डिजिटल डेस्क। मिरर मीडिया:बांग्लादेश के शिबचर में स्थित इस्कॉन नमहट्टा केंद्र को मुस्लिम समूहों ने जबरन बंद करा दिया। इस दौरान सेना के जवानों ने इस्कॉन के श्रद्धालुओं को अपने वाहन में भरकर सुरक्षित स्थान पर ले जाया। इस घटना के बाद से स्थानीय सनातनी समुदाय में भय और आक्रोश का माहौल है।
इस्कॉन प्रवक्ता राधारमण दास ने दी जानकारी
इस्कॉन-कोलकाता के उपाध्यक्ष और प्रवक्ता राधारमण दास ने सोशल मीडिया मंच एक्स पर एक पोस्ट के माध्यम से यह जानकारी साझा की। उन्होंने लिखा, “बांग्लादेश के शिबचर स्थित इस्कॉन केंद्र को जबरन बंद कर दिया गया है और श्रद्धालुओं को सेना के वाहन में ले जाया गया।” उन्होंने इसके साथ एक वीडियो भी साझा किया जिसमें स्थानीय इस्लामी समूहों के नेता इस्कॉन केंद्र को बंद करने की मांग करते नजर आ रहे हैं।
अटार्नी जनरल ने इस्कॉन को बताया कट्टरपंथी संगठन
बांग्लादेश के अटार्नी जनरल मुहम्मद असदुज्जमां ने सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान इस्कॉन को एक धार्मिक कट्टरपंथी संगठन करार दिया। जस्टिस फराह महबूब और जस्टिस देबाशीष राय चौधरी की पीठ ने इस्कॉन और उसकी गतिविधियों का ब्योरा मांगा, जिसके जवाब में असदुज्जमां ने कहा कि सरकार पहले से ही इस संगठन की जांच कर रही है।
चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी के बाद तनाव
इस्कॉन से जुड़े पुजारी चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी के बाद देशभर में विरोध प्रदर्शन तेज हो गए हैं। चिन्मय बांग्लादेश सनातन जागरण मंच के प्रवक्ता और पुंडरीक धाम के प्रमुख हैं। इस बीच, चिट्टागोंग में धारा-144 लागू करने की मांग की गई है। वकील असदुज्जमां ने अदालत में हुई हालिया हिंसा और एक अधिवक्ता की हत्या का भी जिक्र किया।
सरकार की कार्रवाई पर हिंदू संगठनों की तीखी प्रतिक्रिया
बांग्लादेश नेशनल हिंदू ग्रांड अलायंस के महासचिव मृत्युंजय कुमार राय ने इस्कॉन पर प्रतिबंध की मांग की निंदा करते हुए कहा कि यह संगठन शांतिपूर्ण और गरीबों के कल्याण के लिए काम करता है। उन्होंने सनातनी समुदाय की सुरक्षा सुनिश्चित करने की मांग की।
इस्कॉन ने रखी तीन प्रमुख मांगें
इस्कॉन ने सरकार से सनातनी समुदाय की सुरक्षा के लिए तीन मांगें रखी हैं:
- सनातनी समुदाय पर हमले के दोषियों की पहचान और उन्हें सजा।
- चिन्मय कृष्ण दास और अन्य सनातनियों के नागरिक अधिकारों की रक्षा।
- देश में शांति और सद्भाव बनाए रखने के लिए त्वरित और प्रभावी कदम उठाना।
घटना ने एक बार फिर बांग्लादेश में अल्पसंख्यक समुदाय की सुरक्षा और धार्मिक स्वतंत्रता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
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