धनबाद। झारखंड के धनबाद जिले के हीरापुर निवासी एवं प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. तपस चटर्जी ने एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत और धनबाद का नाम रोशन किया है। डॉ. चटर्जी द्वारा फॉकलैंड आइलैंड्स (दक्षिण अटलांटिक महासागर) से प्राप्त एक दुर्लभ सिलिएट प्रजाति Cyclodonta bipartita पर किया गया शोध प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
📘 रूस की अंतरराष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित हुआ शोध पत्र
डॉ. तपस चटर्जी का यह शोध पत्र ‘Biodiversity and Sustainable Development’ नामक अंतरराष्ट्रीय जर्नल के वॉल्यूम 10, अंक 4 (पृष्ठ 15–20) में प्रकाशित हुआ है, जिसका प्रकाशन रूस से होता है। यह शोध फॉकलैंड आइलैंड्स से इस प्रजाति की पहली वैज्ञानिक रिपोर्ट है।
🌊 फॉकलैंड आइलैंड्स से पहली बार दर्ज हुई प्रजाति
यह सिलिएट प्रजाति Christina Bay, Cape Pembroke स्थित एक बौल्डर बीच के supratidal zone से एकत्र की गई थी। शोध में यह सामने आया कि यह जीव कोपेपोड (copepod) प्रजाति से जुड़ा हुआ (epibiont) था।
अब तक यह प्रजाति केवल यूरोप और अमेरिका में दर्ज की गई थी, लेकिन फॉकलैंड आइलैंड्स में इसकी उपस्थिति ने इसके भौगोलिक विस्तार और आवासीय अनुकूलन को समझने में नई दिशा दी है।
🧪 खारे और मीठे पानी दोनों में जीवित रहने की क्षमता
शोध में यह भी संकेत मिला है कि यह प्रजाति खारे पानी (brackish water) और समुद्री जल के आंशिक प्रभाव को सहन करने की क्षमता रखती है। यह खोज जैव विविधता, समुद्री पारिस्थितिकी और सूक्ष्मजीवों के अध्ययन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जा रही है।
👨🔬 अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों के साथ संयुक्त शोध
इस शोध पत्र के तीन लेखक हैं—
डॉ. तपस चटर्जी (धनबाद, भारत)
डॉ. इगोर डोवगल (A.O. Kovalevsky Institute of Biology of the Southern Seas, रूस)
डॉ. डेविड जे. मार्शल (यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रुनेई दारुस्सलाम)
🏆 डॉ. तपस चटर्जी: एक परिचय
डॉ. तपस चटर्जी सिलिएट एपिबायोन्ट्स और जलीय माइट्स पर अपने शोध के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध हैं। अब तक 190 से अधिक शोध पत्र प्रकाशित 140 से अधिक नई प्रजातियों और 4 नई वंश (genera) की खोज
उत्कल विश्वविद्यालय, भुवनेश्वर से पीएचडी और डी.एससी. दाएगू विश्वविद्यालय, दक्षिण कोरिया से पोस्ट-डॉक्टोरल शोध, 30 से अधिक देशों के जीवों पर शोध, 25 से अधिक अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक जर्नल्स के रिफरी
🌟 धनबाद के लिए गौरव का क्षण
डॉ. तपस चटर्जी की यह उपलब्धि न केवल धनबाद और झारखंड बल्कि पूरे देश के लिए गर्व का विषय है। उनका निरंतर शोध कार्य यह सिद्ध करता है कि सीमित संसाधनों के बावजूद भारतीय वैज्ञानिक वैश्विक स्तर पर उत्कृष्ट योगदान दे रहे हैं।

