डिजिटल डेस्क। मिरर मीडिया: देश में न्यायिक प्रक्रियाओं को तेज करने और लंबित मुकदमों के समाधान के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला लिया है। गुरुवार को सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालयों में तदर्थ (अस्थायी) न्यायाधीशों की नियुक्ति को अनुमति दे दी। यह निर्णय देशभर में लंबित 18 लाख से अधिक आपराधिक मामलों के जल्द निपटारे की दिशा में महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
अनुच्छेद 224ए के तहत नियुक्ति का प्रविधान
सुप्रीम कोर्ट ने तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति पर अपने पूर्व के फैसले में दी गई शर्तों में ढील दी है। संविधान के अनुच्छेद 224ए के तहत, हाई कोर्ट में सेवानिवृत्त जजों को अस्थायी रूप से तदर्थ न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने का प्रावधान है। इस फैसले के तहत, प्रत्येक हाईकोर्ट अब दो से पांच तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति कर सकता है, लेकिन यह संख्या कुल स्वीकृत न्यायाधीशों की संख्या के 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होगी।
तदर्थ न्यायाधीश लंबित मामलों के निपटारे में देंगे योगदान
सुप्रीम कोर्ट की विशेष पीठ, जिसमें प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत शामिल थे, ने स्पष्ट किया कि तदर्थ न्यायाधीश हाई कोर्ट के मौजूदा न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ में बैठेंगे और लंबित आपराधिक अपीलों का निपटारा करेंगे। इसके अलावा, शीर्ष अदालत ने पूर्व के फैसले में दी गई कुछ शर्तों में भी बदलाव किया है।
2021 के फैसले में दी गई थी सीमित अवधि की नियुक्ति
अप्रैल 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त जजों को दो से तीन साल की अवधि के लिए तदर्थ न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने का निर्देश दिया था। उस समय अदालत ने यह शर्त रखी थी कि यदि हाई कोर्ट में स्वीकृत न्यायाधीशों की संख्या का 80 प्रतिशत उपलब्ध हो, तो तदर्थ जजों की नियुक्ति नहीं की जा सकती।
एनजीओ की याचिका पर आया सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय एक एनजीओ द्वारा दायर याचिका पर आया है, जिसमें विभिन्न उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों के समाधान की मांग की गई थी। शीर्ष अदालत ने इस पर सहमति जताते हुए कहा कि तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए ‘मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर’ पहले से मौजूद है और इसे प्रभावी रूप से लागू किया जाएगा।
62 लाख से अधिक मामलों का बोझ झेल रहे हाई कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान यह भी कहा कि वर्तमान में देशभर के उच्च न्यायालयों में 62 लाख से अधिक मामले लंबित हैं। ऐसे में तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति से न्यायिक प्रक्रिया को गति मिलेगी और मामलों के जल्द निपटारे की संभावना बढ़ेगी। शीर्ष अदालत ने तदर्थ जजों को अलग से बैठाने की शर्त को भी स्थगित कर दिया है, जिससे वे हाई कोर्ट के मौजूदा न्यायाधीशों की खंडपीठ में शामिल होकर न्यायिक कार्यों में सहयोग कर सकेंगे। यह कदम देश में न्यायिक सुधारों और लंबित मामलों के निपटारे की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल माना जा रहा है।