जमशेदपुर : उतारो मुझे जिस क्षेत्र में, सर्वश्रेष्ठ कर दिखाउंगी, नारी हूं मैं इस युग की, अलग पहचान बनाऊंगी। जी हां कुछ ऐसा ही कर दिखाया है पानमुनी हेम्ब्रम ने। गुड़ाबांदा प्रखंड के महेषपुर गांव की रहने वाली पानमुनी हेम्ब्रम ने जब पितृसत्तामक समाज की रूढ़ीवादी सोच को चुनौती देने की ठानी तो सबसे पहले उनके घरवाले ही उनकी ऊंची उड़ान की राह में रोड़ा बने। जेएसएलपीएस पानमुनी हेम्ब्रम का चयन ‘डिजी पे सखी’ के रूप में होने से पहले वे भी अपने घर तक सिमट कर गृहणी के रूप में जीवनयापन कर रही थीं। पानमुनी बताती हैं कि मेरे पति बैधनाथ हेम्ब्रम गांव में मजदूरी करते हैं। ‘डिजी पे सखी’ बनने से पहले तक लगता था कि पुरूष ही काम कर सकते हैं, महिला भी काम कर सकती हैं इसको लेकर जागरूकता नहीं थी। महिला समूह से जुड़ने के लिए मेरे परिवार के लोग सहमत नही थे। चूंकि महिलाओं को घर से बाहर निकलना मना था इसके बावजूद मेरे पति ने मेरा सहयोग किया, उन्होने मुझे समूह में जुड़ने के लिए परिवार से बात किया। आज मैं अपने स्तर से महिलाओं को समूह में जुड़ने के लिए प्रेरित कर रही हूं तथा उन्हें आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाने की दिशा में प्रयासरत हूं।
पानमुनी हेम्ब्रम बताती हैं कि मेरे गांव में जिला से महिला समूह गठन के लिए आईसीआरपी टीम पहुंची थी। समूह से जुड़ने का लाभ बताते हुए 10 महिलाओं के साथ समूह में जोड़ा गया तभी से धीरे-धीरे घर और गांव से बाहर जाने का अवसर मिला। समूह गठन के बाद प्रशिक्षण के दौरान ही मुझे जानकारी मिली की आज के दौर में महिलायें भी अपने परिवार के लिए आजीविका से जुड़कर परिवार चलाने में सहयोग कर सकती हैं। प्रशिक्षण के बाद मुझे समूह की देख रेख के लिए सक्रिय महिला के रूप में चुना गया।
सक्रिय महिला के रूप में काम करते हुए पानमुनी का चयन डिजी पे सखी के रूप में हुआ था। समूह से ही 50,000 रू. का ऋण लेकर उन्होने पंचिंग मशीन तथा स्मार्ट फोन खरीद कर डिजीटली लेन-देन करना शुरू किया। इस कार्य से पानमुनी हेम्ब्रम को हर महीने 3000 से 4000 रूपया तक आय होती है जिससे वे अपने परिवार को आर्थिक रूप से सहयोग करने में सफल हुई हैं। पानमुनी हेम्ब्रम बताती हैं कि आगे की योजना रूप में मैंने सोचा है कि गांव में डिजी पे के तहत एक ग्राहक सेवा केंन्द्र खोलूंगी और उसमें जेरॉक्स, स्टेशनरी तथा इंटरनेट की सुविधाएं दूंगी जिससे मेरी आय और बढ़ेगी।