हजारीबाग जिले के चरही रेलवे स्टेशन पर शनिवार को कुडमी समाज ने अपनी मांगों को लेकर उग्र प्रदर्शन किया। समाज लंबे समय से अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा दिए जाने की मांग कर रहा है। सुबह से ही बड़ी संख्या में पुरुष, महिलाएँ और युवा रेलवे ट्रैक पर डटे रहे, जिसके चलते स्टेशन पर ट्रेन सेवाएँ पूरी तरह ठप हो गईं।
यह आंदोलन “रेल टेका, डहर छेका” के नाम से चलाया जा रहा है, जिसकी गूंज झारखंड के साथ-साथ पड़ोसी राज्यों पश्चिम बंगाल और ओडिशा तक सुनाई दे रही है। मांडू विधायक निर्मल महतो उर्फ तिवारी महतो भी आंदोलनकारियों के साथ पटरियों पर बैठे। उन्होंने कहा, “अगर सच्चा आदिवासी कोई है, तो वह कुडमी समाज ही है।”
आंदोलन में महिलाओं की भागीदारी भी उल्लेखनीय रही। घरेलू जिम्मेदारियाँ पूरी करने के बाद बड़ी संख्या में महिलाएँ भी आंदोलन स्थल पर पहुँचीं और समाज की मांग को जोर-शोर से उठाया।
कुडमी समाज का कहना है कि 1931 से 1950 के बीच उन्हें आदिवासी सूची से हटाया गया था और अब उनकी लड़ाई उसी हक को वापस पाने की है। नेताओं ने साफ शब्दों में कहा कि जब तक केंद्र और राज्य सरकार इस पर ठोस फैसला नहीं लेती, तब तक आंदोलन जारी रहेगा।
रेलवे अधिकारियों ने स्थिति संभालने की कोशिश की, लेकिन दोपहर तक चरही स्टेशन से एक भी ट्रेन नहीं गुजर सकी। मालगाड़ी और यात्री दोनों सेवाएँ बाधित रहीं। आंदोलनकारियों का कहना है कि यह तो सिर्फ शुरुआत है और उनकी लड़ाई अब निर्णायक मोड़ पर पहुँच चुकी है।

