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नवरात्रि का छठवां दिन: माँ कात्यायनी की पूजा से दूर होती हैं वैवाहिक बाधाएं, पढ़ें पौराणिक कथा और पूजन विधि

नवरात्रि का छठवां दिन देवी कात्यायनी को समर्पित होता है, जो महर्षि कात्यायन की पुत्री के रूप में जन्मीं और जिनके नाम से ये स्वरूप जाना जाता है। इस दिन श्रद्धालु देवी कात्यायनी की विधिपूर्वक पूजा करते हैं, क्योंकि मान्यता है कि इससे विवाह में आ रही बाधाएं दूर होती हैं और जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन होता है।

देवी कात्यायनी का स्वरूप और पूजा विधि

देवी कात्यायनी चार भुजाओं वाली हैं, जिनमें से एक हाथ में तलवार, दूसरे में कमल का पुष्प, तीसरा हाथ अभय मुद्रा में और चौथा वर मुद्रा में होता है। उनका स्वरूप शक्ति और साहस का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि उनकी पूजा करने से व्यक्ति को जीवन के चारों पुरुषार्थ—अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष—की प्राप्ति होती है। साथ ही शुक्र ग्रह की अनुकूलता प्राप्त होती है, जो विवाह और दांपत्य जीवन में आने वाली समस्याओं को दूर करता है।

शास्त्रों के अनुसार, नवरात्रि के छठवें दिन मां कात्यायनी की पूजा करने से शुक्र ग्रह की स्थिति में सुधार होता है, जिससे व्यक्ति का वैवाहिक जीवन सुखमय होता है। श्रद्धालु इस दिन विशेष रूप से मां कात्यायनी की आराधना करते हैं और उनकी कृपा प्राप्त करते हैं।

शुभ मुहूर्त और पूजन विधि

वैदिक पंचांग के अनुसार, नवरात्रि के छठवें दिन मां कात्यायनी की पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 11:40 बजे से लेकर 12:30 बजे तक रहेगा। इस दौरान देवी की पूजा विधिपूर्वक करनी चाहिए। देवी को शहद और शहद से बने पकवान अर्पित करना विशेष फलदायी माना जाता है, क्योंकि मां कात्यायनी को शहद प्रिय है। पूजा के बाद शहद से बनी खीर का भोग लगाने से देवी प्रसन्न होती हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करती हैं। शहद से खीर बनाने के लिए सामान्य चावल की खीर में शहद मिलाया जाता है।

देवी कात्यायनी की पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, महर्षि कात्यायन ने पुत्री की प्राप्ति के लिए देवी भगवती की कठोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर देवी ने उन्हें वरदान दिया कि वे उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लेंगी। इसी समय महिषासुर नामक दैत्य ने तीनों लोकों में आतंक मचा रखा था, जिससे त्रस्त होकर देवताओं ने त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु और शिव) से सहायता मांगी। त्रिदेव के तेज से देवी ने महर्षि कात्यायन के घर पुत्री रूप में जन्म लिया और महिषासुर, शुंभ-निशुंभ जैसे राक्षसों का वध किया। इसलिए उन्हें महिषासुरमर्दिनी के नाम से भी जाना जाता है।

महर्षि कात्यायन ने सबसे पहले देवी की पूजा की थी। तीन दिनों तक उनकी पूजा करने के बाद देवी ने संसार को दुष्ट राक्षसों के आतंक से मुक्त किया। देवी के इस पराक्रम से ही उन्हें शक्ति और विजय का प्रतीक माना जाता है।

बीज मंत्र और विशेष पूजा

मां कात्यायनी के बीज मंत्र का जाप करना अत्यंत फलदायी माना जाता है। उनका बीज मंत्र है:

क्लीं श्री त्रिनेत्राय नमः।

इस मंत्र का उच्चारण करते हुए माता की आराधना करने से भक्तों को विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है और जीवन की समस्त समस्याएं समाप्त हो जाती हैं।

नवरात्रि के छठे दिन का महत्व

नवरात्रि के नौ दिनों में हर दिन का अपना विशेष महत्व होता है, लेकिन छठवें दिन देवी कात्यायनी की पूजा का विशेष महत्व है। यह दिन उन लोगों के लिए खासतौर से महत्वपूर्ण माना जाता है, जो विवाह संबंधी समस्याओं से जूझ रहे हैं। माता कात्यायनी की आराधना से विवाह में आ रही अड़चनों को दूर किया जा सकता है और दांपत्य जीवन में सुख-शांति लाई जा सकती है।

KK Sagar
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