1932 खतियान वाले आदेश के कॉलम में वर्ष 2000 में झारखंड सृजन के समय की आबादी को भी दें जगह : स्वायत परिषद के गठन के तारीख को महत्व दें झारखंड सरकार – कुमार मधुरेंद्र

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मिरर मीडिया : 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीयता के प्रस्ताव के साथ झारखंड की राजनीति में तो हलचल मची ही है इसके साथ ही आमजन के जेहन में भी कई सारे सवाल हैं जो विरोध और सहमती के साथ अब दिखाई देने लगे है। लोग खुलकर इसपर तर्क और वितर्क भी कर रहें हैं। इसी क्रम में समाजसेवी कुमार मधुरेंद्र ने भी कई सारे तथ्यों के साथ झारखंड की तत्त्क्षण की वास्तविक परिदृश्य और झारखंड के सृजन होने के समय की परिदृश्य को दर्शाते हुए 1932 के खतियान पर अपने विचार को प्रकट करते हुए कुछ सुधार को लेकर सुझाव दिये हैं।

इस बाबत उन्होंने झारखंड के मुख्यमंत्री को इस संबंध में पत्र लिखा है कि अंग्रेजी शासनकाल में धालभुम स्टेट हुआ करता था, कतरास गढ़, टुंडी, नगरकियारी इत्यादि हमसब ने भी पढ़ा था। उसके बाद 1833 में इन सभी को मिलाकर स्टेट को मानभुम नाम दिया गया था। वहीं लंबे अंतराल के बाद मानभुम जिलें से 1964 के करीब मानभुम जिलें से हटाकर धनबाद जिले का निर्माण किया गया पुर्ण रुपेण,इसी दरम्यान आगे चलकर बोकारो को भी 1991 में काटकर अलग किया गया है। शिक्षा प्राप्त करने के क्रम में आपने इसे पढ़ा होगा या बाबा दिशोम गुरु शिबू सोरेन से वार्ता करने के दरम्यान यह जानकारी मिली होगी।

उन्होंने आगे 1932 खतियान के लागू होने से बंगाल और बिहार से सटे बॉर्डर पर बसे हजारों लोग उनके घर पर असर के बारे संभावित होने वाले प्रतिक्रिया पर लिखा है कि धनबाद और बोकारो जमशेदपुर जिला में ही आज भी कितने गांव का दायरा बंगाल में आता है और दो दिन पहले ही धनबाद सांसद पशुपति नाथ सिंह  चिरकुंडा या कुमारधुबी रेलवे स्टेशन पर यात्री सुविधा या VVIP रुम का उद्घाटन किया। उन्होंने तो बंगाल यानि आसनसोल के डीआरएम महोदय का क्षेत्र पड़ गया और वो उस कार्यक्रम में सम्मिलित हुए जबकि डीआरएम महोदय धनबाद को होना चाहिए था पर सही रुप से ना लोकसभा या विधानसभा क्षेत्र का बंटवारा आजतक सटीक है। कितने की जमीन भी दो राज्यों में शाय़द आतीं हो या अन्य लोकसभा में आतीं हो।

इस तरह की समस्या से निजात पहले पाऐ और विधानसभा सत्र में चर्चा कर ले तब फिर इसे पुर्ण रूपेण लागु करने का सोचे। जो बिहार और बंगाल के समय से यानि 1932 के बाद ही आपके क्षेत्र में नौकरी करते हुए रिटायर हो चुके हैं और उनके परिवार आज भी भाड़े या कोई मकान बना कर रह रहे हैं वो भी तो विधानसभा चुनाव और लोकसभा में मतदान का प्रयोग कर रहे हैं। झारखंड में और आपके पार्टी या विपक्षी दल को वोट दे रहे हैं, तो आज से क्या वो सब रिफ्यूजी हो जाएंगे तो? वो भी सरकार बता दें या फिर उनके बारे में भी अपने इसमें कोई विचार किया है क्योंकि आपके पिताजी जब सर्वप्रथम सर्वोपरि पद स्वायत परिषद के अध्यक्ष महोदय दिशोम गुरु शिबू सोरेन बने थे और उनके साथी और आपसब जैसे कार्यकर्ताओं की लड़ाई का ही परिणाम था कि आज झारखंड राज्य है इसलिए 14 नवम्बर 2000 से रहने वाले जो भी नागरिक उपस्थित थे उनसभी को इस 1932 के खतियान में जगह दिया जाए एक कालम बनाकर, अतः इस परिप्रेक्ष्य में आपके और सरकार के ध्यानार्थ उचित संज्ञान ले।

अविभाजित बिहार के समय सबसे ज्यादा राजस्व, हमारा आज का झारखंड से कमाई होती थी क्योकि सारी खनिज सम्पदा कोयला, लोहा, अबरख, ताम्बा, पीतल, सोना वगैरह का खान/उत्पादन इसी क्षेत्र से होता था परन्तु इसका खर्च पुरे बिहार के विकास पर होता था। इस क्षेत्र (झारखंड) का समुचित विकास नही हो पाता था। परिणाम स्वरूप झारखंड / वनांचल अलग राज्य की मांग उठी। मांग भी बिल्कुल जायज थी।
तत्कालीन मुख्यमंत्री लालु यादव ने कहा कि झारखंड राज्य का निमार्ण मेरी लाश पर होगा । उन्होने कहा कि यदि झारखंड का निर्माण हो गया तो बिहार के पास क्या बचेगा ? सिर्फ बालू बचेगा? क्या हमलोग बालू फाकेगे क्या ?

वहीं सन् 2000 मे केन्द्र में जब भाजपा की सरकार और बिहार में राजद की सरकार थी तो संयोगवश ऐसा राजनीति समीकमरण बैठा की लालु यादव चाहकर भी कुछ नही कर पाए और केन्द्र की भाजपा सरकार अटल बिहारी वाजपेई  आनन-फानन मे 15 नवम्बर 2000 मे झाररवण्ड राज्य का निर्माण करने मे कामयाब हो गई।  कामयाबी हासिल करने में आपके पिताजी दिशोम गुरु शिबू सोरेन जी की जंगल में रहने के कारण और लड़ाई लड़ें तो हुआ।

झारखंड निर्माण के बाद झारखंड का जिस गति से विकास होना चाहिए था नही हुआ यह हम सबके लिए दुर्भाग्य की बात है। इसके लिए यहाँ के राजनेता एवं नेतृत्व जिम्मेवार है। अतः करबद्ध निवेदन है कि 14 नवंबर 2000 जब स्वायत परिषद बना था और उस लड़ाई के प्रमुख योद्धा दिशोम गुरु शिबू सोरेन नायक हैं और स्वायत परिषद के अध्यक्ष महोदय भी रहे हैं, इसलिए विधानसभा सत्र में लाने से पुर्व इस तारीख को रहने वाले वाशिंदों को यानि 15 नवंबर 2000 तक के तारीख की आबादी को भी इस 1932 खतियान वाले आदेश के कॉलम में जगह बना कर विधानसभा सत्र के पटल पर प्रस्तुत किया जाए जिससे किसी की भी क्षति नहीं होगी।

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