जमुई, बिहार: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक हलचल जोरों पर है। राज्यभर में नए समीकरण बन रहे हैं और पुरानी रंजिशें फिर से उभरने लगी हैं। ऐसे माहौल में चकाई विधानसभा सीट की सियासी कहानी बेहद खास है, जहां बीते चार दशकों से मुख्य मुकाबला दो राजनीतिक परिवारों के बीच ही होता आया है।
चकाई विधानसभा सीट मुख्यतः दो प्रमुख परिवारों – श्रीकृष्ण सिंह-नरेंद्र सिंह परिवार और फाल्गुनी प्रसाद यादव परिवार – के बीच राजनीतिक अखाड़ा रही है। 1977 से लेकर अब तक यहां 15 चुनाव हुए हैं, जिनमें से 13 बार इन्हीं परिवारों के छह सदस्य विधायक बन चुके हैं।
चकाई सीट का भौगोलिक और राजनीतिक परिचय
बिहार के 38 जिलों में से एक है जमुई, जिसका गठन 21 फरवरी 1991 को मुंगेर से अलग होकर हुआ। यह जमुई लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है, जिसमें छह विधानसभा सीटें आती हैं – सिकंदरा, जमुई, झाझा, चकाई (जमुई जिले में) और तारापुर (मुंगेर) व शेखपुरा (शेखपुरा जिले में)।
चकाई विधानसभा सीट पर पहला चुनाव 1962 में हुआ था। तब यह सीट अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए आरक्षित थी। बाद में इसे सामान्य श्रेणी में कर दिया गया।
1962: पहला चुनाव और सोशलिस्ट पार्टी की जीत
चकाई के पहले चुनाव में सोशलिस्ट पार्टी के लखन मुर्मू ने कांग्रेस के भागवत मुर्मू को 2,404 वोट से हराया था।
1967-1969: श्रीकृष्ण सिंह की जीत का दौर
1967 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (SSP) के श्रीकृष्ण सिंह ने कांग्रेस के एम. मिश्रा को 6,674 वोट से हराया।
1969 में भी उन्होंने कांग्रेस के सच्चिदानंद राय को 4,249 वोट से शिकस्त दी।
1972: कांग्रेस का प्रवेश और मुख्यमंत्री का उदय
1972 में चंद्रशेखर सिंह ने SSP के श्रीकृष्ण सिंह को 12,697 वोट से हराकर कांग्रेस को पहली जीत दिलाई। यही चंद्रशेखर सिंह आगे चलकर बिहार के मुख्यमंत्री बने।
1977: फाल्गुनी प्रसाद यादव की एंट्री
इस साल निर्दलीय उम्मीदवार फाल्गुनी प्रसाद यादव ने जनता पार्टी के कुमार नरेंद्र प्रसाद सिंह को मात्र 95 वोट से हराकर चौंकाया। तीसरे स्थान पर कांग्रेस के चंद्रशेखर सिंह रहे।
1980: भाजपा से फाल्गुनी यादव की जीत
1980 में फाल्गुनी यादव भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े और जनता पार्टी के नरेंद्र कुमार सिंह को 8,374 वोट से हराया।
1985: नरेंद्र सिंह की दमदार वापसी
कांग्रेस से चुनाव लड़कर नरेंद्र सिंह ने फाल्गुनी यादव को 33,128 वोट से हराया और पहली बार विधायक बने।
1990: दो दिग्गज फिर आमने-सामने
इस बार नरेंद्र सिंह जनता दल से मैदान में थे और उन्होंने भाजपा के फाल्गुनी यादव को 17,131 वोट से पराजित किया।
1995: फाल्गुनी यादव की तीसरी जीत
चकाई सीट से इस बार फाल्गुनी यादव ने नरेंद्र सिंह को 3,193 वोट से हराकर वापसी की।
2000: नरेंद्र सिंह की रिकॉर्ड बराबरी
इस बार नरेंद्र सिंह ने निर्दलीय रूप में चुनाव लड़कर भाजपा के फाल्गुनी यादव को 30,471 वोट से हराया और फाल्गुनी की तीन जीतों की बराबरी कर ली।
2005: दो चुनाव, दो परिणाम
फरवरी 2005: नरेंद्र सिंह के बेटे अभय सिंह ने लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) से जीत दर्ज की। उन्होंने भाजपा के फाल्गुनी यादव को 4,619 वोट से हराया।
अक्टूबर 2005: फाल्गुनी यादव ने जेडीयू के अर्जुन मंडल को 5,683 वोट से हराकर चौथी बार जीत दर्ज की।
इस चुनाव में अभय सिंह जमुई सीट से चुनाव लड़कर जीत गए।
2010: तीसरी पीढ़ी की एंट्री
सुमित कुमार सिंह, जो श्रीकृष्ण सिंह के पोते और नरेंद्र सिंह के बेटे हैं, ने झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) से चुनाव लड़ा और LJP के विजय कुमार सिंह को 188 वोट से हराया।
2015: सावित्री देवी का उदय
2015 में राजद की उम्मीदवार सावित्री देवी ने निर्दलीय सुमित कुमार सिंह को 12,113 वोट से हराया। सावित्री देवी, फाल्गुनी यादव की पत्नी हैं।
2020: फिर वही मुकाबला, बदला नतीजा
इस बार फिर मुकाबला सुमित कुमार सिंह और सावित्री देवी के बीच हुआ। सुमित ने निर्दलीय चुनाव लड़ते हुए सावित्री देवी को 581 वोट से हराकर सीट वापस ली।
चकाई की सियासत – दो परिवार, एक कहानी
चकाई विधानसभा सीट बिहार की उन चुनिंदा सीटों में से है, जहां राजनीति पूरी तरह पारिवारिक वर्चस्व पर आधारित रही है। 13 में से 15 चुनाव दो परिवारों के बीच हुए हैं।
सिंह परिवार और यादव परिवार के बीच का यह सियासी संघर्ष अब पीढ़ी दर पीढ़ी चलता आ रहा है।
अब सवाल है कि क्या 2025 में यह संघर्ष जारी रहेगा, या कोई नया चेहरा इस सियासी परंपरा को तोड़ेगा?
राजनीति के इस दिलचस्प मुकाबले पर सभी की नजरें टिकी हैं।

