डिजिटल डेस्क। मिरर मीडिया: शिवहर के तरियानी छपरा के निवासी मो. जमालुद्दीन की कहानी 35 साल पुरानी है। गंभीर बीमारी ने उनकी जिंदगी को झकझोर कर रख दिया था। इलाज के लिए जमीन तक बिक गई और कर्ज का बोझ बढ़ता गया। ऐसे में किसी के कहने पर उन्होंने छठ व्रत का संकल्प लिया। हालांकि, व्रत रखना आसान नहीं था, समाज में विरोध भी झेलना पड़ा। फिर भी उन्होंने बागमती नदी में भगवान भास्कर को अर्घ्य दिया, जिसके बाद उनकी तबीयत में सुधार हुआ। इस घटना से उनकी आस्था और भी गहरी हो गई और वे लगातार छठ व्रत करने लगे।
जमालुद्दीन की आस्था का असर: दर्जनों मुस्लिम परिवार करते है छठ महापर्व
जमालुद्दीन की आस्था ने धीरे-धीरे उनके गांव के अन्य लोगों को भी प्रभावित किया। विभिन्न बीमारियों से पीड़ित सबीना खातून, रुखसाना खातून, मो. शाहिद और लाडो खातून जैसे दर्जनभर मुस्लिम समुदाय के लोग छठ व्रत के लिए घर लौटे हैं। अब इन परिवारों में दर्जनों महिला व पुरुष हर साल विधि-विधान से नहाय-खाय, खरना और अर्घ्य देकर छठ महापर्व मना रहे हैं। उनके घरों में छठ के गीत गूंज रहे हैं, और यह महापर्व उनकी आस्था का प्रतीक बन चुका है।
गरीबी और अभावों के बीच छठ व्रत ने बदली जिंदगी
तरियानी छपरा के गरीब मुस्लिम परिवार, जैसे कि रुखसाना खातून का परिवार, आर्थिक तंगी और अभाव में जिंदगी बिता रहा है। सरकार से मिलने वाले चावल-गेहूं से केवल भूख मिटाई जा सकती थी, लेकिन बीमारी और अन्य खर्चों के लिए कोई सहारा नहीं था। ऐसे में रुखसाना ने भी छठ व्रत का संकल्प लिया, और व्रत ने उनकी जिंदगी की राहें आसान कर दीं। इस बस्ती के दर्जनभर लोग अब हर साल आस्था के इस महापर्व में शामिल होकर सूर्योपासना करते हैं।
धर्म की दीवारें तोड़ समाज को दिया नया संदेश
तरियानी छपरा के गरीब मुस्लिम परिवारों ने छठ व्रत के जरिए समाज में नई सोच का संदेश दिया है। कम पढ़ी-लिखी लाडो खातून कहती हैं कि छठ व्रत के साथ जुड़ी आस्था की कोई सीमा नहीं है। वह कहती हैं, “धर्म के आधार पर लोग नहीं बंटे, सबका मालिक एक है।” उनके विचारों में ये स्पष्ट है कि आस्था और विश्वास इंसानियत की सबसे बड़ी ताकत हैं।
बाढ़ की विपरीत परिस्थितियों में भी अडिग आस्था
29 सितंबर को इलाके में आई बाढ़ से सबसे ज्यादा तरियानी छपरा के लोग प्रभावित हुए। मो. जमालुद्दीन और सबीना खातून जैसे सैकड़ों लोगों ने 32 दिन और 32 रात तटबंध पर गुजार कर छठ व्रत के लिए घर लौटने का संकल्प लिया। घर बाढ़ में ध्वस्त हो गए, कई घरों में अब भी पानी जमा है। सरकार द्वारा मिलने वाली सात हजार रुपये की राहत राशि भी अब तक नहीं मिली है, जिससे उनके लिए इस बार छठ महापर्व की राह और भी कठिन हो गई है।
आस्था पर भारी बाढ़ की पीड़ा
तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद, इन परिवारों की आस्था में कोई कमी नहीं आई है। बाढ़ की पीड़ा के बावजूद इन लोगों ने छठ महापर्व की तैयारियां शुरू कर दी हैं।
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