डिजिटल डेस्क/कोलकाता: तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 2026 के विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी की छवि को और मजबूत करने के लिए कड़ा कदम उठाया है। पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने सभी स्तर के नेताओं को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि वे किसी भी सरकारी या निजी संस्था में नियुक्तियों के लिए राजनीतिक सिफारिशों से पूरी तरह दूर रहें। यह फैसला पिछले 14 वर्षों के शासन में हुए भर्ती घोटालों, विशेष रूप से शिक्षा विभाग से जुड़े विवादों से उपजे सबक के बाद लिया गया है।
शिक्षा भर्ती घोटाले में तृणमूल के पूर्व महासचिव और पूर्व शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी अभी भी जेल में हैं, जबकि पलाशीपाड़ा के विधायक माणिक भट्टाचार्य और ब्रांचा के विधायक जीवन कृष्ण साहा भी इस मामले में लंबे समय तक हिरासत में रहे। इन घटनाओं ने पार्टी की छवि को गहरा नुकसान पहुंचाया। अब, चुनाव से पहले ममता बनर्जी पार्टी को ‘पाक-साफ’ दिखाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती। पार्टी नेतृत्व ने न केवल मुख्य संगठन, बल्कि शाखा संगठनों के प्रमुखों को भी सख्त हिदायत दी है कि वे नियुक्तियों में पार्टी का नाम इस्तेमाल न करें। यह प्रतिबंध निजी कंपनियों के साथ-साथ नगर पालिकाओं और पंचायत प्रशासनों तक लागू होगा। कोई भी नेता, मेयर, चेयरमैन, पार्षद या पंचायत प्रतिनिधि यह तय नहीं करेगा कि किसी ठेका कंपनी को कौन सा काम सौंपा जाए।
पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि हाल के वर्षों में कुछ गंभीर आरोप सामने आए हैं, जैसे ठेकेदार कंपनियों को सड़क मरम्मत या अन्य सरकारी कार्यों के लिए अनुचित तरीके से चुना गया। कुछ मामलों में नेताओं पर अपने लोगों को नौकरी दिलाने और रिश्वत लेने के भी सबूत मिले हैं। इन अनुभवों के आधार पर, तृणमूल ने सभी नेताओं को सरकारी और निजी नियुक्तियों से दूरी बनाए रखने का सख्त निर्देश दिया है।
ममता का मिशन
ममता बनर्जी का यह कदम न केवल पार्टी की छवि को सुधारने की दिशा में एक बड़ा प्रयास है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि भविष्य में भ्रष्टाचार के आरोपों से बचा जा सके। विधानसभा चुनाव से पहले तृणमूल का यह संदेश स्पष्ट है- पारदर्शिता और स्वच्छ प्रशासन ही उनकी प्राथमिकता है।