एक ऐसा बंधन है, जिसमें दो व्यक्ति जीवन भर के लिए साथ निभाने का वादा करते हैं। इसमें प्रेम, विश्वास, सम्मान और समझदारी की सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है। जीवन में उतार-चढ़ाव, खासकर आर्थिक परेशानियाँ, आना स्वाभाविक है। लेकिन यह परेशानी कभी भी रिश्तों को तोड़ने का कारण नहीं बननी चाहिए। मिल-जुल कर चलना, एक-दूसरे का सहारा बनना और मुश्किलों को साथ पार करना ही असली रिश्ते की पहचान है। लेकिन आज समाज में एक नया चलन देखने को मिल रहा है—महिलाओं का आर्थिक रूप से स्वतंत्र होना, जो स्वाभाविक रूप से एक सकारात्मक बात है, मगर कई बार यह स्वतंत्रता “हम” की भावना को “मैं” में बदल देती है।
जब महिलाएं आत्मनिर्भर होती हैं, तब कई बार यह सोच बन जाती है कि “अब मुझे किसी की ज़रूरत नहीं।” इसका असर सबसे पहले उस रिश्ते पर पड़ता है, जिसे उन्होंने प्यार और समर्पण से शुरू किया था। पति-पत्नी का रिश्ता बराबरी का होता है, लेकिन बराबरी का मतलब अलगाव नहीं, बल्कि साथ चलना है।
पुरुष, परंपरागत रूप से, परिवार को जोड़ने और निभाने की भूमिका निभाता आया है। वह खुद चाहे कितना भी कमाए, उसकी सोच हमेशा “हमारा परिवार” के इर्द-गिर्द घूमती है। वहीं कुछ मामलों में, जैसे ही पत्नी आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होती है, वह निर्णयों में अकेली हो जाती है, और रिश्ते में साझेदारी की भावना कम होती जाती है।
क्या आर्थिक आज़ादी रिश्ते को तोड़ रही है?
आर्थिक स्वतंत्रता एक अधिकार है, लेकिन जब यह रिश्ते की भावना और सामंजस्य को खा जाती है, तब यह सवाल उठाना ज़रूरी हो जाता है—”क्या हम आर्थिक रूप से आगे तो बढ़ रहे हैं, लेकिन भावनात्मक रूप से पीछे तो नहीं जा रहे?”
स्वतंत्रता का सही उपयोग तभी है जब वह रिश्ते को तोड़े नहीं, बल्कि संवार दे। जब पति-पत्नी दोनों कंधे से कंधा मिलाकर चलें, एक-दूसरे के संघर्ष को समझें और कठिनाइयों में साथ खड़े रहें—तभी शादी का असली अर्थ साकार होता है।
आज की बदलती सामाजिक सोच और आधुनिक जीवनशैली में विवाह को लेकर गंभीरता कम होती जा रही है। सोशल मीडिया, स्वतंत्रता की गलत परिभाषा, और कानून का दुरुपयोग मिलकर उस पवित्र रिश्ते को कलंकित कर रहे हैं जिसे हमने ‘जन्म -जन्म का साथ’ माना था। अगर समाज को टूटने से बचाना है, तो जरूरी है कि पति-पत्नी एक-दूसरे के प्रति ईमानदार रहें, कानूनों में संतुलन हो, और सामाजिक मर्यादाओं का पालन किया जाए। नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब विवाह जैसे पवित्र रिश्ते केवल किताबों और फिल्मों में ही नजर आएंगे।