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म्यांमार में भूकंप का कहर: इसरो की सैटेलाइट तस्वीरों ने दिखाई तबाही

डिजिटल डेस्क। मिरर मीडिया: म्यांमार में 28 मार्च को आए 7.7 तीव्रता के शक्तिशाली भूकंप के झटके पड़ोसी देशों थाईलैंड, वियतनाम, चीन, भारत और बांग्लादेश तक महसूस किए गए। भूकंप के बाद 6.4 तीव्रता का आफ्टरशॉक भी आया। भूकंप का केंद्र सैंगोंग और मांडले की सीमा के पास, जमीन के भीतर 10 किलोमीटर की गहराई में था। हालांकि, म्यांमार में सैन्य शासन और इंटरनेट पाबंदियों के कारण सही नुकसान का आकलन कर पाना मुश्किल हो रहा था।

इसरो ने जारी की सैटेलाइट तस्वीरें

अब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने सैटेलाइट तस्वीरें जारी कर इस भूकंप से हुई तबाही को उजागर किया है। इसरो के अर्थ इमेजिंग और मैपिंग सैटेलाइट कार्टोसैट-3 ने भूकंप से पहले और बाद की तस्वीरें साझा की हैं। 29 मार्च को इसरो ने म्यांमार के मांडले और सैंगोंग शहर की हाई-रिजोल्यूशन तस्वीरें लीं, जिनमें विनाशकारी प्रभाव स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं।

बुनियादी ढांचे को भारी नुकसान

इसरो के विश्लेषण के अनुसार, मांडले शहर में कई ऐतिहासिक और प्रमुख इमारतों को गंभीर नुकसान पहुंचा है। इनमें स्काई विला, फयानी पैगोडा, महामुनि पैगोडा, आनंद पैगोडा और यूनिवर्सिटी ऑफ मांडले जैसी महत्वपूर्ण संरचनाएं शामिल हैं। सैंगोंग शहर में भी मा शि खाना पैगोडा और कई मठों को क्षति पहुंची है।

ऐतिहासिक अवा पुल हुआ ध्वस्त

इसरो की तस्वीरों में इन वा शहर के पास इरावदी नदी पर बना ऐतिहासिक अवा पुल पूरी तरह से ढह चुका है। साथ ही, इरावदी नदी के बाढ़ के मैदान में दरारें आई हैं, जिनसे पानी निकलता हुआ देखा जा सकता है। यह स्पष्ट संकेत हैं कि भूकंप का प्रभाव प्राकृतिक भू-संरचनाओं पर भी पड़ा है।

उन्नत तकनीक से क्षति का आकलन

इसरो ने अपने बयान में कहा कि 18 मार्च को इस क्षेत्र के पहले से लिए गए डेटा की तुलना करके भूकंप से हुए नुकसान का आकलन किया गया है। कार्टोसैट-3 तीसरी पीढ़ी का उन्नत उपग्रह है, जिसमें उच्च-रिज़ॉल्यूशन इमेजिंग क्षमता मौजूद है। इसकी सहायता से प्रभावित क्षेत्रों का सटीक विश्लेषण किया जा सका।

आपदा प्रबंधन के लिए उपयोगी डेटा

इसरो द्वारा जारी यह डेटा आपदा प्रबंधन और पुनर्निर्माण के लिए बेहद महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। भूकंप प्रभावित क्षेत्रों में राहत एवं बचाव कार्यों की प्रभावी योजना बनाने में इन सैटेलाइट इमेजेस की अहम भूमिका होगी। इससे यह भी स्पष्ट हुआ है कि प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव का आकलन करने में भारत की अंतरिक्ष तकनीक कितनी सक्षम है।

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