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झारखंड चुनाव: 1932 खतियान और सरना धर्म कोड पर चुनावी माहौल गर्म, आदिवासियों का समर्थन पाने की होड़

डिजिटल डेस्क। मिरर मीडिया: झारखंड विधानसभा की 81 सीटों पर दो चरणों में मतदान होगा। पहले चरण में 13 नवंबर को 43 सीटों पर और दूसरे चरण में 38 सीटों पर 17 नवंबर को वोटिंग होगी। चुनावी परिणाम 23 नवंबर को घोषित किए जाएंगे। झारखंड की राजनीति में आदिवासी सुरक्षित सीटें किसी भी दल के लिए सत्ता तक पहुंचने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इस बार भी 28 अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित सीटों पर किस पार्टी का वर्चस्व रहेगा, यह चुनावी जीत का रास्ता तय कर सकता है।

राज्य में सीटों का वर्गीकरण और महत्व

  • आदिवासी सुरक्षित सीटें: 81 में से 28 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं, जो राजनीतिक दृष्टि से किसी भी दल की चुनावी सफलता के लिए निर्णायक मानी जाती हैं।
  • नुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षित सीटें: 9 सीटें एससी उम्मीदवारों के लिए आरक्षित हैं।
  • सामान्य वर्ग की सीटें: बाकी 44 सीटों पर सामान्य वर्ग के उम्मीदवार चुनाव लड़ते हैं।

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, इन 28 आदिवासी सीटों पर जीत किसी भी पार्टी के सत्ता में आने का मार्ग प्रशस्त कर सकती है।

2019 में झामुमो की बढ़त, भाजपा का पिछड़ना

2019 के विधानसभा चुनावों में, झामुमो (झारखंड मुक्ति मोर्चा) ने आदिवासी सुरक्षित सीटों पर बेहतर प्रदर्शन किया था। वर्तमान में, 28 एसटी आरक्षित सीटों में से 19 सीटें झामुमो के पास हैं। झामुमो-कांग्रेस गठबंधन (आइएनडीआइए) के पास एसटी आरक्षित सीटों में कुल 26 सीटें हैं, जबकि भाजपा के खाते में केवल 2 सीटें आई थीं। इन सीटों पर अपनी पकड़ के कारण ही झामुमो 2019 में सत्ता तक पहुंचा। इस बार भी झामुमो-कांग्रेस गठबंधन इन सीटों पर अपना दबदबा बनाए रखने की कोशिश कर रहा है, वहीं भाजपा भी इन सीटों पर जोर लगा रही है।

भाजपा का हमला: घुसपैठ और मतांतरण के मुद्दे पर निशाना


भाजपा इस बार के चुनाव में झामुमो पर बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा उठाकर हमलावर है। पार्टी के प्रमुख नेता लगातार इस मुद्दे को सीएम सोरेन के खिलाफ प्रचारित कर रहे हैं और आदिवासी जनता को समझा रहे हैं कि किस तरह से बाहरी घुसपैठिए उनकी जमीनों पर कब्जा कर रहे हैं। इसके साथ ही, भाजपा मतांतरण के मुद्दे को भी जोर-शोर से उठा रही है और इसे लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में मतदाताओं के बीच पहुंच रही है।

स्थानीयता और सरना धर्म कोड: प्रमुख चुनावी मुद्दे

1932 के खतियान आधारित स्थानीयता नीति और सरना धर्म कोड जैसे मुद्दे आदिवासी समुदाय के बीच प्राथमिकता में हैं। इन मुद्दों पर झामुमो और अन्य विपक्षी दलों का समर्थन भी देखा जा रहा है। सभी दलों के लिए आदिवासी समुदाय का समर्थन महत्वपूर्ण है, और इसी आधार पर वे अपनी नीतियां तैयार कर रहे हैं।

किसके सिर सजेगा जीत का ताज?


झारखंड विधानसभा चुनावों में आदिवासी सुरक्षित सीटें जिस भी दल के पक्ष में जाएंगी, सत्ता की राह उसके लिए आसान हो जाएगी। अब देखना दिलचस्प होगा कि जनता किस पार्टी पर भरोसा जताती है और किसे सत्ता तक पहुंचने का मौका मिलता है।

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