मिरर मीडिया : एक समान नागरिक संहिता कानून लो देश में लागू करने के लिए केंद्र सरकार ने कवायद शुरू कर दी है। सूत्रों कि माने तो आने वाले समय में कभी भी इस कानून का केंद्रीय बिल संसद में पेश किया जा सकता है। वहीं इस परीक्षण के तौर पर उत्तराखंड में इस कानून के बनाने की कवायद शुरू की गई है जिसमें एक कमेटी का गठन कर दिया है। इस कमेटी के लिए ड्राफ्ट निर्देश बिन्दु केंद्रीय कानून मंत्रालय ने ही दिए हैं। सूत्रों के अनुसार राज्यों में बने नागरिक संहिता के कानूनों को बाद में केंद्रीय कानूनों में समाहित कर दिया जाएगा। क्योंकि एक समानता लाने के लिए कानून का केंद्रीय होना जरूरी है। राज्यों में यह कानून को परीक्षण के तौर पर बनवाया जा रहा है।
अतः इनकार नहीं किया जा सकता है कि कानून का ड्राफ्ट केंद्र सरकार के पास बना हुआ है। वहीं विधि आयोग के 2020 में पुनर्गठन होने के बावजूद कार्यशील नहीं होने के कारण राज्य स्तर पर कमेटियां बनाई जा रही हैं। इसमें सुप्रीम कोर्ट की पूर्व जज जस्टिस रंजना देसाई, दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व जज प्रमोद कोहली, पूर्व आईएएस शत्रुघ्न सिंह और दून विवि की वीसी सुरेखा डंगवाल शामिल हैं। सूत्रों कि माने तो यह कमेटी अन्य राज्यों मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश में भी बनाई जा सकती है।
गौरतलब है कि समान नागरिक संहिता से देश में सभी नागरिकों के लिए विवाह, विवाह की उम्र, तलाक, पोषणभत्ता, उत्तराधिकार, सह-अभिभावकत्व, बच्चों की कस्टडी, विरासत, परिवारिक संपत्ति का बंटवारा, वसीयत, चैरिटी-दान आदि पर एक समान कानून हो जाएगा चाहे वे किसी भी धर्म या संप्रदाय या मत से हों।
हालांकि अभी ये कानून हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई और पारसियों के लिए अलग अलग हैं जो उनके धार्मिक ग्रंथों पर आधारित हैं। हिन्दुओं का कानून वेद, उपनिषद, स्मृति, न्याय के आधुनिक मत, बराबरी आदि पर आधारित हैं जबकि मुसलमानों का कानून कुरान, सुन्नाह, इज्मा और कियास पर आधारित हैं। इसी प्रकार ईसाइयों का कानून बाइबल, रूढियां, तर्क और अनुभव के आधार पर बने हैं। पारसियों के कानून का आधार उनके धार्मिक ग्रंथ जेंद एवेस्ता और रूढियां हैं।